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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टविवाह ( २९ ) अहल्याहद ParAmAnnnnn विचार करते हुए भीष्मके विचारका समर्थन ( भीष्म० उपदेश दिया (सभा० ७८ । १५)। आदित्यतीर्थकी ११९ । ३७)। महिमाके प्रसङ्गमें इनके चरित्रका वर्णन (शल्य० ५० अविवाह-ब्राह्म, दैव, आप, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, अध्याय)। जैगीपव्य मुनिसे समताके विषयमें इनका राक्षस तथा पैशाच -ये आट विवाह (आदि० ७३।८-९)। प्रश्न (शान्ति० २२९ । ५)। नारदजीके सृष्टिविषयक प्रश्नका उत्तर (शान्ति० २७५ । ४-३९) । शिवमहिमाअष्टाकपाल-आठ कपालोंद्वारा संस्कारपूर्वक तैयार किया। के विषयमें इनका युधिष्ठिरसे अपना अनुभव बताना हुआ पुरोडाश ( शान्ति० २२१ । २४ )। (अनु० १८ । १७-१८)। अष्टावक्र-महर्षि कहोडके द्वारा उद्दालककुमारी सुजाताके असितध्वज-कश्यप और विनताके एक पुत्र, जो अर्जुनके गर्भसे उत्पन्न एक मुनि । पिताके अध्ययनमें बालकका। जन्मोत्सवमे पधारे थे (आदि० १२२ । ७३)। दोष निकालना (वन० १३२ । ८-१०)। इनका राजा जनकके यज्ञमें जाना (वन० १३२ । २३)। द्वारपाल. असितपर्वत-आनर्मदेशमें नर्मदाके तटपर स्थित एक पर्वत से वार्तालाप ( वन० १३३ । ५-१६)। राजा जनकमे (वन० ८९ । ११)। प्रश्नोत्तर (वन० १३३ । २०-३०)। बंदीके साथ असिता-एक अप्सरा, जो अर्जुनके जन्मोत्सवमें आयी थी शास्त्रार्थ करके उसे हराना (वन०१३४ । ३-२१)। समङ्गामें (आदि० १२२ । ६३)। स्नान करनेसे इनके अङ्गीका सीधा होना (वन० १३४॥३९) असिपत्रवन-एक नरक, जिसके मायामयस्वरूपका युधिष्ठिरमहर्षि वदान्यसे उनकी कन्या माँगना (अनु०१९।११)। को दर्शन कराया गया था (स्वर्गारोहण० २ । २३)। वदान्यके कहनेसे इनका उत्तर दिशाकी ओर प्रस्थान यमलोकका असिपत्र नामक वन (शान्ति० ३२१। ३२)। ( अनु० १९ । २७)। कुबेरके भवनमें विश्राम (अनु० .. असिलोमा-कश्यपपत्नी दनुके पुत्रोमेंसे एक(आदि०६५।२३) १९। ४०-४१)। नारी-रूपधारिणी उत्तर दिशाके साथ संवाद (अनु० १९ । ७३ से २१ । ११ तक)। असुरा-कश्यप और प्राधाकी आठ पुत्रियमिसे एक (आदि. वदान्य ऋषिसे अपना सब समाचार कहना ( अनु० ६५ । ४१)। २१ । १५-१६) । वदान्यकी कन्या सुप्रभाके साथ इनका अस्ताचल-पश्चिम दिशाका एक पर्वत (उद्योग० ११०।६)। विवाह ( अनु० २१ । १८)। अस्ति-मगधनरेश जरासंधकी पुत्री । कंसकी पत्नी । सहदेवअष्टावक्रतीर्थ-इसमें तर्पण करके बारह दिनीतक निराहार की बहिन । इसकी दूसरी बहिनका नाम 'प्राप्ति' था । वह रहनेसे नरमेधयज्ञका फल मिलता है (अनु० २५ । ४१)। भी कंसकी ही पन्नो थी ( सभा० १४ । २९-३२)। असमक्षा-सगर और शैव्यासे उत्पन्न एक इक्ष्वाकुवंशो अहंयाति-पुरुवंशी राजा संयाति तथा रानी वराङ्गीके पुत्र । राजा, जो प्रजाके बालकोंको सरयू नदीमें फेंक देता था। इनके द्वारा भानुमतीके गर्भसे सार्वभौम नामक पुत्रकी प्रजाकी आर्त पुकारसे पिघलकर सगरने मन्त्रीद्वारा उत्पत्ति हुई ( आदि० ९५ । १४-१५)। असमञ्जाको निकलवा दिया (वन० १०७। ४३; शान्ति. अह-धर्मपुत्र । आठ वसुओंमेंसे एक । इसको माताका नाम ५७ । ७-९)। 'रता' है (आदि० ६६ । १७-२०)। असिनी-भारतवर्षके पंजाब प्रान्तको एक नदी, चन्द्रभागा अहः ( या अहन् )-एक तीर्थ, जिसमें स्नान करनेसे सूर्यया चिनाव (भीष्म० ९।२३)। लोककी प्राप्ति होती है (वन० ८३ । १००)। असित-(१) एक राजा (द्रोण. ६२ । ११; शान्ति. २९ । ८८)। (२) एक ऋषि (शान्ति. अहर-कश्यप और दनुके पुत्रों से एक (आदि०६५।२५)। ४७ । ७)। अहल्या-महर्षि गौतमकी पत्नी । इनका उत्तङ्कसे गुरुदक्षिणाअसितदेवल-एक प्रसिद्ध ऋषि । महाभारतमें अनेक स्थलों के रूपमें सौदासकी रानीके कुण्डल माँगना ( आश्व० पर इनका नाम आया है। इन्होंने पितरोंको पंद्रह लाख ५६ । २९) । गौतम ऋपिसे उत्तङ्कके कल्याणके लिये श्लोकवाला महाभारत सुनाया था (आदि० १ । १०७)। कहना (भाश्व० ५६ । ३४ ) । इन्द्रद्वारा इनकी धर्षणा इन्होंने जनमेजयके सर्पसत्रमें सदस्यता ग्रहण की थी (शान्ति०३४२ । २३)। (आदि० ५३ । ८) । राजा युधिष्ठिरके अभिषेककालमें अहल्याहद-महर्षि गौतमके तपोवनमें अहल्याद नामक व्यास और नारदजी आदिके साथ ये भी उपस्थित थे तीर्थमें स्नान करनेमे मनुष्यको परमगति प्राप्त होती है (सभा० ५३ । १०)। इन्होंने अञ्जनपर्वतपर युधिष्ठिरको (वन० ८४ । १०९)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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