SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वत्सनाभ ( २९६ ) वराहाश्व वस्सनाभ-एक बुद्धिमान् महर्षि, इनकी कठोर तपस्या और अष्टावक्रका शास्त्रार्थ (बन. १३५ । ३-२०)। भैसेका रूप धारण करके धर्मद्वारा वर्षासे इनकी रक्षा इसकी अष्टावक्रसे शास्त्रार्थमें पराजय (वन १३४ । (अनु. १२ अध्याय दा० पाठ)। अपनेमें कृतघ्नताका २१)। इसका राजा जनकको वरुण-पुत्रके रूपमें अपना दोष देखकर इनका शरीरको त्याग देनेका विचार करना परिचय देना (वन १३४ । २४)। समुद्र में प्रवेश और धर्मका इन्हें समझा-बुझाकर रोकना तथा इनकी करना (वन० १३४ । ३७)। आयुको कई सौ वर्षोंकी बताना (अनु० १२ अध्याय वपु-एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके जन्म-समयमें नृत्य किया दा० पाठ, पृष्ठ ५४६२-५४६३)। __था (आदि० १२२ । ६३)। वत्सल-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ७२)। वपुष्टमा-काशिराज सुवर्णवर्माकी पुत्री जो परीक्षित्कुमार वदान्य-एक प्राचीन ऋषि, जिनसे अष्टावक्रने उनकी कन्या जनमेजयको पतिव्रता पत्नी थी ( आदि.४४ । ८माँगी थी । इनका अष्टावकको अपनी कन्याके विवाहकी ११)। इसके गर्भसे शतानीक और शङ्कुकर्ण नामके दो शर्त बताना और उन्हें उत्तर दिशामें भेजना ( अनु० पुत्र उत्पन्न हुए थे (आदि० ९५ । ८५ )। १९ । २४-२५)। लौटनेपर अष्टावक्रकी यात्राके विषयमें , वपुष्मती-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य. इनका पूछना (अनु०२१। १३-१४)। अष्टावकको ४६ । ११.)। अपनी कन्या ब्याहना (अनु० २१ । १७-१८)। वरद-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५। ६४)। वधूसरा-च्यवन मुनिके आश्रमके समीप बहनेवाली एक बहनेवाली एक वरदान-द्वारकाके निकटका एक तीर्थ, जहाँ मुनिवर दुर्वासानदी, जो भृगुपत्नी पुलोमाके अश्रुविन्दुओंसे प्रकट हुई ने भगवान् श्रीकृष्णको वरदान दिया था। वहाँ स्नान थी। यह वधू (पुलोमा) का अनुसरण करती थी, इसलिये करनेसे मनुष्य सहस्र गोदानका फल पाता है ( वन. ब्रह्माजीने इसका नाम 'वधूसरा' रख दिया ( आदि. ८२ । ६३-६४)। १२५। ६-८)। यह एक पुण्यमयी नदी है। इसमें वरदासङ्गम-एक तीर्थ, जिसमें स्नान करनेसे सहस्त्र गोदानस्नान करनेसे परशुरामजीको तेजोमय शरीरकी प्राप्ति हुई का फल मिलता है (वन०८५। ३५)। (वन० ९९ । ६८)। वरयु-महौजा-वंशका एक कुलाङ्गार राजा ( उद्योग. पध्र-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ५५)। ७४। १५)। वध्यश्व-एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी वरा-भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं उपासना करता है ( सभा०८।१२)। (भीष्म० ९ । २६)। वनपर्व-महाभारतका एक प्रमुख पर्व । वराङ्गी-ये सोमवंशीय राजा संयातिकी पत्नी थीं । इनके वनवासिक-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ५८)। पिताका नाम दृषद्वान् था। इनके गर्भसे संयातिद्वारा बनायु-(१) कश्यपपत्नी दनुका एक पुत्र, यह दनुके दस अहंयातिका जन्म हुआ था ( आदि० ९५ । १४)। प्रधान पुत्रोंमें है ( आदि० ६५।३०)। (२) वराह-(१) एक प्राचीन ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें उर्वशीके गर्भसे पुरूरवाद्वारा उत्पन्न छः पुत्र मेंसे एक । विराजमान होते थे (सभा०४।१७)। (२) शेष पाँचके नाम हैं--आयु, धीमान्, अमावसु, दृढायु मगधकी राजधानी गिरिव्रजके समीपका एक पर्वत (सभा. और शतायु ( आदि.७५ । २५-२६) । (३) एक २१ । २)। (३) भगवान् विष्णुका एक अवतार । भारतीय जनपद (भीष्म०९ । ५६)। इनके द्वारा एकाणवके जलमें डूबी हुई पृथ्वीका उद्धार। वनेय-परुपुत्र रौद्राश्वके द्वारा मिश्रकेशी अप्सराके गर्भसे वराह अवतारके संक्षिप्त चरित्रका वर्णन, इनके द्वारा उत्पन्न । इनके नौ भाई और थे, जिनके नाम हैं- हिरण्याक्षका वध (सभा० ३८ । २९ के बाद दा. पाठ, ऋचेयु, कशेयु, कृकणयु, स्थण्डिलेयु, जलेयु, तेजेयु, पृष्ठ ७८४-७८५)। सत्येयु, धर्मेयु और संततेयु (आदि. ९४।८-११)। वराहक-धृतराष्ट्रकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके वन्दना-भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल भारतवासी सर्पसत्रमें जल गया था (आदि०५७।१८)। पीते हैं (भीष्म०९।१८)। वराहकर्ण-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी वन्दी (बन्दी)-राजा जनकके दरबारका शास्त्रार्थी पण्डित सेवा करता है ( समा० १०।१६)। (वन १३२१)। इसके द्वारा कहोडका जलमें घराहाम्व-एक दैत्य, दानव या राक्षस (शान्ति० २२० । दुबाया जाना (वन. १३२ । १५)। इसके साथ ५२)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy