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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विश्वेदेव देवगन्धर्व हैं । इनके पिता का नाम कश्यप और माताका प्राधा है ( आदि० ६५ । ४७ ) । ये अर्जुनके जन्मसमय में पधारे थे ( आदि० १२२ । ५२ ) । इन्होंने सोमसे चाक्षुषी विद्या सीखी और स्वयं चित्ररथको सिखायी ( आदि० १६९ | ४३ ) । ये द्रौपदीका स्वयंवर देखने आये थे ( आदि० १८६ | ७) । ये इन्द्रसभामें रहकर देवराजकी उपासना करते हैं ( सभा० ७ । २२ ) । कुबेरसभा में उपस्थित हो धनाध्यक्ष कुबेरकी सेवा करते हैं ( सभा० १० | २५ ) । इनका जमदग्निकी यज्ञ-दीक्षा में श्लोक-गान ( वन० ९० । १८ ) । ये शापवश कबन्ध नामक राक्षस 'गये थे और भगवान् श्रीरामद्वारा इनका उद्धार हुआ था ( वन० २७९ । ३१ - ४३ ) । राजा दिलीप यज्ञमें ये वीणा बजाया करते थे (द्रोण० ६१ । ७; शान्ति० २९ । ७५-७६ ) । महर्षि याज्ञवल्क्यसे चौबीस प्रश्न करना और उनका समाधान हो जानेपर स्वर्ग लौट जाना (शान्ति० ३१८ । २६–८४ ) । महाभारतमें आये हुए विश्वावसुके नाम-- गन्धर्व, गन्धर्वराज, गन्धर्वेन्द्र, काश्यप आदि । (२) जमदग्निके पाँच पुत्रोंमें से एक। इनकी माता रेणुका थीं। शेष चार भाइयों के नाम हैं- रुमण्वान्, सुषेण, वसु और परशुराम । पिता की मातृवधसम्बन्धी आज्ञा न माननेसे इन्हें पिताद्वारा शाप प्राप्त हुआ (वन० ११६ । १० - १२ ) । परशुरामद्वारा इनका शापसे उद्धार हुआ ( वन० ११६ । १७ ) । विश्वेदेव - (१) देवताओंका एक गण, जो इसी नाम से प्रसिद्ध है । सनातन विश्वेदेवोंके नाम ( अनु० ९१ । ३० – ३७ ) । ( २ ) एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३३) । विष्कर - एक दैत्य, दानव या राक्षस, जो पूर्वकालमें पृथ्वीका शासक था परंतु कालवश इसे छोड़कर चल बसा (शान्ति० २२७ । ५३ ) । विष्णु - (१) ये वसुदेवजोके द्वारा देवकीके गर्भ से श्रीकृष्णरूप से अवतीर्ण हुए आदि ( ० ६३ । ९९ – १०४ ) । बारह आदित्योंमें सबसे कनिष्ठ, किंतु गुणोंमें सबसे श्रेष्ठ (आदि ० ६५ । १६ ) | इन्होंने वरदानतीर्थमें दुर्वासाको दर्शन दिया (वन० ८२ । ७५ ) । देवताओंद्वारा इनका स्तवन ( वन० १०२ । २० - २६ ) । इनका समुद्र सोखने के लिये अगस्त्य के पास देवताओंको भेजना ( वन० १०३ । (११) । ये कृतयुगमें श्वेत, त्रेतामें लाल, द्वापर में पीत तथा कलियुग में कृष्ण वर्णके हो जाते हैं ( वन० १४९ | १७–३४)। उत्तङ्कद्वारा इनकी स्तुति ( वन० २०१ । १४ – २४ ) | इन्होंने पृथ्वीके उद्धार के लिये जो यज्ञवाराह रूप धारण किया था, वह सौ योजन लम्बा और दस योजन चौड़ा था ( वन० २७२ । ५१-५५ )। ( ३२२ ) विष्णुपदतीर्थ ७७ इनके नृसिंह अवतारका वर्णन ( वन० २७२ । ५६ – ६१ ) | इनके वामन अवतारका वर्णन ( वन० २७२ । ६२ - ७० ) | ये ही यदुकुलमें श्रीकृष्णरूपसे अवतीर्ण हुए, इनकी महिमाका वर्णन ( वन० २७२ । ७१– ) । देवताओं द्वारा इनकी स्तुति ( उद्योग० १० । ६-८ ) । सुमुख नागकी रक्षाके लिये गरुडका गर्व नाश करना ( उद्योग० १०५ । १९ -- ३२) । क्षीरसागर के उत्तर तटपर इनके निवास स्थान, स्वरूप और महिमा आदिका वर्णन ( भीष्म० ८ । १५-१८ ) । ब्रह्माद्वारा इनका स्तवन ( भीष्म० ६५ । ४७ – ७५ ) । त्रिपुरदाहके समय भगवान् शिवने इन्हें अपना बाण बनाया ( द्रोण० २०२ । ७७; कर्ण० ३४ । ४९ ) । इनके द्वारा स्कन्दको चक्र, विक्रम और संक्रम नामक तीन पार्षदोंका दान ( शल्य० ४५ । ३७ ) । इनके द्वारा स्कन्दको वैजयन्ती माला और दो निर्मल वस्त्रका दान ( शल्य० ४६ । ४९ ) । इनका पृथ्वीको आश्वासन ( स्त्री० ४ । २५ - - २९ ) । इन्होंने एक मानस पुत्र उत्पन्न किया, जिसका नाम विरजा था ( शान्ति० ५९ । ८७-८८ ) । इन्द्ररूपधारी विष्णु और मान्धाताका संवाद ( शान्ति ० ६५ अध्याय ) । भगवान् शिवने इन्हें दण्ड नामक अस्त्र समर्पित किया और इन्होंने उसे अङ्गिराको दिया ( शान्ति० १२९ । ३६-३७ ) । भगवान् रुद्रद्वारा इन्हें खड्गकी प्राप्ति हुई और इन्होंने उसे मरीचिको प्रदान किया ( शान्ति० १६६ । ६६ ) । इनका वाराह अवतार धारण करके देवताओंके दुःखका नाश करना ( शान्ति० २०९ । १६ – ३० ) । नारदको आश्वासन देना (शान्ति ० २०९ । ३६ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ४९५७ ) । वामनरूपसे इन्होंने तीन पगोंमें ही पृथ्वीको नाप लिया था (शान्ति० २२७ । ७-८' ) । प्रत्येक मासकी द्वादशी तिथिको भगवान् विष्णुकी पूजाका विशेष माहात्म्य ( अनु० १०९ अध्याय ) । इन्द्रको धर्मोपदेश ( अनु० १२६ । १११६ ) । इनके द्वारा धर्मके माहात्म्यका वर्णन ( अनु० १३४ । ८--१४ ) । इनके सहस्र नामका वर्णन ( अनु० १४९ अध्याय ) | ( विशेष देखिये नारायण ) (२) भानु (मनु) अग्निके तीसरे पुत्र । इनका दूसरा नाम 'धृतिमान् ' है । ये अङ्गिरागोत्रिय माने गये हैं । दर्शपौर्णमास नामक यज्ञोंमें इन्हीं में हविष्यका समर्पण होता है ( वन० २२१ । १२ ) । विष्णुधर्मा - rasat प्रमुख संतानोंमें से एक ( उद्योग ० १०१ । १३) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष्णुपदतीर्थ - एक तीर्थ, जिसमें स्नान करके वामन भगवान की पूजा करनेवाला मनुष्य विष्णुलोक में जाता है ( वन० ८३ । १०३-१०४ ) । वह प्रभासतीर्थके बाद For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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