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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वसिष्ट पर्वत www.kobatirth.org ( 300 ) लिये विजयका मार्ग प्रशस्त किया था ( शान्ति० ७४ । ५-६ ) । इनके द्वारा प्रजाको जीवनदान ( शान्ति ० २३४ | २७; अनु० १३७ । १३ ) । वृत्रासुरसे भयभीत इन्द्रको रथन्तर सामद्वारा सचेत करना ( शान्ति० २९१ । २१–२६ ) । ये मूल गोत्रप्रवर्तक चार ऋषियोंमेंसे एक हैं (शान्ति० २९६ । १७ ) । विदेहराज कराल जनकको विविध ज्ञानोपदेश ( शान्ति ० अध्याय ३०२ से ३०८ तक ) । इक्कीस प्रजापतियों में इनकी भी गणना है ( शान्ति० ३३४ । ३६ ) । ये 'चित्रशिखण्डी' नामवाले ऋषियोंमेंसे एक हैं ( शान्ति० ३३५ | २८-२९ ) । इनके द्वारा हिरण्यकशिपुको शाप ( शान्ति० ३४२ । ३१) । पुरुषार्थकी श्रेष्ठता के विषय में इनका ब्रह्माजी के साथ संवाद ( अनु० ६ अध्याय ) | इनका राजा सौदासको गोदानकी विधि और गौओंका महत्त्व बताना ( अनु० ७८ । ५ से ८० अध्यायतक ) । परशुरामजीको शुद्धिके उपायके लिये सुवर्णके दान और उसकी उत्पत्तिका प्रसंग बताना ( अनु० ८४ । ४४ से ८५ अध्यायतक ) । वृषादर्भिसे प्रतिग्रहका दोष बताना (अनु० ९३ । ३९) । अरुन्धती से अपनी दुर्बलताका कारण बताना (अनु० ९३ । ६१) । यातुधानी से अपने नामकी निरुक्ति बताना ( अनु० ९३ । ८४ ) । मृणालकी चोरी होनेपर शपथ खाना ( अनु० ९३ । ११४- ११५ ) । अगस्त्यजीके कमलोकी चोरी होनेपर शपथ खाना ( अनु० ९४ । १७ ) । ब्रह्माजीसे यज्ञके विषयमें प्रश्न करना ( अनु० १२६ । ४४-४५ ) । वायुदेवद्वारा इनके प्रभावका वर्णन ( अनु० १५५ । १६ – २५ ) । कुम्भमें देवताओंका वीर्य स्थापित हुआ था जिससे इनकी उत्पत्ति हुई ( अनु० १५८ । १९ ) । वृत्रासुरसे गृहीत एवं मोहित हुए इन्द्रको सचेत करना ( आश्व० ११ । १८-१९ ) । महाभारत में आये हुए वसिष्ठके नाम - आपक, अरुन्धतीपति, ब्रह्मर्षि, देवर्षि, हैरण्यगर्भ, मैत्रावरुणि, वारुणि इत्यादि । वसिष्ठ पर्वत - यहाँ तीर्थयात्रा के अवसरपर अर्जुनका आगमन हुआ था (आदि ० २१४ । २ ) । वसिष्ठापवाह- सरस्वतीतटवर्ती एक प्राचीन तीर्थं । इसकी I उत्पत्तिका वर्णन ( शल्य० ४२ अध्याय ) । वसिष्ठाश्रम - निवीरा सङ्गमके समीपका एक तीर्थभूत आश्रम जो तीनों लोकोंमें विख्यात है । यहाँ स्नान करनेवाला मनुष्य वाजपेय यज्ञका फल पाता है ( वन० ८४ । १४०-१४१)। बसु - (१ ) चेदिदेश के राजा उपरिचर वसु ( आदि ● Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दे ६३ । १-२ ) । ( देखिये उपरिचर व सु ) ( २ ) धर्मदेवद्वारा दक्षकन्या के गर्भ से आठ पुत्र उत्पन्न हुए, जो सुगण कहलाते हैं ( आदि० ६६ । १७-१८ । (देखिये अष्टवसु ) | ( ३ ) महाराज ईलिनके द्वारा रथन्तरीके गर्भसे उत्पन्न | इनके चार भाई और थे, जिनके नाम हैं दुष्यन्त, शूर, भीम और प्रवसु ( आदि० ९४ । १७१८ ) । ( ४ ) एक विद्वान् ब्राह्मण मुनि, जिनके पुत्र का नाम पैल था ( सम्भव है ये जमदग्निपुत्र वसु ही हों ) ( सभा० ३३ | ३५ ) | ( ५ ) जमदग्निके एक पुत्र इनकी माता रेणुका थीं। इनके भाई रुमण्वान्, सुत्रेण, विश्वावसु तथा परशुराम थे । पिताकी मातृव सम्बन्धी आज्ञा न माननेसे इन्हें पिताद्वारा शाप प्राप्त हुआ ( वन० ११६ । १० - १२ ) । परशुरामद्वारा इनका शापसे उद्धार हुआ ( वन० ११६ । १७ ) । (६) कृमिकुलका एक कुलाङ्गार राजा ( उद्योग० ७४ । १३ ) । ( ७ ) भगवान् शिवका एक नाम ( अनु० १७ । १४० ) । ( ८ ) भगवान् विष्णुका एक नाम ( अनु० १४९ । २५ ) । वसुचन्द्र - युधिष्ठिरका सम्बन्धी और सहायक एक राजा, जो इन्द्रके समान पराक्रमी था ( द्रोण० १५८ । ४० ) । वसुदान - ( १ ) एक क्षत्रिय नरेश, जो पांशुराष्ट्रके अधिपति थे और युधिष्ठिरकी सभा में बैठा करते थे ( सभा ० ४ । २७ ) । इन्होंने पांशुदेशसे छब्बीस हाथी, दो हजार घोड़े और सब प्रकारकी भेंट-सामग्री लाकर पाण्डवों को अर्पित की थी ( सभा० ५२ । २७-२८ ) । इन्होंने युधिष्ठिरके साथ-साथ कुरुक्षेत्रको प्रस्थान किया था ( उद्योग० १५१ । ६३ ) । ये अतिरथी वीर थे ( उद्योग० १७१ । २७ ) । युद्धस्थलमें पाण्डवसेनापति धृष्टद्युम्नके पीछे-पीछे गये थे ( द्रोण० २३ । ४१ ) । द्रोणाचार्य के भल्लद्वारा इनका वध हुआ ( द्रोण० १९० ॥ ३० ) । ये युद्ध में घोर संहार मचाते थे, द्रोणद्वारा इनके मारे जानेकी चर्चा ( कर्ण० ६ । ३८ ) । ( २ ) पाण्डवपक्षीय पाञ्चाल राजकुमार, जो द्रोणाचार्यद्वारा मारा गया ( द्रोण० २१ | ५५ ) | वसुदामा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य० ४६ । ५)। For Private And Personal Use Only वसुदेव- शूरसेनके पुत्र | देवकीके पति | श्रीकृष्णके पिता । कुन्तीके भ्राता । उग्रसेनके मन्त्री । पाण्डवोंके चूड़ाकरण आदि संस्कार के लिये इनको वृष्णिवंशियोंकी प्रेरणा, इनका पाण्डुपुत्रोंके संस्कार करवानेके लिये काश्यप नामक पुरोहितको शतशृङ्गपर्वतपर भेजना ( आदि० १२३ । ३१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ २६९ ) । उग्रसेनके भाई
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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