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( २८८ )
रोहिणी
सोने चाँदीके सिवा अन्य नाना प्रकारके धन पाता है इसकी परिक्रमा की । इसी उत्सवके अवसरपर यहाँसे (अनु० ८९ । १४)। चान्द्रव्रतमें रेवतीको चन्द्रमाका अर्जुनद्वारा सुभद्राका अपहरण हुआ ( आदि० २१९ । नेत्र मानकर उनके उस अङ्गकी पूजाका विधान है ६-७)। (२) शाकद्वीपका एक पर्वत (भीष्म० (अनु. ११०।५)।
११।१८)। रैभ्य-(१) एक ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान रोचनामुख-एक दैत्य, जो गरुडद्वारा मारा गया था होते थे (सभा० ४।१६)। ये भरद्वाज मुनिके सखा (उद्योग० १०५।२)। थे। इनके दो पुत्र थे-अर्वावसु और परावसु । पुत्रोंसहित रैभ्य रोचमान-(१) एक क्षत्रिय राजा, जो अश्वग्रीव नामक बड़े विद्वान् थे—(वन० १३५ । १२-१४)। भरद्वाजका महान् असुरके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि० ६७ । यवक्रीतको रैभ्य मुनिके पास जानेसे रोकना ( बन० १८)। द्रौपदीके स्वयंवरमें इनका शुभागमन हुआ था १३५। ५७-५८)। इनका यवक्रीतपर कुपित हो अपनी (आदि. १८५।।.)। (यह भी सम्भव है कि कोई जटाकी आहुतिद्वारा एक कृत्या और एक राक्षस उत्पन्न दुसरे रोचमान वहाँ पधारे हों। ) ये अश्वमेध देयके राजा करना तथा उन्हें यवक्रीतको मार डालनेका आदेश देना थे, इन्हें भीमसेनने अपनी दिग्विजयके समय परास्त (धन. १३६ । ८-१२)। भरद्वाज मुनिका इन्हें अपने किया था (सभा०२९। ८)। इन्हें ही पाण्डवोंकी ओरसे ज्येष्ठ पुत्रके हाथसे मारे जानेका शाप देना ( वन. रणनिमन्त्रण भेजनेका विचार किया गया था (उद्योग. १३७।१५)। अपने पुत्र परावसुद्वारा हिंसक पशुके ४ । १२)। ये पाण्डवपक्षके महारथी वीर थे ( उद्योग. धोखेमें इनकी मृत्यु (वन. १३८ । ६)। अपने १७२।१)। इन्हें ताराओंसे चित्रित अन्तरिक्षके समान दूसरे पुत्र अविसुके प्रयत्नसे इनका पुनरुजीवन (वम. चितकबरे घोड़ोंने युद्धभूमिमें पहुँचाया था (द्रोण. २० । १३८ । २०-२३)। ये अङ्गिराके पुत्र थे (शान्ति. ४७)। इनका कर्णके साथ युद्ध और उसके द्वारा २०८ । २६-२७)। इनका उपरिचर वसुके यशमें सदस्य घायल होना (कर्ण० ५६ । ४५-४७)। ( प्रकरण होना (शान्ति. ३३६ । ७)। प्रयाणके समय भीष्म- देखनेसे ये पाञ्चालदेशीय, चेदिदेशीय अथवा किसी अन्य देशजीको देखने आये थे (अनु. २६ । ६)। (२) के निवासी भी सिद्ध होते हैं।) इनका कर्णद्वारा वध (कर्ण. एक मुनि, जिन्हें वीरणसे सात्वत धर्मका उपदेश प्राप्त ५६ । ४९)। (२) एक उरगावासी नरेश, जिन्हें अर्जुनने हुआ था और जिन्होंने अपने पुत्र दिक्पाल कुक्षिको इस दिग्विजयके समय परास्त किया था (सभा. २७ । १९)।
धर्मकी शिक्षा दी थी (शान्ति०३४८।१२-४३)। (३) ये रोचमान नामके ही दो भाई थे द्रोणाचार्यद्वारा रेवत-(१) रेवतीके ग्रहका नाम (वन.२३०।२९)। इनके मारे जानेकी चचो (कणे०६।२०-२१)।
(२) एक प्राचीन राजा, जो दक्षिण दिशामें स्थित रोचमाना-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (पाल्य.४६ । मन्दराचलके कुञ्जोंमें गन्धर्वोद्वारा गायी जानेवाली गाथाओं- २९)। के रूपमें सामगान सुनते-सुनते इतने तन्मय हो गये कि रोमक-एक भारतीय जनपद और वहाँके निवासी, ये अपनी स्त्री, मन्त्री तथा राज्यसे भी वियुक्त हो वनमें युधिष्ठिरके लिये भेंट-सामग्री लेकर आये थे (सभा० जानेको विवश हुए (उद्योग० १०९। ९-१०)। इन्हें ५१।१७)। मरुत्तसे और इनसे युवनाश्वको खड्गकी प्राप्ति हुई रोहिणी-(१) क्रोधवशा-कुमारी सुरभिकी पुत्री (गौ)। (शान्ति. १६६।७७-७८)। इनके द्वारा मांस-भक्षण
इसकी विमला और अनला नामकी दो कन्याएँ थीं। का निषेध (अनु. ११५।६३)। ये सायं-प्रातः कीर्तन
इससे गाय-बैलोंकी उत्पत्ति हुई (सभा० ६६ । ६०करनेयोग्य नरेश हैं (अनु० १६५।५३)। (३)ग्यारह
६८)।(२) चन्द्रमाकी पत्नी (भादि. १९८ । रुद्रों से एक (शान्ति. २०८। १९)।
५)। प्रजापति दक्षकी नक्षत्रसंशक सत्ताईस कन्याओंमें रैवतक-(१)(गुजरातका एक पर्वत, जो आधुनिक यह प्रमुख थी और अपने रूप-वैभवसे अन्य सब बहिनों
जूनागढ़के पास है और गिरनार' कहा जाता है। की अपेक्षा विशेष बढ़ी-चढ़ी थी, इसीलिये पतिकी हृदयइसीको महाभारतमें 'उजयन्त गिरि' कहा गया है। यह वल्लभा हो गयी थी (शल्य०३५ । ४५-४८)। इसे प्रभासक्षेत्रसे अधिक दूर नहीं हैं। ) श्रीकृष्ण और अर्जुन असि (ख) का गोत्र कहा गया है (शान्ति. १६६ । प्रभास क्षेत्रमें घूम-फिरकर इसी पर्वतपर चले आये थे ८२)। रोहिणी नक्षत्रमें पके हुए फलके गूदे, अन्न, ( आदि० २१७ । ८) । यहाँ यदुवंशियोंका महान् घी, दूध, पीने योग्य पदार्थ ब्राह्मणको दान करनेसे दाताको उत्सब हुआ था (आदि० २१८ । १-१२)। सुभद्राने ऋणसे छुटकारा मिलता है (अनु०१४ । ३) । संतानकी
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