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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वत्थामा ( २७ ) अश्वशिरा २१)। अर्जुनके साथ युद्ध (शल्य. १४ अध्याय)। सत्तम, द्रौणि, द्रौणायनि, द्रोणपुत्र, द्रोणसू नु, गुरुपुत्र, इसके द्वारा पाञ्चाल-महारथी सुरथका वध (शल्य० गुरुसुत, भारताचार्यपुत्र । १४ । ४३)। द्वैपायन सरोवरपर जाकर दुर्योधनके सामने (२) मालवनरेश इन्द्रवर्माका हाथी, जो भीमसेनद्वारा सोमकोंके वधकी प्रतिज्ञा करना (शल्य. ३० । १९- मारा गया था (द्रोण० १९० । १५)। २२)। सेनासहित युधिष्ठिरके वहाँ पहुँचनेपर हट जाना अश्वनदी-कुन्तिभोज देशकी एक नदी, जो चर्मण्वतीमें (शल्य. ३० । ६३)। दुर्योधनकी अवस्थापर विषाद मिली है। इसीमें कुन्तीने शिशु कर्णको पिटारीमें बंद करके करना (शल्य० ६५ । १३-२०)। पाञ्चालोंके वधकी छोड़ा था (वन० ३०८ । २२)। प्रतिज्ञा करना (शल्य० ६५।३४-३७ )। सेनापति-पदपर अश्वपति-(१) कश्यपपत्नी दनुके पुत्रों से एक (आदि० अभिषिक्त हो दुर्योधनको हृदयसे लगाकर युद्ध के लिये ६५।२१)। (२)मद्रदेशके राजा । संतान प्राप्ति के लिये प्रस्थित होना (शल्य. ६५ । १४)। उल्लूका कौवोपर ___ इनकी तपस्या और सावित्रीकी आराधना (वन०२९३ । आक्रमण देखकर इसके मनमें कर संकल्पका उदय होना १-८ )। इनकी सावित्री देवीसे घर-याचना (वन. (सौप्तिक० १ । ४५-५६)। कृतवर्मा और कृपाचार्यसे २९३ । १४)। इन्हें सावित्री नामकी कन्या प्राप्त हुई सलाह लेना (सौप्तिक० ।। ५९-६९) । कृतवर्मा (वन० २९३ । २३)। इनका सावित्रीको स्वयं वर खोजनेके और कृपाचार्यको अपना क्रूरतापूर्ण निश्चय बताना (सौप्तिक० लिये भेजना (वन० २९३ । ३३)। नारदजीसे सत्यवान्के ३ अध्याय ) । कृपाचार्यके समझानेपर उन्हें उत्तर देना गुण-दोषके विषयमें प्रश्न (वन० २९४ । १४)।राजषि (सौप्तिक० ४।२२-३४)। कृपाचार्यके समझानेपर उन्हें द्युमत्सेनसे सावित्रीको पुत्रवधू बनानेके लिये प्रार्थना उत्तर देना (सौप्तिक० ५। १८-२९)। कृपाचार्य और (बन० २९५ । १०-१२) । इन्हें मालवीके गर्भसे सौ कृतवर्माको अपना निश्चय बताना ( सौप्तिक० ५ । ३४ पुत्रोंकी प्राप्ति (वन० २९९ । १३)। ३७ ) । पाण्डवोंके शिबिरद्वारपर एक अद्भुत पुरुषसे युद्ध और शस्त्रोंके अभावमें चिन्तित होकर भगवान् अश्ववन्ध-घोड़ोंको वशमें करनेवाला सवार (विराट० ३।३)। शिवकी शरण लेना (सौप्तिक० ६ अध्याय ) । इसके अश्वमेध-प्राचीन देश । इस देशके राजाका नाम रोचमान द्वारा भगवान् शिवकी स्तुति (सौप्तिक० । २-१२)। मा. जिसे दिग्विजयके समय भीमसेनने बलपूर्वक जीत इसके सामने अग्निवेदी और भूतगणोंका प्राकट्य ( सौप्तिक लिया था (सभा० २९।८)। ७ । १३-१५)। इसके द्वारा भगवान् शिवको आत्म- अश्वमेधदत्त-शतानीककी पत्नी विदेहराजकुमारीके गर्भसे समर्पण ( सौप्तिक० ७ । ५२) । भगवान् शिवद्वारा उत्पन्न पुत्र (आदि० ९५।८६)। इसे खड्गकी प्राप्ति ( सौप्तिक० ७ । ६६) । इसके द्वारा अश्वमेधपर्व-आश्वमेधिकपर्वका एक अवान्तरपर्व (१--१५ रातमें सोये हुए पाञ्चालों, सोमकों और द्रौपदी-पुत्रोंका संहार ( सौप्तिक० ८ । १७-१३२)। दुर्योधनकी दशा अश्वरथा-गन्धमादनपर्वतके नीचे आर्टिषेणके आश्रमके पास देखकर विलाप करना ( सौप्तिक० ९ । १९-४६ )। बहनेवाली एक नदी (वन० १६०।२१)। दुर्योधनको पाञ्चालों और द्रौपदी-पुत्रोंके मारे जानेकी अश्ववती-तीनों समय स्मरण करनेयोग्य नदियों से एक खबर सुनाना (सौप्तिक. ९ । ४८-५२)। श्रीकृष्णका (अनु० १६५।२५)। इसके द्वारा अपनेसे सुदर्शनचक्र माँगनेकी चर्चा करना भश्ववान-भरतवंशी महाराज कुरुके प्रथम पुत्र । इनकी (सौप्तिक. १२ अध्याय ) । पाण्डवोंके वधके लिये माताका नाम वाहिनी' था । इनका दूसरा नाम 'अविक्षित्' ऐषीकास्त्रका प्रयोग (सौप्तिक. १३ । १९-२२)। था। इनके परीक्षित्, शबलाश्व, आदिराज, विराज, व्यासजीसे अपना अस्त्र लौटाने में अपनी असमर्थता बताना शाल्मलि, उच्चैःश्रवाः भयङ्कर तथा जितारि नामके आठ (सौप्तिक० १५। १३-१८)। व्यासजीके कहनेसे अपनी मणि अलग रखकर पाण्डवोंके गर्भपर अस्त्र छोड़ना पुत्र थे (आदि० ९४।५०-५३)। (सौप्तिक० १५ । २८-३५)। अपने अस्त्रको उत्तराके अश्वशङ्कु-कश्यपपत्नी दनुके पुत्रों से एक (आदि०६७।१०)। गर्भपर गिरनेका संकल्प करना (सौप्तिक० १६ । ६-७)। अश्वशिरःस्थान-एक पवित्र स्थान, स्वप्नमें शिवजीके पास श्रीकृष्णसे अभिशप्त हो पाण्डवोंको मणि देकर अश्वत्थामा ___ जाते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन यहाँ गये थे (द्रोण०८०।३२)। का वनको प्रस्थान (सौप्तिक. १६ । २०)। धृतराष्ट्रसे मिलकर इसका व्यासाश्रमकी ओर जाना (स्त्री०११।२। अश्वशिरा-(१)कश्यपपत्नी दनुके पुत्रोंमेंसे एक (आदि. महाभारतमें आये हुए अश्वत्थामाके नाम-आचार्य- ६५।२३)। (२)नरनारायणाश्रमके पास वैहायसकुण्डपर नन्दन, आचार्यपुत्र, भाचार्यसुत, आचार्यतनय, आचार्य- वेदपाठी भगवान् हयग्रीव (शान्ति. १२७।३)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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