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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्चा ( २९८ ) वसिष्ठ (वशिष्ठ) हो गयी थीं । इसकी प्रार्थनासे अर्जुनने उनका भी वसिष्ठ ( वशिष्ठ )-एक प्रसिद्ध ब्रह्मर्षि जो ब्रह्माजीके उद्धार कर दिया । ) नारदजीद्वारा इसे तथा इसकी मानस पुत्र माने गये हैं। एक समय जब राजा संवरण सखियोंको दक्षिण समुद्रके समीपवर्ती तीर्थोंमें जानेका शत्रुओंसे पराजित हो सिन्धुनामक महानदके तटवर्ती आदेश और अर्जुनद्वारा इन सबके उद्धार होनेका आश्वा- निकुञ्जमें एक सहस्र वर्षोंतक छिपे रहे, उन्हीं दिनों सन ( आदि० २१६ । १७)। यह कुबेरकी सभामें भगवान् वसिष्ठ मुनि उनके पास आये । राजाने उन्हें धनाध्यक्षकी सेवाके लिये उपस्थित होती है (सभा० उत्तम आसनपर बिठाकर कहा--भगवन् ! हम पुनः १०।२)। राज्यके लिये प्रयत्न कर रहे हैं, आप हमारे पुरोहित हो पर्चा-(१)सोम नामक वसुके प्रथम पुत्र । इनकी माताका जाइये ।' तब वसिष्ठजीने बहुत अच्छा' कहकर भरतनाम मनोहरा था ( आदि. ६६ । २२ )। ये ही वंशियोंको अपनाया और पुरुवंशी संवरणको समस्त अभिमन्युके रूपमें प्रकट हुए थे (आदि०६७ । ११२ क्षत्रियोंके सम्राट-पदपर अभिषिक्त कर दिया (आदि. ११३ स्वर्गा० ५। १८-१९ )। (२) गृत्समदवंशी ९४ । ४०-४५ )। वसिष्ठजीका एक नाम आपव भी सुचेता नामक ब्राह्मणके पुत्र, जो विहव्यके पिता थे है ( आदि. ९८ । २३ )। पूर्वकालमें वरुणने इनको ( अनु० ३० । ६१)। पुत्ररूपमें प्राप्त किया था (आदि. ९९ । ५)। गिरिराज मेरुके पार्श्वभागमें इनका पवित्र आश्रम था। वर्णसंकर-अन्य वर्णकी माता और अन्य वर्णके पितासे जो मृग और पक्षियोंसे भरा रहता था। सभी ऋतुओंमें उत्पन्न संतान । इसके भेदोंका विस्तृत वर्णन (अनु. विकसित होनेवाले फूल उस आश्रमकी शोभा बढ़ाते थे । ४८ अध्याय)। उस आश्रमके निकटवर्ती वनमें स्वादिष्ट फल-मूल और वर्धन-अश्विनीकुमारोंद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदों जलकी सुविधा थी। पुण्यवानोंमें श्रेष्ठ वरुणनन्दन महर्षि मेंसे एक । दूसरेका नाम नन्दन था (शल्य०४५। वसिष्ठ वहीं तपस्या करते थे (आदि० ९९ । ६-७)। ३८)। दक्षकन्या सुरभिकी पुत्री नन्दिनी नामक गौ इन्हें वर्धमान-हस्तिनापुर नगरका एक प्रधान द्वार ( आदि० होमधेनुके रूपमें प्राप्त हुई थी (भादि० ९९ । ८-९)। १२५।९)। एक दिन धोनामक वसुने अपनी पत्नीके बहकानेसे इनकी वर्मक-एक देश, जहाँके निवासियोंको पूर्व-दिग्विजयके समय होमधेनुका अपहरण कर लिया (आदि. ९९ । २८)। भीमसेनने जीता था (सभा० ३० ।१३)। वसिष्ठजी फल-मूल लेकर जब आश्रमपर लौटे, तब बछड़ेवल्कल-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ६२)। सहित उस गौको न देखकर वनमें उसकी खोज करने घल्गुजङ्घ-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक ( अनु. लगे । दिव्य दृष्टिले यथार्थ बातको जानकर इन्होंने रुष्ट । ५२)। हो वसुओंको मनुष्य-योनिमें जन्म लेनेका शाप दे दिया वल्लभ-बलाकाश्वका पुत्र, जो साक्षात् धर्मके समान था। (आदि. ९९ । २९-३३ ) । वसुओंके प्रार्थना करने इसके पुत्रका नाम कुशिक था ( अनु० ४ । ५)। पर इनका सात वसुओंको एक-एक वर्षमें ही शापमुक्त होनेका आशीर्वाद और द्यो नामक वसुके दीर्घकालतक वशातल-एक देश तथा वहाँके निवासी क्षत्रिय राजकुमार, मनुष्य-योनिमें रहने, संतान न उत्पन्न करने तथा जो राजा युधिष्ठिरके लिये भेंट लाये थे (सभा० ५२। धर्मात्मा, सर्वशास्त्रविशारद, पितृहितैषी एवं स्त्री-भोग१५-१७)। परित्यागी होनेका कथन ( आदि० ९९ । ३५-४१)। वसा-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी भीष्मने महर्षि वसिष्ठसे छहों अङ्गोसहित समस्त वेदोंका पीते हैं (भीष्म० ९ । ३१)। अध्ययन किया था ( आदि. १०० । ३५) । अर्जुनके वसाति (१)-ये सोमवंशी महाराज कुरुके वंशज राजा जन्म-समयमें सप्तर्षिमण्डलके साथ ये भी पधारे ये जनमेजयके अष्टम पुत्र थे (आदि० ९४ । ५७)। (आदि. १२२५१)। राजा संवरणके द्वारा इनका चिन्तन (२) एक भारतीय जनपद । यहाँके वीर क्षत्रिय और इनका बारहवें दिन राजाको दर्शन देना ( आदि. दुर्योधनकी आशासे भीष्मकी रक्षा में नियुक्त हो तत्परतासे १७२।१३-१४) । सूर्यकन्या तपतीने राजाका चित्त चुरा उनकी रक्षा करने लगे (भीष्म० ५१ । १४)। लिया है-यह जानकर इनका ऊर्ध्वलोकमें गमन और वसातीय-कौरवपक्षका एक योद्धा, जो अभिमन्युके साथ इनके द्वारा सूर्य भगवान्का स्तवन ! सूर्यद्वारा इनका युद्ध करके उसके द्वारा मारा गया (द्रोण.४४। स्वागत और इन्हें अभीष्ट वस्तु देनेका आश्वासन (भादि. १७२ । १५-२०)। इनका संवरणके For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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