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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (2819) वरिष्ठ वरिष्ठ - चाक्षुष मनुके पुत्र ( अनु० १८ । २० ) । इनके द्वारा गृत्समद ऋषिको शाप ( अनु० १८ । २३ - २५) । वरी - एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३३)। वरीताक्ष- एक दैत्य, दानव या राक्षस, जो पूर्वकालमें पृथ्वीका शासक था - कालवश इसे छोड़कर चल बसा ( शान्ति० २२७ । ५२ ) । वरुण - ( १ ) कश्यपद्वारा अदिति के गर्भ से उत्पन्न द्वादश आदित्योंमेंसे एक ( आदि० ६५ । १५ ) । इनकी ज्येष्ठ पत्नी देवीने इनके वीर्यसे बल नामक एक पुत्रको और सुरा नामवाली कन्याको जन्म दिया था ( भादि ० ६६ । ५२ ) । महर्षि वसिष्ठ इनके पुत्ररूपसे उत्पन्न हुए थे ( आदि ० ९९ । ५ ) । ये अर्जुनके जन्म समयमें वहाँ उपस्थित हुए थे ( आदि० १२२ । ६६ ये चौथे लोकपाल हैं, अदिति के पुत्र, जलके स्वामी तथा जलमें ही निवास करनेवाले हैं। अग्निदेवने इनका स्मरण किया और इन्होंने उन्हें दर्शन दिया। अग्निने इनसे दिव्य धनुष, अक्षय तरकस और कपिध्वज रथ माँगे और वरुणने वे सब वस्तुएँ उन्हें दे दीं ( आदि० २२४ । १–६ ) । इन्होंने पाश और अशनि लेकर श्रीकृष्ण और अर्जुनपर धावा किया था ( २२६ ॥ ३२ -- ३७ ) । नारदजीद्वारा इनकी दिव्यसभाका वर्णन ( सभा० ९ अध्याय ) । ये ब्रह्माजीकी सभा में रहकर उनकी उपासना करते हैं ( सभा० ११ । ५१ ) । इनके द्वारा अर्जुनको पाशनामक अस्त्रका दान ( वन० ४१ | २७–३२ ) । इनका राजा नलको दमयन्तीके स्वयंवर के अवसरपर वर देना ( वन० ५७ । ३८ ) । इन्होंने अन्य देवताओंके साथ 'विशाखयूप' में तपस्या की थी; अतः वह स्थान परम पवित्र माना गया है। ( वन ० ९० । १६ ) । ऋचीक मुनिको वरुणदेवने एक हजार श्यामकर्ण घोड़े प्रदान किये थे ( वन० ११५ । २७ ) । राजा जनकके दरबारका शास्त्रार्थी पण्डित वन्दी इन्हींका पुत्र था ( वन० १३४ । २४ ) । इनके द्वारा सीताजी की शुद्धिका समर्थन ( वन० २९१ । २९ ) । इन्होंने सौ वर्षोंतक गाण्डीव धनुष धारण किया था ( विराट० ४३ । ६ ) । इनकी पत्नीका नाम गौरी था (उद्योग० ११७ । ९ ) । कभी श्रीकृष्णने इन्हें जीत लिया था ( उद्योग ० १३०।४९ ) । इनके द्वारा श्रुतायुधकी माता पर्णाशाको वरदान ( द्रोण० ९२ । ४७ - ४९ ) । श्रुतायुधको गदा प्रदान कर उसके प्रयोगका नियम बताना ( द्रोण० ९२ । ५०-५१ ) । इनके द्वारा स्कन्दको यम और अतियम नामक दो पार्षद प्रदान (शख्य० ४५ । ४५-४६ ) । इनका स्कन्दको एक नाग ( हाथी ) भेंट म० ना० ३८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्गा करना ( शल्य० ४६ । ५२, अनु० ८६ । २५ ) । इनका देवताओं द्वारा जलेश्वर-पदपर अभिषेक ( शल्य० ४७ । ९-१० ) । इन्होंने सरस्वती नदीके यमुनातीर्थमें राजसूय यज्ञ किया था ( शल्य० ४९ । ११-१२ ) । इनके द्वारा उतथ्यकी भार्या भद्राका अपहरण ( अनु० १५४ । १३ ) | उतथ्यद्वारा समुद्रका सारा जल पी जानेपर इनका उनकी पत्नी वापस देना ( अनु० १५४ | २८ ) । ये परमधामगमन के समय बलरामजी के स्वागत के लिये आये थे ( मौसल ०४ । १६ ) । अग्निने वरुणको वापस देनेके लिये अर्जुनसे गाण्डीव धनुष और दिव्य तरकस जलमें डलवा दिये थे ( महाप्र० १ । ४१-४२ ) । महाभारतमें आये हुए वरुण के नाम - अदितिपुत्र, आदित्य, अम्बु, अम्बुपति, अम्बुराट्, अम्ब्वीश, अपाम्पति, देवदेव, गोपति, जलाधिप, जलेश्वर, लोकपाल, सलिलराज, सलिलेश, सलिलेश्वर, उदक्पति, वारिप, यादसाम्भर्ता, यादसाम्पति आदि । ( २ ) एक देवगन्धर्व, जो कश्यपकी पत्नी मुनिके पुत्र थे (आदि० ६५। ४२) । (३) सागर और सिन्धु नदीके सङ्गममें स्थित एक तीर्थ, जिसमें स्नान कर के शुद्धचित्त हो देवताओं, ऋषियों तथा पितरोंके तर्पण करनेका विधान है । ऐसा करने से मनुष्य दिव्य द्युतिसे देदीप्यमान हो वरुणलोकको प्राप्त होता है ( वन० ८२ । ६८-६९ T वरुणद्वीप - एक द्वीपका नाम ( सभा० ३८ । २९ के बाददा० पाठ ) । वरुणस्त्रोतस - दक्षिण दिशा में माठरवनके भीतर सुशोभित होनेवाला माठर ( सूर्यके पार्श्ववर्ती देवता) का विजयस्तम्भ, जो प्रवेणी नदीके उत्तरवर्ती मार्ग में कण्वके पुण्यमय आश्रम में स्थित है ( वन० ८८ । १०-११ ) । वरूथिनी - एक अप्सरा, जिसने इन्द्रकी सभामें अर्जुनके स्वागतार्थ नृत्य किया था चन० ४३ । २९ ) । वरेण्य - प्रजापति भृगुके सात व्यापक पुत्रोंमेंसे एक । इनके छः भाइयोंके नाम हैं- च्यवन, शुचि, और्व, शुक्र, वज्रशीर्ष और सवन । ये सभी भृगुके समान गुणवान् थे ( अनु० ८५ । १२६ - १२९ ) । वर्गा-एक अप्सरा, जो कुबेरकी प्रेयसी थी; परंतु किसी ब्राह्मण के शापसे सौभद्र नामक तीर्थमें ग्राह बनकर रहने लगी थी । सखियों सहित इसके ग्राह होनेका कारण ( आदि० २१५ । १५-२१ ) । अर्जुनद्वारा इसका ग्राहयोनिसे उद्धार ( आदि० २१५ । १२ ) । इसकी सौरभेयी, समीची, बुदबुदा तथा लता नामकी चार सखियाँ थीं। वे सभी ब्राह्मणके शापसे विभिन्न तीर्थों में ग्राह For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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