SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहिच्छत्र ( ३० ) आदित्य अहिच्छत्र-उत्तर पाञ्चालवर्ती राज्य । यह द्रोणाचार्यके आद्धिक-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक (अनु. अधिकारमें था । इसे आचार्य द्रोणने अर्जुनद्वारा द्रुपदको ४ । ५४ )। पराजित करके प्राप्त किया था (आदि० १३७ । ७३-७६)। आजगर-अजगर वृत्तिसे रहनेवाले एक मुनि, जिनके साथ अहिच्छत्रा-एक प्राचीन नगरी, जो अहिच्छत्र राज्यकी प्रह्लादका संवाद हुआ था (शान्ति० १७९ । २)। राजधानी थी । अर्जुनने द्रुपदको जीतकर इसे गुरुदक्षिणा- आजगरपर्व वनपर्वका एक अवान्तरपर्व ( १७६ से १८१ में द्रोणाचार्यको दिया था (आदि० १३७ । ७३-७७)। अध्याय तक )। अहिता-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी ( भीष्म०९।२१)। आजगरव्रत-आजगर मुनिद्वारा आचरित अवधूत धर्म -ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक । ये सुवर्णके रक्षक हैं (शान्ति० १७९। १८-३६)। (उद्योग० ११४ । ४)। ग्यारह रुद्रोंमें इनके नाम अनेक आजगव-महाराज मान्धाताका धनुष (वन० १२६ । ३३. स्थलोपर आये हैं जैसे (शान्ति० २०८ । १९-२०)। ३४ )। महाराज पृथुका धनुष (द्रोण० ६९ । १३ ) अहोवीर्य-वानप्रस्थ धर्मका पालन करनेवाले एक मुनि अर्जुनके गाण्डीव धनुषका नामान्तर (द्रोण० १४५ । (शान्ति० १४४ । १७)। ९४)। आ आजमीढ़-अजमीढ़वंशमें उत्पन्न होनेवाले, कौरव-पाण्डव आकर्ष-आकर्ष' नामक देश तथा वहाँके निवासी ( सभा० ( आदि० १७२ । ५० के बाद दाक्षिणात्य पाठ )। ३५ । ११)। आजानेय-घोड़ोंकी एक उत्तम जाति (वन० २७० । आकाशजननी-परकोटेमें बने हुए छोटे-छोटे छिद्र, जिसके । १०)। रास्ते तोपोसे गोलियाँ छोडी जाती हैं (शान्ति० ६९। आञ्जनककुल-गजराजोंकी सेनाका नाम । सात्यकिद्वारा वर्णन (द्रोण. ११२ । १७-१८)। आकृति-सुराष्ट्र देशका राजा । कौशिकाचार्य सहदेवद्वारा आटवीपुरी-एक प्राचीन नगर, जिसे माद्रीकुमार सहदेवने इनकी पराजय ( सभा० ३१ ॥६१)। जीता था (सभा० ३१ । ७२)। आकृतीपुत्र-आकृती' नामवाली माताका पुत्र सनिपर्वा । आडम्बर-धाताद्वारा स्कन्दको दिये गये पाँच पार्षदों से एक पाण्डव-पक्षीय योद्धा, जो भगदत्तके द्वारा मारा गया (शल्य. ४५। ३९)। (द्रोण० २७ । ५०-५२)। आतक-कौरव्यकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके आक्रोश-महोत्थ देशका राजा, जिसे नकुलने जीता था सर्पसत्रमें जला था ( भादि. ५७ । १३)। (सभा० ३२ । ५-६)। आत्मा-(१) दिवः पुत्र आदि विवस्वान्के पुत्रों या स्वआग्निवेश्य-एक प्राचीन महर्षि, जिन्होंने बृहस्पतिसे कवच रूपोंमेंसे एक ( आदि० ।। ४२) (२) नित्य, अवितथा उसे बाँधनेकी विद्या ( मन्त्रयुक्त विधि) प्राप्त की, नाशी, एक, शुद्ध-बुद्ध आत्मा एवं परमात्मा(भीष्म०२६ । जो धनुर्वेदके आचार्य और द्रोणाचार्यके गुरु थे (द्रोण. ११-३०)। ९४ । ६७-६८)। आत्रेय-(१) एक प्राचीन ऋषि, जो जनमेजयके सर्पसत्रआग्रायण-भानु (मनु ) नामक अग्निके चौथे पुत्र के सदस्य थे ( आदि ५१ ) (२) महर्षि (वन० २२१ ।१३)। वामदेवका शिष्य ( वन. १९२ । ४६) । (३) आग्रेय-एक गणतन्त्र राज्य, जिसे कर्णने जीता था ( वन० भारतवर्षका एक जनपद ( भीष्म ९ । ६८ )। • २५४ । १९-२१)। (४) एक परम प्राचीन महर्षि । इनके द्वारा शिष्योंको आङ्गरिष्ठ-प्राचीन नरेश । अपने द्वारा मोहवश पाप हो जाने- निर्गुण ब्रह्मका उपदेश दिया गया ( अनु० १३७ । के कारण उसके प्रायश्चित्तके विषय में कामन्दक मुनिसे राजाका प्रश्न (शान्ति० १२३ १३-१४)। आत्रेयी-एक नदी (सभा० ९ । २२)। आङ्गिरसी एक ब्राह्मणकी पतिव्रता पत्नी । राक्षसभावापन्न आथर्वण-एक मुनि । स्वप्नमें श्रीकृष्णसहित शिवजीके पास कल्माषपादद्वारा इसके पतिका भक्षण । इसके द्वारा कल्मा- जाते हुए अर्जुन इनके स्थानपर गये थे (द्रोण०००। षपादको पत्नी-समागम करते ही मृत्यु होने एवं वशिष्ठ- ३२)। द्वारा पुत्र प्राप्त होनेका शाप ( आदि. १८१ । १६. आदित्य-(१) इनकी संख्या बारह है । इनके पिताका २२)। नाम कश्यप और माताका नाम अदिति है। इनमें इन्द्र For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy