SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष्णुयशा ( ३२३ ) पड़ता है और विपाशा नदीके तटपर स्थित है ( वन० ज्ञान हो गया था ( अनु० ११५ । ५४-६०)। (२) १३० । ८-९)। स्वप्नमें शिवजीके पास श्रीकृष्णसहित , एक पुरुवंशीय राजा, जिसे अर्जुनने उत्तर-दिग्विजयके जाते हुए अर्जुनको विष्णुपदतीर्थ मिला था (द्रोण समय परास्त किया था (सभा० २७ । १४)। ८० । ३५-३६)। विहङ्ग-ऐरावत-कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके विष्णुयशा-युगान्तके समय कालकी प्रेरणासे सम्भल नामक सर्पसत्रमें जल मरा था (भादि. ५.। १२)।। ग्राममें किसी ब्राह्मणके यहाँ एक महान् शक्तिशाली बालक विहव्य-गृत्समदवंशी वर्चाके पुत्र, जो बितत्यके पिता थे प्रकट होगा, जिसका नाम होगा 'विष्णुयशा' कल्की । (अनु० ३० । ६१)। वह महान् बुद्धि एवं पराक्रमसे सम्पन्न, महात्मा, सदाचारी वीटा-जौके आकारकी बनी हुई काठकी मोटी गुल्ली, जो र तथा प्रजावर्गका हितैषी होगा ( वह बालक ही भगवान्का डंडेके सहारे खेलनेके काममें आती है । पाण्डवों और कल्की अवतार कहलायेगा) । मनके द्वारा चिन्तन करते कौरवोंके खेलते समय वह वीटा कुएँ में गिर पड़ी थी, ही उसके पास इच्छानुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र योद्धा और जिसे द्रोणाचार्यने सीकके बाणोंद्वारा निकाल दिया था कवच उपस्थित हो जायेंगे । वह धर्मविजयी चक्रवर्ती राजा (आदि० १३० । १७--२४)। होगा । वह उदारबुद्धि, तेजस्वी ब्राह्मण दुःखसे व्याप्त हुए इस जगत्को आनन्द प्रदान करेगा। कलियुगका अन्त बीतहव्य-शर्यातिवंशी वत्सके पुत्र, जिनका दूसरा नाम हैहय करनेके लिये ही उसका प्रादुर्भाव होगा । वही सम्पूर्ण था ( अनु० ३० । ५-७)। इनके पुत्रोंद्वारा काशीकलियुगका संहार करके नूतन सत्ययुगका प्रवर्तक होगा। नरेश हर्यश्वका वध ( अनु० ३० । १०-११) । इनके वह ब्राह्मणोंसे घिरा हुआ सर्वत्र विचरेगा और भूमण्डलमें उन पुत्रीने सुदेवको भी मार डाला (अनु० ३० । १३. सर्वत्र फैले हुए नीच स्वभाववाले सम्पूर्ण ग्लेच्छोंका संहार १४)। उन्हीं पुत्रों द्वारा दिवोदासकी भी पराजय हुई कर डालेगा (वन. १९०। ९३-९७) । उस समय (अनु० ३० । २१-२२)। काशीनरेश प्रतर्दनद्वारा चोर, डाकुओं एवं म्लेच्छोका विनाश करके भगवान इनके पुत्र का वध (अनु. ३० । ३८--४३)। इनका कल्की अश्वमेध नामक महायज्ञका अनुष्ठान करेंगे और भागकर भृगुकी शरणमें जाना (अनु०३०। ५५)। उसमें यह सारी पृथ्वी विधिपूर्वक ब्राह्मणोंको दे डालेंगे। भृगुद्वारा इन्हे ब्राह्मणत्व प्रदान (अनु०३० । ५७-५८)। उनका यश तथा कर्म सभी परम पावन है । ये ब्रह्माजीकी वीति-एक अग्नि । जब दक्षिणाग्निका गार्हपत्य और चलायी हुई मङ्गलमयी मर्यादाओंकी स्थापना करके : आइवनीय-इन दो अग्नियोंसे संसर्ग हो जाय, तब (तपस्याके लिये) रमणीय वनमें प्रवेश करेंगे । फिर इस मिट्टीके आठ पुरवोंमें संस्कारपूर्वक तैयार किये हुए जगत्के निवासी मनुष्य उनके शील-स्वभावका अनुकरण पुरोडाशद्वारा इस अग्निमें आहुति देनी चाहिये (वन. करेंगे । द्विजश्रेष्ठ कल्की सदा दस्युवधमें तत्पर रहकर २२ । २५)। समस्त भूतलपर विचरते रहेंगे और अपने द्वारा जीते हुए वीतिहोत्र-१) एक प्राचीन नरेश ( आदि. १ । देशीमें काले मृगचर्म, शक्ति, त्रिशूल तथा अन्य अस्त्र- २३३)(२) एक देश, जहाँके निवासी क्षत्रियोंका शस्त्रों की स्थापना करते हुए श्रेष्ठ ब्राह्मणोंद्वारा अपनी स्तुति परशुरामजीने संहार किया था (द्रोण०७० । १२-१३)। सुनेंगे और स्वयं भी उन ब्राह्मण शिरोमणियोंको यथोचित सम्मान देंगे। दस्युओंके नष्ट हो जानेपर अधर्मका भी नाश वीर-(१) कश्यपपत्नी दनायुके गर्भसे उत्पन्न एक असुर हो जायगा और धर्मकी वृद्धि होने लगेगी। इस प्रकार (आदि. ६५। ३३)। (२) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से सत्ययुग आ जानेपर सब मनुष्य सत्यधर्मपरायण होंगे एक (आदि. ६७ । १०३)। (३) भरद्वाज नामक (वन० १९१।१-७)। अग्निके द्वारा वीराके गर्भसे उत्पन्न । इन्हींको रथप्रभु, स्थध्वान और कुम्भरेता भी कहते हैं। सोम देवताके साथ विष्वक्सेन-एक प्राचीन ऋषि, जो इन्द्रकी सभामें विराजते द्वितीय आज्यभाग इन्हींको प्राप्त होता है। इनके द्वारा सरयू हैं (सभा० ७ । १८ के बाद दा० पाठ)। नामक पत्नीके गर्भसे सिद्धि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ विष्वगश्च-(१) एक प्राचीन नरेश, ये इक्ष्वाकुवंशी (वन० २१९ । ९-११)। (४) पाञ्चजन्य नामक महाराज पृथुके पुत्र थे। इनके पुत्र का नाम अद्रि था अग्निके पुत्र, इनकी गणना विनायकोंमें है (वन. ( आदि. १ । २३२, वन० २०२ । ३)। गोदान- २२० । १३-१४)। (५) एक राजा जो कलिङ्गराज महिमाके विषयमें इनकी ख्याति (अनु.७६ । २५- चित्राङ्गदकी कन्याके स्वयंवरमें उपस्थित हुआ था २७)। मांस-भक्षणका निषेध करनेसे इन्हें परावर-तत्त्वका (शान्ति० ४।)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy