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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विदिशा ( ३०९ ) विदुर (वन० ६१ । २३)। दमयन्तीके पिता विदर्भराज भीम महारथी, पृथ्वीपालक तथा चारों वर्णोके रक्षक थे, वे विदर्भ देशकी जनताका अच्छी तरह पालन करते थे (वन ६४ । ४४-४७)। दमयन्ती अपनी मौसीसे विदा ले चेदिदेशसे विदर्भ देशमें अपने पिताके यहाँ जा पहुँची (वन०६९।२०-२४)। राजा ऋतुपर्ण बाहुकरूप- धारी नलके साथ विदर्भ देशको गये (वन०७१।२; बन० ७२ । १९, ४२, बन० ७३ । १)। नलके प्रकट होनेपर विदर्भ देशमें महान् उत्सव मनाया गया (वन ७७ । ५-८)। रुक्मिणी विदर्भनरेशकी पुत्री थीं, भगवान् श्रीकृष्णने उनका अपहरण किया। बहिनका वह अपहरण रुक्मीके लिये असह्य हो उठा, उसने यह प्रतिज्ञा कर ली कि कृष्णको मारे बिना विदर्भ देशकी राजधानीमें नहीं लौटूंगा, परंतु श्रीकृष्णका सामना होनपर वह विशाल चतुरङ्गिणी सेनासहित पराजित हो गया । अतः अपनी प्रतिज्ञाकी रक्षा करता हुआ वह पुनः कुण्डिनपुरकी ओर नहीं लौटा । जहाँ उसकी पराजय हुई, वहीं भोजकट नामक श्रेष्ठ नगर बसाकर उसीमें रहने लगा। उन दिनों भोजकट ही विदर्भको राजधानीके रूपमें प्रख्यात हुआ ( उद्योग० १५८ । १०-१६)। (२) एक प्राचीन राजा, जिनके पुत्र राजा निमि अगस्त्य मुनिको अपनी कन्या और राज्यका दान करके पुत्र, पशु और बान्धर्वोसहित स्वर्गमें चले गये (अनु०१३७ । ११)। विदिशा-एक नदी, जो वरुणसभामें उपस्थित होकर वरुण देवकी उपासना करती है (सभा०९।१४)। इसकी गणना भारतकी प्रमुख नदियों में है ( भीष्म ९ । २८)। विदुर-व्यासके द्वारा अम्बिकाकी दासीके गर्भसे उत्पन्न (आदि. १।९४-९६ ) । अणीमाण्डव्यके शापसे धर्मराजने ही शूद्रयोनिमें विदर होकर जन्म लिया था ( आदि. ६३ । ९३-९७, आदि. १०५। २९)। ये राजा धृतराष्ट्र तथा पाण्डुके भाई थे (आदि०१०५।२८)। भीष्मद्वारा इनका संवर्धन एवं पालन-पोषण (आदि १०४ । १७-१८)। इनकी धर्मनिष्ठा तथा अध्ययन (आदि. १०८ । १९-२२)। शूद्राके गर्भसे ब्राह्मण. द्वारा उत्पन्न होनेके कारण इनको राज्यकी प्राप्ति नहीं हुई (आदि. १०८ । २५) । इनको पाण्डुद्वारा धनकी भेंट (आदि. ११३ । २)। राजा देवकके घरमें स्थित तथा ब्राह्मणद्वारा शूद्राके गर्भसे उत्पन्न हुई कन्याके साथ भीष्मद्वारा इनका विवाह (आदि. ११३ । १२-१३)। दुर्योधनके जन्मकालमें होनेवाले अमङ्गलोको देखकर उसे त्याग देनेके लिये इनकी धृतराष्ट्रको सलाह ( आदि० ११५। ३४-४०)। इनके द्वारा आत्माके कल्याणके लिये सम्पूर्ण जगत्को त्याग देनेका उपदेश ( आदि. १११।३९) । पाण्डुका राजोचित दंगसे अस्थि-संस्कार करनेके लिये इनको धृतराष्ट्रका आदेश (आदि. १२६ । १-३)।इनके द्वारा पाण्डुका अस्थिदाह तथा उनके लिये जलाञ्जलि-दान (आदि. १२६ । २७-२८)। भीमसेनके नागलोकमें जानेपर चिन्तित हुई कुन्तीको इनका आश्वासन (आदि० १२८ । १७-१८)। इनके द्वारा राजकुमारोंके अस्त्रकौशल-प्रदर्शनके समय धृतराष्ट्रसे कुमारोंकी कलाओंका वर्णन (आदि० १३३ । ३५)। पाण्डवोको लाक्षागृहमें सावधान रहने एवं कौरवोंके कुचक्रसे बचनेके लिये इनका सांकेतिक भाषामें युधिष्ठिरको संकेत ( आदि. १४४ । १९-२६) । इनका लाक्षागृहमें सुरंग बनाने के लिये पाण्डवोंके पास खनकका भेजना (आदि० १४६ । )।पाण्डवोंको गङ्गा पार उतारनेके लिये नाविक भेजना (आदि० १४८।२)। लाक्षागृहमें पाण्डवोंकी मृत्युके समाचारसे दुखी हुए भीष्मका इनके द्वारा उनके जीवित रहनेका रहस्य बतलाकर आश्वासन (आदि० १४९ । १८ के बाद)। द्रुपद-नगरसे पाण्डवोंको बुलाने एवं उनका आधा राज्य दे देने के सम्बन्धौ धृतराष्ट्र के प्रति कहे हुए द्रोण तथा भीष्मके वचनोंका इनके द्वारा समर्थन (आदि. २०४ । १-३०)। धृतराष्ट्र के आदेशसे द्रुपद-नगरमें जाकर इनका पाण्डवोंको हस्तिनापुरमें ले आना (आदि. २०५।४ से २०६ । ११ तक)। द्रुपद-नगरमें इनका कुन्तीको आश्वासन देना (आदि० २०६ । ९ के बाद)। ये युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें गये थे (सभा० ३३ । ५)। वहाँ इन्हें धनके व्यय करनेका कार्य सौंपा गया था (सभा० ३५।१)। इनके द्वारा कौरवोंकी पाण्डवों के साथ द्यूतक्रीड़ाका विरोध ( सभा० ४९ । ५४ )। इनकी धृतराष्ट्रसे बातचीत (सभा० ५७ अध्याय)। इनका युधिष्ठिरके साथ वार्तालाप (सभा०५८ । ५१६)। द्यूतक्रीड़ाके अवसरपर धृतराष्ट्रको इनकी चेतावनी (सभा० ६२ अध्याय)। इनका आत्माके उद्धारके लिये समस्त भूमण्डलको त्याग देनेका उपदेश (सभा० ६२ । ११)। इनके द्वारा द्यूतक्रीड़ाके प्रस्तावका घोर विरोध (सभा० ६३ अध्याय )। जुएके अवसरपर दुर्योधनको इनकी फटकार और इनका उसे चेतावनी देना (सभा० ६४ अध्याय )। द्रौपदीको सभाभवनमें पकड़कर लानेके सम्बन्धमें दुर्योधनके आदेश देनेपर इनका पुनः दुर्योधनको फटकारना और कटु वचनकी तीव्र निन्दा (सभा० ६६ अध्याय)। इनका प्रहादका उदाहरण देकर सभासदोंको द्रौपदीके प्रश्नका उत्तर देनेके लिये प्रेरित करना ( सभा० ६८। ५९-८८)। इनकी For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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