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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रुद्ररोमा ( २८७ ) रेवती करनेसे यात्री इन्द्रलोकमें प्रतिष्ठित होता है ( वन० ८३ । रुषद्व-एक प्राचीन राजा, जो यमराजकी सभामें रहकर १८१.१८२)। उनकी उपासना करते हैं (सभा०८।१३)। रुद्ररोमा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६। रुषद्धिक-सुराष्ट्र-वंशी एक कुलाङ्गार राजा (उद्योग. ७४ । १४)। रुद्रसन-कार्तिकेयका एक नाम और इस नामकी निरुक्ति रुहा-नागमाता सुरसाकी पुत्री इसकी दो बहिनें और है, (वन० २२९ । २७)। जिनके नाम हैं-अनला और वीरुधा । जो वृक्ष फूलसे रुद्रसेन-युधिष्ठिरका सम्बन्धी और सहायक एक राजा फल ग्रहण करते हैं, वे सभी इसकी संतान हैं ( आदि. (द्रोण. १५८ । ३९) । ६६। ७. के बाद दा. पाठ)। रुद्राणी-पार्वतीजीका एक नाम (उद्योग० १३७ । १०)। रूपवाहिक-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४३)। (विशेष देखिये पार्वती) रूपिण-ये सम्राट अजमीढ़के द्वारा केशिनीके गर्भसे उत्पन्न रुद्राणीरुद्र-एक तीर्थ, जहाँ उत्तर दिशाको जाते हुए हुए हुए थे। इनके दो भाई और थे, जिनके नाम हैं---जल अष्टावक्र मुनि पधारे थे (अनु० १९ । ३१)। और व्रजन ( आदि. ९४ । ३२)। रुद्रावर्त-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनसे स्वर्गलोककी प्राप्ति __होती है (वन० ८४ । ३७)। रेणुक-एक रसातल-निवासी अत्यन्त शक्तिशाली और सत्त्व एवं पराक्रमसे युक्त नाग, जिसने देवताओंके भेजनेरुमण्वान्-जमदग्निद्वारा रेणुकाके गर्भसे उत्पन्न ज्येष्ठ पुत्र, से दिग्गजोंके पास जाकर धर्मके विषयमें प्रश्न किया इनके चार भाई और थे । जिनके नाम हैं—सुषेण, वसु, विश्वावसु और परशुराम । इन्हें माताका वध करनेके लिये (भनु० १३२ । २-६)। पिताने आज्ञा दी; परंतु इन्होंने उसका पालन नहीं रेणुका-(१) मुनिवर जमदग्निकी पत्नी एवं परशुरामजीकी किया, जिससे कुपित होकर महर्षि जमदग्निने इन्हें शाप माता (वन० ९९। ४२) इनके गर्भसे रुमण्वान्, सुषेण, दे दिया । शापवश ये मृग-पक्षियोंकी भाँति जड-बुद्धि हो वसु, विश्वावसु और परशुरामका जन्म (वज० ११६ । गये ( वन० ११६ । १०-१२) । परशुरामजीने ४)। इनपर कुपित हुए पिताकी आज्ञासे परशुरामपिताको प्रसन्न करके इन्हें शापमुक्त कराया (बन० द्वारा इनका वध (वन० ११६ । १४)। जमदग्निके ११६ । १७-१८)। वरसे इनका पुनरुजीवन ( वन० ११६ । १७-१८)। रुरु-एक ऋषिकुमार, जो महर्षि च्यवनके पौत्र तथा महर्षि जमदग्निके चलाये हुए बाणोंको इनका उठाप्रमतिके पुत्र थे । घृताची नामकी अप्सराके गर्भसे इनका उठाकर लाना (अनु. ९५। ७-१५)। एक बार लौटनेमें विलम्ब होनेपर इनका पतिको इसका कारण जन्म हुआ था (भादि. ५ । ९ अनु० ३० । ६४)। सर्पदंशनसे मरी हुई अपनी प्रेयसी प्रमद्वराके लिये बताना ( अनु० ९५ । १६-१७ )। रेणुकाइनका विलाप करना । उसे अपनी आधी आयु देकर (२) एक सिद्धसेवित तीर्थ, जिसमें स्नान करके ब्राह्मण चन्द्रमाके समान निर्मल होता है (वन. ८२। जीवित करना तथा उसके साथ इनका विवाह होना (आदि०८ । २६ से ९ । १८तक)। इनका सर्पजातिसे ८२)। (३) कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत एक तीर्थ, द्वेष, दुण्डुभके साथ संवाद एवं इनके प्रति दुण्डुभके जहाँ स्नान आदि करनेसे तीर्थयात्री सब पापोंसे मुक्त वारा अहिंसा एवं वर्णधोका संक्षिप्त उपदेश ( आदि. हो अग्निष्टोम यज्ञका फल पाता है (वन० ८३ । १५९. ९ । १९ से ११ अध्यायके अन्ततक)। सर्पसत्रके विषयमें इनकी जिज्ञासा तथा पिताद्वारा उसका समाधान (मादि. रेवती-(१) बलरामजीकी पत्नी (आदि. २१८ । १२ अध्याय)। .)। (२) अदिति देवीका एक नाम (बन० २२० । रुषंगु-एक ऋषि, जिनके आश्रमपर आर्टिषेण मुनिने घोर २९)।(३) सत्ताईस नक्षत्रोंमेसे एक (भीष्म ११॥ तपस्या की थी और विश्वामित्रको यही ब्राह्मणत्वकी प्राप्ति १८)। कार्तिक मासके रेवती नक्षत्र में मैत्र नामक मुहर्त हुइ थी । अन्त समयमें ये अपने पुत्रोंद्वारा पृथूदक तीर्थमें उपस्थित होनेपर श्रीकृष्णने यात्रा आरम्भ की ( उद्योग. आये और वहाँ इन्होंने ऐसी गाथा गायी कि जो सरस्वती- ८३ । ६.७)। जो रेवती नक्षत्रमें कांस्यके दुग्धपात्रसे के उत्तर तटपर पृथूदक तीर्थम जप करते शरीरका परि- युक्त धेनुका दान करता है, वह धेनु परलोकमें सम्पूर्ण त्याग करता है, उसे फिर मृत्युका कष्ट नहीं भोगना पड़ता भोगोंको लेकर उस दाताकी सेवामें उपस्थित होती है (शल्य ३९ । २४-३४)। (अनु०६४ । ३३)। रेवतीमें श्राद्ध करनेवाला पुरुष For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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