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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विदुर ( ३१० ) विदुर - - धृतराष्ट्र-पुत्रोंको चेतावनी ( समा० ७१ । १६-१९)। दृष्टान्तसे संसारके भयंकर स्वरूपका वर्णन करना (स्त्री. इनका युधिष्ठिरसे कुन्तीको अपने यहाँ रखनेका प्रस्ताव ५ अध्याय ) । संसाररूपी बनके रूपकका इनके द्वारा (सभा० ७८ । ५-६)। पाण्डवोको स्पष्टीकरण (स्त्री० ६ अध्याय)। संसारचक्रका वर्णन लिये इनका उपदेश (सभा० ७८ । ९-२३)। प्रजा- करना तथा रथके रूपकसे संयम और ज्ञान आदिको जनोंके शोकके विषयमें इनके द्वारा धृतराष्ट्र के प्रश्नोंका मुक्तिका उपाय बताना (स्त्री० ० अध्याय) । शोकउत्तर (सभा० ८० । ३५ के बाद दा० पाठ)। इनका निवारणके लिये धृतराष्ट्रको उपदेश देना (स्त्री. १। धृतराष्ट्रको हितकी सलाह देना (वन० ४।४-१७)। १.) । युधिष्ठिरद्वारा मन्त्रणा आदि कार्योंपर इनकी धृतराष्ट्रद्वारा इनका त्याग (वन० ४।३.)। इनका नियुक्ति (शान्ति०४१।१०) । युधिष्ठिरके प्रश्नके काभ्यकवनमें जाकर पाण्डवोंसे मिलना और उन्हें धर्म उत्तरमें इनका त्रिवर्गमें धर्मकी प्रधानता बताना (शान्ति. युक्त सलाह देना (वन०५ । १२-२१)। इनके द्वारा १६७ । ५-९)। भीष्मके दाहसंस्कारके लिये इनका धृतराष्ट्रको क्षमादान (वन०६।२१-२४)। इनका युधिष्ठिरके साथ जाना (अनु० १६७ । ९-१०)।इन्होंधृतराष्ट्रको किर्मीरवधकी कथा सुनाना (वन० ११ ने भीष्म जीकी चिताके निर्माणमें योग दिया और रेशमी अध्याय )। धृतराष्ट्रको नीतिपूर्ण उपदेश ( विदुरनीति ) वस्त्रों तथा मालाओंसे आच्छादित करके उनके शवको (उद्योग० ३३ । १३ से ४० अध्याय तक) । कुमार चितापर सुलाया (अनु० १६८ । ११-१२)। श्रीकृष्ण सनत्सुजातसे धृतराष्ट्रको उपदेश देनेके लिये इनकी और अर्जुनका इन्द्रप्रस्थसे हस्तिनापुरमें आकर इनसे प्रार्थना ( उद्योग०४१ । १०-१२)। इनके द्वारा दमकी मिलना ( आश्व० ५२ । ३१ ) । बन्धु-बान्धवोंसहित महिमाका वर्णन (उद्योग० ६३।९-२४)। कौटुम्बिक कौरवराज दुर्योधन के मारे जानेपर विदर और संजय कलह और लोभसे हानि बताते हुए धृतराष्ट्रको संधिके धर्मराज युधिष्ठिरके आश्रयमें आ गये ( आश्व० ६.। लिये समझाना ( उद्योग० ६४ अध्याय)। धृतराष्ट्रको ३४ ) । बलराम और श्रीकृष्णके हस्तिनापुरमें आनेपर श्रीकृष्णकी बात मानने के लिये समझाना ( उद्योग०८७ राजा धृतराष्ट्र तथा महामना विदुरजीने खड़े हो आगे अध्याय)। इनके द्वारा अपने घरपर श्रीकृष्णका आतिथ्य- बढ़कर उनका विधिवत् स्वागत-सत्कार किया (आश्च० सत्कार ( उद्योग० ८९ । २३-२४)। श्रीकृष्णका पूजन ६६।६)। जब पाण्डवलोग हिमालयसे धन लेकर करके उन्हें भोजन कराना ( उद्योग० ११ । ३८- हस्तिनापुरके समीप आ गये, उस समय विदुरजीने ३९) । धृतराष्ट्र-पुत्रोंकी दुर्भावना बताकर श्रीकृष्णको पाण्डवोंका प्रिय करनेकी इच्छासे देवमन्दिरोंमें विविध उनके कौरवसभामें जानेका अनौचित्य बतलाना (उद्योग० प्रकारसे पूजा करनेकी आज्ञा दी (आश्व०७०।१४९२ अध्याय ) । दुर्योधनको समझाना (उद्योग० १२५।। १७)। पाण्डवोंने नगर में आकर धृतराष्ट्र और गन्धारी१९-२१)। धृतराष्ट्रकी आज्ञासे गान्धारीको उनके पास से मिलनेके बाद विदुरजीका भी समादर किया (आश्व० लाना (उद्योग० १२९ । ६)। धृतराष्ट्र और गान्धारी- ७१। ५-७)। विदुरजी सदा राजा धृतराष्ट्रकी सेवामें की आज्ञासे दुर्योधनको बुला लाना ( उद्योग० १२९ । लगे रहते थे ( आश्रम० १ । १२ ) । अजातशत्रु १६) । दुर्योधन आदिकी श्रीकृष्णको कैद करनेके युधिष्ठिरके धैर्य और शुद्ध व्यवहारसे राजा धृतराष्ट्र, दुःसाहसकी बास बताकर इनका धृतराष्ट्रको चेतावनी गान्धारी और विदुर बहुत प्रसन्न रहते थे (आश्रम (उद्योग० १३० । १० से २२ के बाद तक)। दुर्योधनको २।२८-२९)। धृतराष्ट्र और युधिष्ठिरके मिलनका करुणसमझाना (उद्योग. १३० । ४१-५३)। युद्धके भावी दृश्य देखकर विदुर आदि रो पड़े थे (आश्रम. ३ । परिणामपर विचार करके इनका कुन्तीसे अपना दुःख ७६) । युधिष्ठिरने विदुर आदिकी आशाके अनुसार कार्य प्रकट करना ( उद्योग० १४४ । २-९)। शोकाकुल करनेका निश्चय किया ( आश्रम ४ । २०-२५ )। धृतराष्ट्रको आश्वासन देना (शल्य. १ । ५५)। इनके युधिष्ठिरको विदुरने सभी आवश्यक बातोंका उपदेश कर द्वारा राजमहिलाओंके साथ हस्तिनापुर लौटे हुए युयुत्सुकी दिया था ( आश्रम ७ । २१) । विदुरजीके वनमें प्रशंसा (शल्य. २९ । ९७-१००)। कालकी प्रबलता चले जानेपर मुझे कौन कर्तव्यका उपदेश देगा यह बताकर धृतराष्ट्रको समझाना (स्त्री० २ अध्याय )। . युधिष्ठिरकी चिन्ता ( आश्रम ८ । २)। धृतराष्ट्रका विदरके द्वारा युधिष्ठिरसे श्राद्धके लिये धन माँगना (आश्रम. करना (स्त्री०३ अध्याय)। दुःखमय संसारके गहन ११।१-५)। राजा युधिष्ठिरका विदुर जीके द्वारा धृतस्वरूपका वर्णन करना एवं उससे छूटनेका राष्ट्रको यथेष्ट धन देनेकी स्वीकृति कहलाना (भाश्रम उपाय बताना (स्त्री० . अध्याय )। गहन वनके . १२ । ४-५, ७-१३)। विदुरका धृतराष्ट्रको युधिष्ठिर For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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