SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युधिष्ठिर ( २७७ ) युधिष्ठिर rarurwwwwwwwwwwww लानेके लिये इनका प्रस्थान (आश्व० ६३ । २०-२४)। का दुखी होकर उन्हींको राज्य अर्पित करके स्वयं उनकी हिमालयपर पहँचकर पड़ाव डालना और ब्राह्मणोंके कहनेसे सेवामें रहने की इच्छा प्रकट करना ( आश्रम. .भाइयोसहित उस रात उपवास करना (आश्व० ६४। ५५)। मूर्छित हुए धृतराष्ट्रके शरीरपर इनका हाथ फेरना ७-१५)। पार्षदोसहित भगवान् शंकरकी पूजा करना और धृतराष्ट्रका इन्हें हृदयसे लगाकर इनका मस्तक सैंधना (आश्व०६५ । २-१३) । धन खुदवाकर वाहनोंपर (आश्रम ३।६७-७५)। इनका धृतराष्ट्रसे आहार लादकर इनका हस्तिनापुर लौटना (आश्व० ६५ । २०- ग्रहण करनेके लिये आग्रह करना (आश्रम. ३।८४२१)। व्यासजी तथा श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको यज्ञके लिये ८५)। व्यासजीके समझानेसे युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें आज्ञा देना (आश्व० ..। १५-२६) । अश्वमेध- जानेके लिये अनुमति देना ( आश्रम. ४ अध्याय)। सम्बन्धी अश्वकी रक्षा कौन करे-इसके विषयमें इनका धृतराष्ट्रद्वारा इनको राजनीतिका उपदेश (आश्रम अध्याय व्यासजीसे पूछना और उनकी आज्ञाके अनुसार अर्जुनको ५ से ७ तक)। धृतराष्ट्रका विदुरके द्वारा श्राद्धके लिये अश्वकी रक्षाके लिये जानेका आदेश देना ( आश्व०७२। इनसे धन माँगना और इनका प्रसन्नतापूर्वक १२-२४) । इनका भीमसेनको राजाओंकी पूजा करनेका स्वीकार करना ( आश्रम. ११ ।१-७)। आदेश और श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे अर्जुनका संदेश कहना भीमसेनके विरोध करनेपर युधिष्ठिरका उन्हें चुप रहनेके (आश्व० ८६ अध्याय)। अर्जुनको क्यों अधिकतर कष्ट लिये कहना (आश्रम. ११ । २५)। इनका धृतराष्ट्रउठाना पड़ता है-इसके विषयमें युधिष्ठिरको जिज्ञासा और को यथेष्ट धन देनेकी स्वीकृति प्रदान करना ( आश्रम श्रीकृष्णका इसमें अर्जुनकी मोटी पिण्डलियोंको ही कारण १२ । ७-१३)। धृतराष्ट्रके वनको प्रस्थान करते समय बताना (आश्वः ८७।--१.)। बभ्रुवाहनका इन्हें युधिष्ठिरका फूट-फूटकर रोना और मूञ्छित होकर गिर प्रणाम करना और इनका उसे सत्कारपूर्वक धन देना जाना (आश्रम० १५ । ६)। इनका कुन्तीको घर (आश्व० ८८ । ६, १०-११)। व्यासजीकी आज्ञाके अनु- लौटने के लिये कहना और कुन्तीका इन्हें सब भाइयों सार युधिष्ठिरका अश्वमेध यज्ञकी दीक्षा लेना (आश्व. तथा द्रौपदीपर स्नेह रखनेके लिये कहकर स्वयं वनको ही ८८ । १२-१७) । इनके यज्ञवैभवका वर्णन (आश्व० जानेका निश्चय प्रकट करना (आश्रम १६।७-१७)। ८८।१४-४०) । युधिष्ठिरका यज्ञके धूमकी गन्ध इनका कुन्तीसे उनके वनगमनको अनुचित बताकर बारसूंघना और यज्ञ पूर्ण होनेपर भगवान् व्यासका इन्हें बधाई बार घर लौटनेके लिये ही अनुरोध करना (भाश्रम. देना (आश्व० ८९ । ५-७)। इनका ब्राह्मणोंको दक्षिणा १६ । १९-२८)। कुन्तीका युधिष्ठिरको उनके अनुरोधदेना और राजाओंको भेंट देकर विदा करना ( आश्व० ८९। का उत्तर देना (भाश्रम० १७ अध्याय)। युधिष्ठिरकी ७-३८)। यज्ञ पूर्ण करके इनका अपने नगरमें प्रवेश मातासे मिलनेके लिये वनमें जानेकी इच्छा, सहदेव और ( आश्व० ८९ । ३९-४४)। इनके यशमें एक नेवलेका द्रौपदीका इनके साथ जानेका उत्साह तथा रनिवास और उञ्छवृत्तिधारी ब्राह्मणके द्वारा किये गये सेरभर सत्तदानकी सेनासहित इनका वनको प्रस्थान (भाश्रम० २२ भन्याय)। । महिमाको उस अश्वमेध यज्ञसे भी बढ़कर बतलाना (आश्व. सेनासहित इनकी यात्रा और कुरुक्षेत्रमें पहुँचना (भाश्रम. ९० अध्याय)। युधिष्ठिरके पूछने पर भगवान् श्रीकृष्णका २३ अध्याय)। इनके द्वारा वनमें कुन्ती, गान्धारी और इन्हें धर्मकी महत्ता और दान आदिका माहात्म्य विस्तार- धृतराष्ट्र का दर्शन (भाश्रम २४ अध्याय)। संजयका पूर्वक बताना ( आश्व० ९२ दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ ६३० -- ऋषियोंको इनका परिचय देना (आश्रम० २५। ५)। ६३८१)। श्रीकृष्ण के द्वारका जाते समय इनका उनके धृतराष्ट्र और युधिष्ठिरकी बातचीत तथा विदुरका युधिष्ठिररथपर बैठकर कुछ देरके लिये सारथिका कार्य हाथमें लेना के शरीरमें प्रवेश ( आश्रम० २६ अध्याय )। युधिष्ठिर और उन्हें विदा करके उन्हींके भजन-चिन्तनमें लग जाना आदिका ऋषियोके आश्रम देखना, कलश आदि बॉटना (आश्व० ९२ । दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ६३८१-६३८२)। ___ और धृतराष्ट्र के पास आकर बैठना ( आश्रम० २७ । ५भाइयोसहित युधिष्ठिरका धृतराष्ट्र और गान्धारीकी सेवा १५)। महर्षि व्यासद्वारा विदुर और युधिष्ठिरकी धर्मकरना ( आश्रम ।। ६-७)। इनका अपने भाइयों रूपताका प्रतिपादन ( आश्रम० २८।१-२२)। और मन्त्रियोंको राजा धृतराष्ट्रकी सेवाके लिये प्रेरित करना धृतराष्ट्र और मातासे विदा लेकर युधिष्ठिर आदिका और उनकी सेवासे मुँह मोड़नेवालेको अपना शत्रु बताना हस्तिनापुरमें आगमन ( आश्रम० ३६ भन्याय )। (भाश्रम २ । ३-५)। युधिष्ठिरके द्वारा धृतराष्ट्र और नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका गान्धारीकी सेवा (आश्रम० २।१७-२०)। धृतराष्ट्रका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक (भाश्रम ३७ युधिष्ठिरसे बनमें जानेके लिये अनुमति माँगना और युधिष्ठिर- अध्याय)। नारदजीके सम्मुख युधिष्ठिरका धृतराष्ट्र आदि For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy