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शहानिका
( ३३५ )
शक
स्थलसे भागना (द्रोण. १९५१)। इसके द्वारा सुत- समर्थन तथा आशीर्वाद (मादि..।। ३२ के बाद)। सोमकी पराजय (कर्ण० २५ । ४.४१)। सात्यकि- इनके गर्भसे दुष्यन्तद्वारा भरतका जन्म (मादि. द्वारा इसका पराजित होना (कर्ण०६१।४८-४९)। ७४ । २)। कण्वद्वारा इनके प्रति पातिव्रत्य धर्मका भीमसेनद्वारा पृथ्वीपर गिराया जाना (कर्ण० ७७ । ६९- उपदेश और उसकी महिमाका वर्णन ( आदि०७४ । ७.)। इसके द्वारा भाईसहित कुलिन्द-राजकुमारकावध ९-१०)। पिताकी आज्ञा पाकर इनका पति-गृह-गमन (कर्ण० ८५। ७-१९)। पाण्डव घुड़सवारोंका इसके (आदि०७४।१०-१४)। इनका राजा दुष्यन्तसे ऊपर आक्रमण, इसका भागना पुनः धृष्टद्यनकी सेना- अपने पुत्रको ग्रहण करने और युवराज-पदपर अभिषिक्त पर आक्रमण करना तथा पाण्डव सैनिकोंसे घिरकर करनेके लिये कहना तथा अपने साथ उनके सम्बन्ध घायल होना (शल्य. २३ । ११-८७)। सहदेवद्वारा और प्रतिज्ञाका स्मरण दिलाना (आदि०७४ । १६इसका वध (शल्य. २८ । ६१) । व्यासजीके प्रभाव- १८)। दुष्यन्तके अस्वीकार करनेपर इनका लजा एवं से यह भी गङ्गाजीके जलसे प्रकट हो अपने सगे-सम्बन्धियों- रोषपूर्ण उपालम्भ, धर्मकी श्रेष्ठता और परमात्मा एवं से मिला था (आश्रम० ३२ । ९)। मृत्युके पश्चात् सूर्य आदि देवताओंको पुण्य-पापका साक्षी बतलाकर यह द्वापरमें मिल गया (स्वर्गा० ५ । २१)। दुष्यन्तसे अपने साथ न्यायपूर्वक व्यवहार करनेके लिये महाभारतमें आये हुए शकुनिके नाम-गान्धार, गान्धार
अनुरोध, पतिव्रता पत्नी और पुत्र-पौत्रोंकी महिमा पति, गान्धारराज, गान्धारराजपुत्र, गान्धारराजसुत,
बतलाकर दुष्यन्तको उनके साथ अपने पूर्व सम्बन्धका कितव, पर्वतीय, सौबल, सौबलक, सौबलेय, सुबलज,
स्मरण दिलाना (आदि० ७४ । २१-६७) । दुष्यन्तके सुबलपुत्र, सुबलसुत, सुबलात्मज आदि ।
प्रति इनके द्वारा अपने जन्मकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन
(आदि०७४ । ६९-७०) । इनके द्वारा दुष्यन्तके प्रति शकुनिका-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य० ४६ ।
पुनः अपने जन्म-कर्मकी महत्ता बतलाते हुए सत्यधर्मकी
श्रेष्ठताका कथन तथा निराश होकर जानेका उपक्रम (आदि. शकुनिप्रह-रौद्ररूपधारिणी विनता ( बन० २३० । ७४ । ८४ से १०८ के बाद तक)। आकाशवाणीद्वारा २६)।
इनके कथनकी सत्यता घोषित होनेपर दुष्यन्तद्वारा शकुन्त-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक ( अनु० अङ्गीकार ( आदि०७४ । १०९-१२५) । दुष्यन्त
द्वारा इनका पटरानीके पदपर अभिषेक ( भादि०७४ । शकुन्तला-महर्षि कण्वकी पोषित पुत्री, जो सम्राट दुभ्यन्त- १२५ के बाद)। की धर्मपत्नी और भरतकी माता हुई। इनके यहाँ शक्त-राजा पूरुके प्रपौत्र एवं मनस्युके पुत्र, जो 'सौवीरीके राजा दुष्यन्तका आगमन । इनके द्वारा उनका स्वागत गर्भसे उत्पन्न हुए थे । इनके दो भाई और थे, जिनके तथा अपने जन्म-प्रसंगका वर्णन (आदि. ७१ अध्याय)। नाम हैं--संहनन और वाग्मी । ये सभी शूरवीर और
महारथी थे ( आदि० ९४ । ७)। हिमालयके शिखरपर मालिनी नदीके किनारे उत्पन्न शक्ति-महर्षि वसिष्ठके कुल की वृद्धि करनेवाले महामनस्वी हई थीं। कण्वइनके पालक पिता थे। इनकी उत्पत्तिकी पुत्र, जो अपने सौ भाइयोंमें सबसे ज्येष्ठ और श्रेष्ठ मुनि कथा (आदि०७२।१-१०)। शकुन्तों (पक्षियों) थे (इनकी माता अरुन्धती थीं) (आदि. १७५ । द्वारा रक्षित होनेके कारण इनका नाम 'शकुन्तला' हुआ ६)। कल्माषपादद्वारा इनपर प्रहार और इनके द्वारा (भादि०७२।१५-१६) । दुष्यन्तके प्रार्थना करनेपर कल्माषपादको राक्षस होनेका शाप (आदि. १७५ । इनके द्वारा स्त्री-स्वातन्त्र्यका निषेध, अपनी पितृभक्ति एवं ११-१३)। राक्षसभावापन्न कल्माषपादद्वारा इनका भक्षण ब्राह्मणके प्रभावका वर्णन ( आदि०७३ । ५ से ६ के (आदि० १७५ । ४०)। इनके द्वारा स्थापित पूर्वतक)। दुष्यन्तके द्वारा विवाहोंके आठ भेद बतलाकर अदृश्यन्तीके गर्भसे पराशरका जन्म (आदि० १७७ । इनके प्रति गान्धर्व-विवाहका समर्थन (आदि० ७३ । १)। ये वसिष्ठके पुत्र थे, इनके पुत्र पराशर थे और ८-१४)। दुष्यन्तके साथ इनके विवाहकी शर्त (आदि० पराशरके पुत्र व्यास इनके पौत्र लगते थे (शान्ति. ७३ । १५-१७)। दुभ्यन्तके साथ इनका गान्धर्व विवाह ३४९ । ६-७)।ये उत्तर दिशाके ऋषि थे, इनका ( आदि० ७३ । १९.२० )। कण्वके प्रति इनके नामान्तर वासिष्ठ (अनु. १६५ । ४४)। द्वारा अपने गुप्त विवाहके वृत्तान्तका निवेदन (आदि. शक (इन्द्र)-बारह आदित्यों से एक (भादि. ६५ । ७३ । २४ के बाद)। कण्वद्वारा इनके विवाहका १५)।
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