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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजया ( ३०८ ) विदर्भ (विराट० ४४ । ९, १४)। (५) देवराज इन्द्रका वितर्क-ये महाराज कुरुके वंशज धृतराष्ट्र के पुत्र थे ( आदि. एक दिव्य धनुष, जो गाण्डीवके समान तेजस्वी था और ९४ । ५८)। श्रीकृष्णके शानधनुषकी समानता करता था। देवताओंके वितद्रु-एक यादव, जिसकी गणना यदुवंशियोंके सात प्रधान तीन ही धनुष दिव्य माने गये हैं-विजय, गाण्डीव और । शाङ्ग। ये क्रमशः इन्द्र, वरुण और भगवान् विष्णुके मन्त्रियोंमें है (सभा० १४ । ६० के बाद)। धनुष हैं। गन्धमादननिवासी किम्पुरुषप्रवर द्रमको इन्द्रसे वितस्ता-काश्मीर एवं पश्चनद प्रदेशकी झेलम नदी, जो यह दिव्य धनुष प्राप्त हुआ था । फिर इसे इन्हींके वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना करती है (सभा० शिष्य महातेजस्वी रुक्मीने उन्हींसे प्राप्त किया (उद्योग. ९।१९)। इसमें स्नान करके देवताओं और पितरोंका १५८। ३-९)। (६) एक भारतीय जनपद तर्पण करनेसे मनुष्यको वाजपेय यज्ञका फल प्राप्त होता (भीष्म. ९ । ४५)। (७) धृतराष्ट्रका एक पुत्र, है। काश्मीरमें नागराज तक्षकका वितस्ता नामसे प्रसिद्ध जिसने जय और दुर्जयके साथ मिलकर नील, काश्य तथा भवन है, जो सब पापोंका नाश करनेवाला है। वहाँ जयत्सेन-इन तीनोंसे युद्ध किया था (द्रोण. २५ । स्नान करनेसे मनुष्य वाजपेय यज्ञके फल और उत्तम ४५)। इसका सात्यकिके साथ युद्ध (द्रोण. ११६। . गतिका भागी होता है (वन० ८२ । ८९-९१) । ६-७) । शकुनिके अर्जुनपर धावा करनेके समय यह इसके प्रवाहमें ब्राह्मणों के चार सौ श्यामकर्ण घोड़े बह भी उसके साथ था (द्रोण. १५६ । १२०-१२३ )। गये थे ( उद्योग. ११९।८)।इसका जल भारतवासी (८) कर्णके दिव्य धनुषका नाम, जो समस्त आयुधोंमें पीते हैं (भीष्म ९।१६)। मनुष्य उपवास करके श्रेष्ठ था। इसे इन्द्रका प्रिय चाहनेवाले विश्वकर्माने तरङ्गमालिनी वितस्तामें सात दिनोंतक स्नान करे तो उन्हींके लिये बनाया था । देवेन्द्रने इसी धनुषसे कितने वह मुनिके समान निर्मल हो जाता है ( अनु. २५ । ही देत्यसमूहोंपर विजय पायी थी। इसकी टङ्कार सुनकर .)। पार्वतीजीने जिन नदियोसे सलाह लेकर भगवान् दैत्योंको दसों दिशाओंको पहचानने में भ्रम हो जाता था। शङ्करके प्रति स्त्री-धर्मका वर्णन किया था, उनमें वितस्ता इसी अपने परम प्रिय धनुषको इन्द्रने परशुरामजीको भी थी (अनु० १४६।१८)। दिया था और परशुरामजीने यह दिव्य उत्तम धनुष उप वित्तदा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६ । कर्णको दे दिया था । यह घोर धनुष गाण्डीवसे श्रेष्ठ था। २८)। इसीके द्वारा परशुरामजीने इस पृथ्वीपर इक्कीस बार विजय पायी थी (कर्ण०३३।४२-४६)। (९) विदण्ड-एक राजा, जो अपने पुत्र दण्डके साथ द्रौपदीभगवान् शिवका एक नाम (अनु०१७ । ५.)। स्वयंवरमें पधारे थे (आदि. १८५। १२)। (१०) भगवान् विष्णुका एक नाम (अनु. १४९। विदभ-एक भारतीय जनपद (भीष्म. १।६४)। २९)। विदर्भ-(१) एक प्राचीन देश, जिसे सहदेवने अपनी विजया-(१) ये दशाईराजकी पुत्री तथा सम्राट भुमन्यु दक्षिण-दिग्विजयके समय विदर्भदेशीय भोजकट नगरमें की पत्नी थीं। इनके गर्भसे सुहोत्रका जन्म हुआ था जाकर वहाँके राजा भीष्मकको परास्त किया था (सभा० (आदि० ९५ । ३३)। (२) यह मद्रदेशके राजा ३१ । ११-१२ )। यहाँके राजा भीष्मको महर्षि दमनकी द्युतिमान्की पुत्री थी। इसने स्वयंवर में पाण्डुपुत्र सहदेव कृपासे दम, दान्त और दमन नामक पुत्र तथा दमयन्ती को वरण किया । सहदेवके द्वारा इसके गर्भसे सुहोत्र नामक नाम्नी कन्याकी प्राप्ति हुई थी ( वन० ५३ । ५-९)। पुत्र उत्पन्न हुआ (आदि० ९५ । ८.)। (३) विदर्भराजकी कन्या दमयन्तीके स्वयंवरका समाचार सुनदुर्गा देवीका एक नाम (बिराट. ६ । १६)। कर उसमें सम्मिलित होनेके लिये इन्द्र, अग्नि, वरुण विटभूत-एक दैत्य, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी और यम-ये चार देवता अपने सेवकों और वाहनके उपासना करता है (सभा० ९ । ६५)। साथ विदर्भ देशमें पधारे (वन० ५४ । २०-२६)। वितण्डा-वाद-विशेष ( जिस बहस या वादविवादका विदर्भ देशमें उत्पन्न होनेके कारण ही दमयन्ती वैदर्भी उद्देश्य अपने पक्षकी स्थापना या परपक्षका खण्डन न कहलाती थी (वन० ५५ । १२, २२, वन० ५६ । ५) होकर व्यर्थकी वकवादमात्र हो, उसका नाम वितण्डा वन०६८।३२)। नल-सारथि वार्ष्णेयने राजकुमार है।) ( सभा० ३६ । ४)। इन्द्रसेन तथा कुमारी इन्द्रसेनाको रथपर बिठाकर विदर्भ वितत्य-गृत्समदवंशी विहव्यके पुत्र, जो सत्यके पिता थे देशको प्रस्थान किया (वन० ६० । २१-२२)। (भनु०३० । ६२)। राजा नलका दमयन्तीको विदर्भका मार्ग बताना For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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