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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसुधारा ( ३०१ ) वसुहोम देवककी पुत्री देवकीके साथ इनका विवाह । देवकीको ययातिसे इनकी भेंट ( आदि० ९३ । १)। इनके द्वारा मारनेके लिये उद्यत हुए कंसको इनके द्वारा आश्वा- ययातिको पुण्यदानका आश्वासन (आदि० ९३ । ३। सन (सभा० २२ । ३६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ५)। अपनी माता माधवीसे इनका ययातिका परिचय ७३१)। इनका नवजात शिशु श्रीकृष्णको रातमें ब्रज पूछना ( आदि० ९३ । १३ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। पहुँचाना और वहाँसे नन्द-कन्याको ले आना (सभा० अष्टक आदि राजाओंके साथ इनका स्वर्गाभिगमन २२ । ३६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७३२, ७९८)। (आदि० ९३ । १६ )। ये यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र इनका श्रीकृष्णसे महाभारत-युद्ध का वृत्तान्त पूछना यमकी उपासना करते हैं (सभा०८।१३)। इन्होंने (आश्व० ६०।१-४)। सुभद्राको मूर्छित हुई देख- तीर्थयात्रा करके पावन यश और प्रचुर धन प्राप्त किया कर स्वयं भी मूर्छित होना और पुनः श्रीकृष्णसे अभि- था (वन० ९४ । १७-९०) । विश्वामित्रके पुत्र अष्टकमन्युवधका वृत्तान्त पूछना ( आश्व० ६१ । ५-१५)। के अश्वमेध यज्ञमें ये पधारे थे ( वन० १९८ । १.२)। अभिमन्युका श्राद करना ( आश्व० ६२ । । नारदजीका इनको अपने और शिबिसे भी पहले मौसलकाण्डमें यादोंका संहार हो जानेपर भगवान् श्री- स्वर्गलोकसे नीचे उतरनेका अधिकारी बताना ( वन० कृष्णका द्वारकामें अपने पिता वसुदेवके पास आना, इनसे १९८ । ११-१५)। ये इन्द्रके रथपर आरूढ़ हो अर्जुनकी प्रतीक्षा करते हुए स्त्रियोंकी रक्षा करनेके लिये विराटनगरके आकाशमें अर्जुन और कृपाचार्यका कहना और इनके चरणोंपर मस्तक रखकर बलरामजीके युद्ध देखनेके लिये आये थे (विराट ५६ । ९-१०)। साथ तप करनेके विचारसे तुरंत वहाँसे चल देना नैमिषारण्यमें वाजपेय यज्ञद्वारा श्रीहरिकी आराधना करते (मौसल. ४ । ८-१०)। इनका अर्जुनसे वृष्णि- हुए वसुमना आदिके पास ययातिका स्वर्गसे नीचे गिरना वंशियोंके दुःखद संहारकी बात बताना और श्रीकृष्णका (उद्योग० १२१। १०.११)। ये दानपतिके नामसे संदेश सुनाना (मौसल० ६ अध्याय ) । अर्जुनका इनसे विख्यात थे । इन्होंने ययातिको अपना पुण्यफल प्रदान अपना श्रीकृष्णविरहजनित दुःख बताना और वृष्णिवंश- किया (उद्योग. १२२ । ३-५)। ये कोसलदेशके की स्त्रियोंको इन्द्रप्रस्थ ले जाने का विचार प्रकट करना राजा थे । बृहस्पतिजीसे राज्यकी वृद्धि और हासके विषयमें (मौसल०७।१-६)। इनके द्वारा परमात्मचिन्तन- इनका प्रश्न (शान्ति० ६८ । ६-७)। वामदेवजीसे पूर्वक अपने शरीरका त्याग (मौसल० ७ । १५)। राजधर्मके विषयमें इनका पूछना (शान्ति० ९२ । ४)। अर्जुनद्वारा इनका अन्त्येष्टि-संस्कार तथा इनकी चार (२) एक राजा, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान होते पत्नियोंका इनके शवके साथ चितारोहण (मौसल० थे (सभा०४।३२)। इन्हें पाण्डवोंकी ओरसे रण७ । १९-२०)। ये स्वर्गमें जाकर विश्वेदेवोंके स्वरूपमें निमन्त्रण भेजनेका निश्चय किया गया था ( उद्योग०४। मिल गये (स्वर्गा० ५। ७)। २.)। (३) एक अग्नि । यदि अग्निहोत्रसम्बन्धी महाभारतमें आये हुए वसुदेवके नाम-आनकदुन्दुभि, अग्निको कोई रजस्वला स्त्री छू दे तो इन ( वसुमान् शौरि, शूरपुत्र, शूरसूनु, शूरसुतः शूरात्मज) यदूद्रह आदि । अग्नि) के लिये अष्टकपाल चरुद्वारा आहुति देनेकी विधि है (वन० २२१ । २७)। ये ब्रह्माजीकी सभामें विराजवसुधारा-एक तीर्थ, जो सबके द्वारा प्रशंसित है। वहाँ मान होते हैं (सभा० १३ । ३०)। (४) एक जानेमात्रसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है। वहाँ स्नान जनकवंशी राजकुमार, जिन्हें एक ऋषिद्धारा धर्मविषयक करके शुद्ध और समाहित चित्त हो देवताओं तथा पितरोंका __ उपदेश प्राप्त हुआ था (शान्ति. ३०९ अध्याय)। तर्पण करनेसे मनुष्य विष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है। वसुमित्र-एक क्षत्रिय राजा, जो दनायुके पुत्र विक्षर नामक वहाँ वसुओंका पवित्र सरोवर है । उसमें स्नान और ___ असुरके अंशसे उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६७ । ४१)। जलपान करनेसे मनुष्य वसु देवताओंका प्रिय होता है वसुश्री-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. (वन० ८२ । ७६-७८)। ४६ । १४)। वसुप्रभ-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६३)। वसुषण-कर्णका एक नाम: जो अधिरथ और राधाद्वारा वसुमना (वसुमान् )-(१) एक प्राचीन नरेश, जो बाल्यावस्थामें रखा गया था ( भादि०६७।१४१, अयोध्यानरेश हर्यश्वद्वारा ययातिकन्या माधवीके गर्भसे १४७ वन.३०९ । १४)। ( विशेष देखिये कर्ण)। उत्पन्न हुए थे। इनके पास ही स्वर्गसे गिरे हुए राजा ययाति वसहोम-अङ्गदेशके एक राजा, जिन्होंने मान्धाताको दण्डइनसे मिलकर सत्सङ्गके प्रभावसे स्वर्गलोकमें चले गये की उत्पत्ति आदिका उपदेश दिया था (शान्ति. १२२।। ( आदि.८६५.६) । स्वर्गसे गिरते समय राजा -५४)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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