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अश्वत्थामा
( २६ )
अश्वत्थामा
अश्वत्थामा-(१) कृपीके गर्भसे उत्पन्न द्रोणाचार्यका पुत्र इसका कर्णको मारनेके लिये उद्यत होना (द्रोण० १५५ । (आदि. ६३ । १०७, १२९ । ४७ )। इसका ३-९) । अर्जुनसे युद्ध करनेके लिये उद्यत दुर्योधनको जन्म शिव, यम, काम तथा क्रोधके सम्मिलित अंशसे रोकना (द्रोण. १५९ । ८४-८५) । दुर्योधनको हुआ था (आदि. ६७ । ७२)। इसका अश्वत्थामा उपालम्भपूर्ण आश्वासन (द्रोण० १६० । २-१७ ) । नाम होनेका कारण (आदि० १२९ । ४८-४९) । इसका धृष्टद्युम्नके साथ युद्धमें सेनासहित उसे पराजित करना आटेके पानीको दूध समझकर पीना और प्रसन्न होना (द्रोण. १६०।४१-५३)। इसके द्वारा घटोत्कचकी ( आदि. १३० । ५४ )। कौरवराजकुमारोंके साथ पराजय (द्रोण. १६६ । १८) । दुर्योधनसे कौरव इसका भी अपने पितासे अध्ययन (आदि. १३१ सेनाके भागनेका कारण पूछना (द्रोण. १९३१२९-३२)। अध्याय ) । युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें इसका पदार्पण
कृपाचार्यसे अपने पिताके वधका समाचार सुनकर कुपित (सभा० ३४ । ८)। कर्ण और दुर्योधनको फटकारते
होना (द्रोण. १९३ । ६८-७०)। इसका दुर्योधनके हुए इसका अर्जुनके विषयमें अपना उद्गार प्रकट करना समक्ष क्रोधपूर्ण उद्गार और नारायणास्त्रको प्रकट करना (विराट. ५० अध्याय)। अर्जुनके साथ युद्ध और (द्रोण० १९४ अध्याय ) । दुर्योधनको अपनी प्रतिज्ञा चाणोंने खाली हो जानेपर इसका उनके समक्ष नीचा सुनाना ( द्रोण. १९९ । ५-७ )। इसके द्वारा देखना (विराट० ५९ । १-१५)। दुर्योधनसे दस नारायणास्त्रका प्रयोग (द्रोण० १९९ । १५)। पुनः दिनमें पाण्डवसेनाको नष्ट करनेकी शक्तिका कथन नारायणास्त्र प्रकट करनेमें अश्वत्थामाका अपनी असमर्थता (उद्योग० १९३ । १९)। प्रथम दिनके युद्धमें इसका दिखाना ( द्रोण• २०० । २७-२९ ) । धृष्टद्युम्नको शिखण्डीके साथ द्वन्द्व युद्ध (भीष्म. १५।४६-४८)। परास्त करना (द्रोण० २०० । ४३-४४)। इसके द्वारा दूसरे दिनके युद्ध में शल्य और कृपके साथ रहकर इसका मालवनरेश सुदर्शनका वध (द्रोण० २०० । ८३)। धृष्टद्यम्न और अभिमन्युसे युद्ध करना (भीष्म० ५५।। इसके द्वारा पौरव वृद्धक्षत्रका वध (दोण. २००। ८४)। २-७)। अर्जुन के साथ जूझना (भीष्म०७३ । ६-१६)। इसके द्वारा चेदिदेशके युवराजका वध (द्रोण० २०० । इसके द्वारा शिखण्डीकी पराजय (भीष्म० ८२।३४-३८)।। ८५)। भीमसेन के साथ घोर युद्ध और उनको पराजित अनूप नरेश नीलकी पराजय (भीष्म०९४४३५-३६)। करना (द्रोण. २००। ८७-१२८)। इसके द्वारा सात्यकिके प्रहारसे इसका मूर्छित होना ( भीष्म.१०१।
आग्नेयास्त्रका प्रयोग ( द्रोण. २०१। १६-१७ )। ४६-४७ ) । विराट और द्रुपदके साथ इन्द-युद्ध
श्रीकृष्ण और अर्जुनको आग्नेयास्त्रसे मुक्त देखकर सब (भीष्म० ११०।१६) । विराट और द्रुपदके साथ कुछ मिथ्या कहते हुए उसका युद्धस्थलसे भागना द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म० १११ । २२-२७) । सात्यकिके (द्रोण. २०१ । ४५-४७)। मार्गमें व्यासजीसे भेट साथ द्वन्दू-युद्ध (भीष्म० ११६ । ९-१२)। प्रति- और उनसे श्रीकृष्ण तथा अर्जुनपर आग्नेयास्त्रका प्रभाव विन्ध्य के साथ युद्ध (द्रोण. २५ । २९-३१)। इसके
न होनेका कारण पूछना (द्रोण. २०१। ५०-५५)। द्वारा राजा नीलका वध (द्रोण० ३१ । २५-२५ )।
कर्णको सेनापति बनानेकी सलाह देना (कर्ण०१०। इसका अभिमन्युको घायल करना (द्रोण. ३७ । २४- १२-१७) । भीमसेनके साथ घोर युद्ध और मूछित ३१)। इसके ध्वजका वर्णन (द्रोण० १०५।१०-११)। होना (कर्ण० १५ अध्याय )। अर्जुनके साथ घोर अर्जुनके बाणोंसे व्याकुल होकर अश्वत्थामाका भागना
युद्ध और पराजित होना (कर्ण० अ०१६से १७ अ०तक)। (द्रोण. १३९ । १२१-१२३)। अर्जुनके साथ युद्ध पाण्ड्यनरेश मलयध्वजका वध (कर्ण० २० । ४६)। (द्रोण. १४५ अध्याय) । अर्जुनके साथ युद्ध और
पाण्डव महारथियोंको परास्त करके युधिष्ठिरको भगा देना इसकी पराजय (द्रोण० १४७ । ११)। इसके द्वारा ।
(कर्ण० ५५ अध्याय ) । अर्जुनके साथ युद्ध में पराजित अंजनपर्वाका वध (द्रोण० १५६ । ८९-९० ) । इसके होना (कर्ण० ५६ । १२१-१४२ )। धृष्टद्युम्न के वधकी द्वारा सुरथ, शत्रुजय, बलानीक, जयानीक और जयाश्व- प्रतिज्ञा करना (कर्ण०५७ । ७-१०)। धृष्टद्युम्नको परास्त का वध (द्रोण० १५६ । १८०-१८१)। इसके द्वारा करके उसे जीते-जी खींचना (कर्ण० ५९ । ३९-५३)। राजा श्रुताहका वध (द्रोण. १५६ । १८२)। इसके
अर्जुनद्वारा पराजित होना ( कर्ण० ५९ । ६०-६१ )। द्वारा हेममाली, पृषध्र और चन्द्रसेनका वध (द्रोण. अर्जुनद्वारा पराजित होना (कर्ण० ६४ । ३१-३२)। १५६ । १८३)। इसके द्वारा कुन्तिभोजके दस पुत्रोंका पाण्डवोंके साथ संधि करनेके लिये दुर्योधनसे अनुरोध वध (द्रोण० १५६ । १८३)। घटोत्कचके साथ युद्ध में (कर्ण० ८८ । २१-२९)। दुर्योधनके पूछनेपर सेनापतिके उसे पराजित करना (द्रोण. १५६ । १४४-101)। लिये शल्यका नाम प्रस्तावित करना (शल्य०६।१९
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