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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रञ्जय ( ३३९ ) शमीक - शत्रुञ्जय-(१) सौवीरदेशका एक राजकुमार, जो जयद्रथ- नन्दिनीने शबरोंकी सृष्टि की (शल्य० ४० । २१)। के रथके पीछे हाथमें ध्वजा लेकर चलता था (बन. ये मान्धाताके राज्यमें निवास करते थे और चोरी-डकैतीसे २६५ । १०)। द्रौपदी-हरणके समय अर्जुनद्वारा जीविका चलाते थे (शान्ति०६५।१३-१५)। दक्षिण इसका वध (वन० २७१ । २७)। (२) धृतराष्ट्रका भारतमें जन्म लेनेवाले शबर आदि म्लेच्छ माने गये हैं पुत्र, इसे दुर्योधनने भीष्मजीकी रक्षाका कार्य सौंपा था (शान्ति० २०७।४२)। भगवान् शंकर किरातों और (भीष्म ५१ । ८) । भाइयोसहित इसने पाँच शबरोंका भी रूप ग्रहण कर लेते हैं (अनु. १४।१४१केकयराजकुमारोंपर आक्रमण किया था (भीम० ७९ । १४२) । शबर पहले क्षत्रिय थे, परंतु ब्राह्मणों के अमर्षसे ५६)। भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १३७। शूद्रत्वको प्राप्त हो गये (अनु. ३५। १७-१८)। २९-३०)। (३) कौरवपक्षका योद्धा, कर्णका भाई, बहुत से क्षत्रिय परशुरामजीके भयसे गुफाओंमें छिपे रहकर जिसका अर्जुनने वध किया था (द्रोण. ३२। ६.)। स्वधर्मको भी छोड़ बैठे । ब्राह्मणोंका उन्हें दर्शन नहीं हुआ। (४) कौरवाक्षका योद्धा, जो अभिमन्युद्वारा मारा जिससे वे पुनः अपने धर्मको न जान सके और शबर आदिगया था (द्रोण०४८। १५-१६)। (५)द्रुपदका एक के सइवाससे वैसे ही बन गये (आश्व० २९ । १५-१६)। पुत्र, जिसे अश्वत्थामाने मार गिराया था (द्रोण० १५६ । शबल-कश्यपद्वारा कद्रूके गर्भसे उत्पन्न एक नाग (आदि. १८.)। (६) सौवीरदेशके नरेश, जिन्हें भारद्वाज ३५।७)। कणिकने राजधर्म एवं कुटनीतिका उपदेश किया था। शबलाक्ष-एक दिव्य महर्षि, जो भीष्मको देखनेके लिये (शान्ति.१४. अध्याय)। आये थे ( अनु० २६ । ७)। शत्रुञ्जया-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६।६)। शबलाश्व-ये महाराज कुरुके पौत्र तथा ( अश्ववान् ) शत्रुतपन-शत्रुसंतापी एक दानव, जो कश्यपपत्नी दनुके। अविक्षित्के पुत्र थे । इनके सात भाई और थे, जिनके गर्भसे उत्पन्न हुआ था (भादि० ६५ । २९)। नाम हैं-परीक्षित्, आदिराज, विराज, शाल्मलि, उच्चैःशत्रुन्तप-दुर्योधनकी सेनाका एक राजा, कौरवोद्वारा विराट- श्रवाः भङ्गकार और जितारि (आदि. ९४ । ५२-५३)। की गौओंके अपहरणके समय अर्जुनदारा इसका वध शम-(१) अहः' नामक वसुके चार पुत्रोंमेंसे एक शेष (विराट. ५४ । ११-१३)। तीनके नाम है--ज्योति, शान्त और मुनि (आदि. शत्रुसह-धृतराष्ट्रका एक पुत्र, जो अर्जुनसे कर्णकी रक्षाके १६ । २३)। (२) धर्मके तीन श्रेष्ठ पुत्रोंमेंसे एक लिये युद्ध में उनके सम्मुख गया था (विराट०५४।)। शेष दोके नाम हैं-काम और हर्ष, इनकी भार्याका नाम भाइयोसहित इसने पाँच केकयराजकुमारोंपर आक्रमण प्राप्ति' है (आदि०६६ । ३२-३३)। किया था (भीम. ७९ । ५६)। भीमसेनद्वारा इसका शमठ-एक विद्वान् ब्राह्मण, जिन्होंने युधिष्ठिरको अमूर्तरयाके वध (द्रोण. १३७ । २९-३०)। पुत्र राजा गयके यज्ञका वृत्तान्त सुनाया था ( बन० शनैश्चर-एक ग्रह, जो ब्रह्माजीकी सभामें रहकर उनकी ९५ । १७-२९)। उपासना करते हैं (सभा० ११ । २९)। ये महातेजस्वी शमीक-(१) एक ऋषि, जो गौओंके रहने के स्थानमें और तीक्ष्ण स्वभाववाले ग्रह हैं। ये जब रोहिणी नक्षत्रको बैठते थे और गौओंका दूध पीते समय बछडोंके मुखसे पीड़ित करते हैं, तब जगत्के लिये पीड़ादायक होते हैं जो फेन निकलता थाउसीको खा-पीकर तपस्या करते थे। (उद्योगः १४३ । ८)। ऐसा योग आनेपर संसारके ये मौनव्रतका पालन करनेवाले थे। इनके पास भूखे-प्यासे लिये महान् भयकी प्राप्ति सूचित होती है (भीष्म० २। परीक्षित्का आगमन और उनके द्वारा इनके कंधेपर मरे १२)। ये भावी युगमें मनुके पदपर प्रतिष्ठित होनेवाले हुए सर्पके रखे जानेका वृत्तान्त (आदि० ४०।10हैं (शान्ति ३४९ । ५५) । नित्य स्मरणीय देवताओंमें २१)। इनके पुत्रका नाम शृङ्गी' ऋषि था ( आदि. शनैश्चर ग्रहका भी नाम है (अनु० १६५। १७)। ४० । २५) । इनका अपने पुत्रको फटकारना और शबर-एक म्लेच्छ जाति, जो वसिष्ठ जीकी नन्दिनी नामक राजाकी महत्ता एवं आवश्यकता बतलाना (आदि. गायके गोबर और मूत्रसे उत्पन्न हुई थी (आदि. ४१ । २०-३३) । क्रोधकी निन्दा एवं क्षमाकी १७४ । ३५-३०)। शबर दक्षिण भारतका एक जनपद प्रशंसा करते हुए इनका अपने पुत्रको संयममें रहकर है (भीष्म• ५० । ५३) । सात्यकिने कौरव-सेनाका क्रोधको मिटानेके लिये आदेश देना (आदि. ४२। संहार करते समय सहसों शबरोंकी लाशोंसे धरतीको पाट ३-१२)। इनका गौरमुख नामक शीलवान् शिष्यको दिया था (द्रोण. ११९ । ४६)। वसिष्ठजीकी आज्ञासे संदेश देकर राजा परीक्षित्के पास भेजना (आदि. For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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