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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदित्यकेतु आरुणि सबसे बड़े और विष्णु ( वामन ) सबसे छोटे हैं ( आदि. ३२ । ९-१० ) । समुद्रतटवर्ती गृहोद्यान तथा सिन्धुके ६६ ॥ ३६)। (२) एक विश्वेदेव ( अनु. ९१। उस पार ( आभीर देशमें ) निवास करनेवाली आभीर ३६)। जातिके लोग । ये लोग युधिष्ठिरके यहाँ भेंट लेकर आये आदित्यकेतु-धृतराष्ट्र के पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ६७ । थे (सभा० ५१। ११-१३)। मार्कण्डेयजीका कहना १०२)। भीमसेनद्वारा इसका वध (भीष्म० ८८ । २८)। है कि कलियुगमें आभीर, शक आदि म्लेच्छगण भारतवर्षके आदित्यतीर्थ-सरस्वतीतटवर्ती एक प्राचीन तीर्थ (शल्य. विभिन्न भागोंके राजा होंगे ( वन० १८८ । ३५-३६)। शूर आभीरगण द्रोणनिर्मित गरुडव्यूहमें ग्रीवाके स्थानमें ४९ । १७) । इसकी विशेष महिमा ( शल्य. खड़े किये गये थे (द्रोण. २० । ६)। शूद्रों और अध्याय ५०)। आभीरोंसे द्वेष होनेके कारण विनशनतीर्थमें सरस्वती नदी आदित्यपर्वत-हिमालयका एक शिखर, शिवजीका निवास अदृश्य हो गयी थी ( शल्य० ३७ । १-२ )। स्थान (शान्ति० ३२७ । २२)। आभीर पहले क्षत्रिय थे। परशुरामजीके भयसे पर्वतोंकी आदिपर्व-महाभारतका पहला पर्व । गुफाओंमें छिप गये और अपने कर्म छोड़ बैठे; अतः उनकी आदिराज-पूरुवंशीय महाराज कुरुके पौत्र तथा अविक्षित्के संतानें शूद्रत्वको प्राप्त हुई (आश्व० २९ । १६)। पुत्र ( आदि० ९४ । ५२ )। इन्हीं आभीरोने द्वारकावासिनी स्त्रियोंको साथ लेकर जाते आदिष्ठी-जिन्हें गुरुने नियत वर्षातक ब्रह्मचर्यवत पालनका ___ हुए अर्जुनपर डाका डाला था (मौसल०७।४७-६३)। आदेश दिया हो ( अनु० २२ । १७)। (२) आभीर देश ( भीष्म० ९ । ४७-६७)। आद्यकठ-एक प्राचीन ऋषिः जो राजा उपरिचरके यज्ञके आमरथ-भारतवर्षका एक जनपद ( भीष्म० ९ । ५४ )। एक सदस्य थे ( शान्ति० ३३६ । ९)। आयाति-नहुपके पुत्र । ययातिके भ्राता ( आदि. आनन्द-स्कन्दक, एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ६५)। ७५ । ३०)। आनर्त-एक प्राचीन देश, जिसे अर्जुनने जीता था ( सभा० आयु-(१) पुरूरवाके द्वारा उर्वशीके गर्भसे उत्पन्न एक राजा, जिन्होंने स्वर्भानवीके गर्भसे नहुप आदिको जन्म आनुशासनिकपर्व-महाभारतका एक पर्व । दिया ( आदि० ७५ । २४ )। इन्हें पुरूरवासे खङ्गकी आन्ध्र-दक्षिणका एक देश, जिसे सहदेवने दूतोंद्वारा ही वशमें प्राप्ति (शान्ति० १६६ । ७४)। इन्होंने तपोबलसे ही कर लिया था ( सभा०३१।७१)। समाजमें प्रतिष्ठा प्राप्त की ( शान्ति२९६ । १५)। आपगा-नदी एवं तीर्थ, जहाँ एक ब्राह्मणको भोजन करानेसे इनके द्वारा मांस भक्षणका निषेध (अनु० ११५ । ५९)। कोटि ब्राह्मणों को भोजन करानेका फल प्राप्त होता है (२)एक मण्डुकराज, जो सुन्दरी सुशोभनाका पिता (वन० ८३ । ६८)। था । इसने इश्वाकुवंशी राजा परीक्षित्को अपनी कन्या आपद्धर्मपर्व-शान्तिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय अर्पित की थी (वन० १९२ । ३२-३५)। मण्डूकोको ५३१ से १७३ तक)। मारनेका आदेश रोकनेके लिये इसकी राजासे आपव- (१) वसिष्ठ मुनिका नामान्तर ( आदि. प्रार्थना ( वन० १९२ । २७)। इसके द्वारा अपनी कन्याको शाप (वन. १९२ । ३५)। ९९ । ५)। (२) एक प्राचीन ऋषि । अग्निके साथ आकर कार्तवीर्यद्वारा अपने आश्रमके जलाये जानेपर आयोदधौम्य-एक प्रसिद्ध ऋषि । इनके आरुणि, इनका राजाको शाप देना (शान्ति० ४९। ४२-४३)। उपमन्यु तथा वेद नामके तीन प्रसिद्ध शिष्य थे (आदि. ३।२१)। हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्णसे आपस्तम्ब-एक प्रसिद्ध ऋषि । इनके द्वारा राजा द्युमत्सेनको मार्गमें इनका मिलना ( उद्योग० ८३ । ६४ के बाद आश्वासन (वन० २९८ । १८)। दाक्षिणात्य पाठ)। आपूरण-एक प्रमुख नाग, कश्यपका वंशज (आदि०३५। पारणेयपर्व-वनपर्वका एक अवान्तरपर्व (अध्याय ३११ से ६; उद्योग० १०३ । १०)। ३१५ तक)। आप्त-एक प्रमुख नाग, कश्यपका वंशज (आदि० ३५। आरालिक-मतवाले हाथियोंको वशमें करनेवाला गजशिक्षक 5 उद्योग० १०३ ॥१२) (विराट० २।९)। आभीर-(१) सिन्धु और सरस्वती-तटवर्ती आभीर गण- आरुणि-(१) आयोदधौम्य ऋषिके शिष्य । पाञ्चालदेशतन्त्रके निवासी, जिन्हें नकुलने जीता था (सभा निवासी । इनकी गुरुभक्ति, इनको गुरुका आशीर्वाद तथा For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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