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अश्वसेन
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अश्वसेन -तक्षक नागका पुत्र ( आदि ० २२६ । ९ ) । खाण्डववन-दाह के समय इसकी माताका अर्जुनद्वारा वध ( आदि० २२६१८ ) । इन्द्रद्वारा इसकी रक्षा (आदि० २२६।९ ) । अर्जुनद्वारा इसे आश्रयहीनताका शाप (आदि ० २२६ । ११ ) । कर्णद्वारा छोड़े गये सर्पमुख वाणमें प्रविष्ट होकर इसका अर्जुनके किरीटको दग्ध करना ( कर्ण ० ९० ३३ ) । कर्णद्वारा अस्वीकार किये जानेपर इसका अर्जुनपर आक्रमण ( कर्ण० ९०११० ) | श्रीकृष्णद्वारा परिचय पाकर अर्जुनद्वारा इसका वध ( कर्ण० ९० / ५४ ) ।
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अश्वहृदय - घोड़ोंका हर्ष एवं उत्साह बढ़ानेवाला एक मन्त्र ( द्रोण० १६।१८ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । अभ्वातक- एक देश ( भीम० ५१।१५ ) । अश्विनीकुमार - नासत्य और दस नामक दो भाई, जो देवताओंके अन्तर्गत हैं | त्वष्टाकी पुत्री संज्ञाने अश्विनीरूप धारण करके भगवान् सूर्य के अंशसे अन्तरिक्ष में इन्हें उत्पन्न किया । ये संज्ञाकी नाकसे निकले हैं ( आदि० ६६ । ३५; अनु० १५० १७-१८ ) । ये ब्रह्मा आदि अन्य देवताओंके क्रमसे स्वयं भी अण्डसे उत्पन्न हुए ( आदि ० (१३४) । आयोदधौम्य के शिष्य उपमन्युके द्वारा इनकी स्तुति ( आदि० ३१५७-६८ ) । इनके द्वारा उपमन्युको वरदान (आदि० ३७३ ) । इन्होंने माद्रीके गर्भ से नकुल और सहदेवको उत्पन्न किया (आदि०९५।६३) । ये देवताओंके साथ विमानपर बैठकर द्रौपदीका स्वयंवर देखने आये थे ( आदि० १८६६ ) | खाण्डववन- दाहके समय श्रीकृष्ण-अर्जुनसे युद्ध के लिये आये हुए देवताओं में ये भी थे (आदि० २२६।३३ ) । इन्होंने सुकन्यासे अपनेको पतिरूपमें वरण करनेका आग्रह करके उसके सतीत्वकी परीक्षा ली (बन० १२३|१० ) । अपनेको देवताओंका श्रेष्ठ वैद्य बताया ( वन० १२३|१२ ) । इनके द्वारा च्यवनको यौवनदान तथा सुकन्याद्वारा पतिकी पहचान ( वन० १२३/१३ - २१ ) । च्यवन मुनिके प्रभाव से इनका शर्याति यज्ञमें सोमपान (वन०अ० १२४से अ०१२५ | १०) | इन अश्विनीकुमारोंने मान्धाताको पिताके पेटसे बाहर निकाला (द्रोण० ६२४ ) । इनके द्वारा स्कन्दको वर्धन और नन्दन नामक दो पार्षद प्रदान ( शल्य० ४५|३८) । इन्हें घीकी आहुति तथा उसके दानसे अधिक प्रसन्नता होती है (अनु०६५/७ ) । आश्विनमासमें ब्राह्मणको घी दान करनेवाले पुरुषको अश्विनीकुमार रूप देते हैं ( अनु०६५/१० ) । इक्कीस तथा उन्तीस दिनोंपर एक समय भोजन करनेवालोंको अश्विनीकुमारोंके लोककी प्राप्ति होती है (अनु० १०७ । ९५, १२६ ) । कीर्तनीय नामोंमें नाम-निर्देश ( अनु० १५०/८१ ) ।
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अष्टवसु
अश्विनीकुमारतीर्थ - जिसमें स्नान करनेमे रूपकी प्राप्ति होती है ( वन० ८३।१७ ) । अश्विनीतीर्थ - यहाँ स्नान करनेसे मनुष्य रूपवान होता है (अनु० २५|२१ ) ।
अटक - एक प्राचीन राजर्षि ( आदि० ८६ । ५ ) । ये राजा ययाति के दौहित्र थे (आदि० ८९ । १३) । अष्टक और राजा ययातिका संवाद ( आदि० अ० ८८ से९२ अ० ) । ययातिकी पुत्री माधवीके गर्भ से विश्वामित्रद्वारा इनकी उत्पत्ति हुई थी ( उद्योग० ११९ । १८ ) । इनके द्वारा ययातिको अपने पुण्यफलका दान (उद्योग ० १२२।१३-१४) । ययाति एवं शिवि आदि राजाओं के साथ इनका स्वर्गगमन ( उद्योग० ९३ । १६ के बाद दा० पाठ) । स्वर्ग जाते समय इनके द्वारा शिविकी श्रेष्ठता विषयमें ययातिसे प्रश्न ( उद्योग ० ९३ । १७ ) । देवर्षि नारदद्वारा इनके स्वर्गसे प्रथम गिरनेका वर्णन ( वन० १९८ । ४-५ ) । इन्हें महाराज प्रतर्दनद्वारा खङ्गकी प्राप्ति ( शान्ति० १६६ ॥ ८० ) । अगस्त्यजीके कमलोकी चोरी होनेपर इनका शपथ ( अनु० ९४ | ३६ ) | प्रातः सायं स्मरण करने योग्य तथा पापनाशक राजाओंमें अष्टककी भी गणना ( अनु० १६५ | ५६ ) ।
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अष्टजिह्न - स्कन्द के सैनिकोंमेंसे एक ( शल्य० ४५ | ६२) । अष्टवसु - गणदेवता । धर्मद्वारा दक्षकी विभिन्न कन्याओं से उत्पन्न | इनकी संख्या आठ है, जिनके नाम इस प्रकार हैं-ध, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्यूष तथा प्रभास ( आदि० ६६ । १७ - २० ) । पुराणों में इनके नामों के सम्बन्धमें मतभेद पाया जाता है। जैसे विष्णुपुराणके अनुसार आप ध्रुव, सोम, धर्म, अनिल, अनल, प्रत्यूष तथा प्रभास (विष्णु० १ । १५ ) । भागवत के अनुसारद्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अग्नि, दोप, वसु और विभावसु (भागवत ६ । ६ ) हरिवंशके अनुसार आफ घर, ध्रुव, सोम, अनिल, अनल, प्रत्यूष तथा प्रभास ( १/३ ) | इससे परस्पर कोई विरोध नहीं समझना चाहिये; क्योंकि एक व्यक्तिके अनेक नाम हो सकते हैं और विभिन्न स्थानोंमें उसे अलग-अलग नामोंसे कहा जा सकता है। इन सबका विशेष परिचय उन-उन नामोंमें देखना चाहिये । गङ्गाके गर्भ से शान्तनुद्वारा इन सबका जन्म ( आदि० ९८ । १२ ) वसिष्ठके द्वारा इन सबको मनुष्ययोनिमें जन्म लेनेका शाप ( आदि ० ९९ । ३२ ) । प्रार्थना करनेपर 'द्यो' के अतिरिक्त इन सबको यथाशीघ्र शापसे मुक्त होनेका वसिष्ठजीद्वारा आश्वासन ( आदि० ९९ । ३८-३९ ) । इनके द्वारा परशुरामजी से युद्ध करते समय भीष्मको प्रखापास्त्रका दान ( उद्योग० १८३ । ११ - १३ ) । मृत्युके लिये