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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युधिष्ठिर ( २७३ ) युधिष्ठिर भाइयोंको सरोवरपर पड़ा देखकर विलाप करना (वन० ३१३।४-२७)। युधिष्ठिरका सरोवरके जलमें प्रवेश और यक्षका उन्हें अपने प्रश्नोंका उत्तर देकर ही पानी पीने और ले जानेका आदेश देना (वन० ३१३ । २८३०)। 'तुम कौन हो ?' युधिष्ठिरके यह पूछनेपर यक्षका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देना और युधिष्ठिरका अपनी बुद्धिके अनसार उसके प्रश्नोंका उत्तर देनेकी प्रतिज्ञा करना (वन० ३१३ । ३१-३४)। इनका यक्षके प्रश्नोंका उत्तर देना (वन० ३१३ । ४५---१२१) । 'तुम अपने भाइयोंमेंसे जिस एकको चाहो, वह अकेला ही जीवित हो सकता है। यक्षके ऐसा कहनेपर युधिष्ठिरका नकुलके जीवित होनेकी इच्छा प्रकट करना--इस विषयमें यक्ष और युधिष्ठिरका संवाद । इनकी बातसे संतुष्ट हुए यक्षका इनके सभी भाइयोंके जवित होनेका वर देना (वन० ३१३ । १२२--1३३). यक्षका चारों भाइयोंको जिलाकर धर्मके रूपमें प्रकट हो युधिष्ठिरको वरदान देना (वन३१४ अध्याय)। अज्ञातवासके विषयमें अनुमति लेते समय युधिष्ठिरको महर्षि धौम्यका समझाना और भीमसेनका उत्साह देना ( वन० ३१५।२६)। युधिष्ठिरका ब्राह्मणको अरणीसहित मन्यनकाष्ठ सौंपना और अपने भाइयोंको एकत्र करके अर्जुनसे कोई उत्तम निवासस्थान चुननेके लिये कहना ( विराट० । ६-९)। इनका विराटनगरमें अशतवासका एक वर्ष बितानेका निश्चय प्रकट करना और अर्जुनके पूछनेपर विराटनगरमें अपने द्वारा किये जानेवाले भावी कार्यक्रमको बताना (विराट० १ । १५-२८)। इनका भीमसेनसे उनके भावी कार्यक्रमको पूछना (विराट०१। दाक्षिणात्य पाठसहित २८)। अर्जुनके भावी कार्यक्रमके विषयमें पूछना (विराट० २ । ११-२४) । नकुलके कार्यके विषयमें जिज्ञासा करना ( विराट० ३।२)। सहदेवसे उनका भावी कार्यक्रम पूछना ( विराट. ३।७)। द्रौपदीके कार्यक्रमके विषयमें पूछना (विराट. ३।१४-१७)। इनका द्रौपदीको प्रोत्साहन देना (विराट० ३ । २२-२३)। इनका पुरोहित और द्रौपदीकी सेविकाओंको रसोइयोसहित पाञ्चालदेशमें जानेका आदेश देना तथा इन्द्रसेन आदिको केवल रथ लेकर द्वारका भेजना (विराट. ४ । १-५)। धौम्यका इन्हें राजाके यहाँ रहनेका ढंग बताना (विराट०४।७-५१) इनका धौम्यके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना (विराट. ४। ५२-५३)। इनका द्रौपदीको कंधेपर बिठाकर ले चलनेके लिये अर्जुनको आदेश देना (विराट० ५। . )। राजधानीके समीप पहुँचकर इनका अर्जुनको अपने-अपने भस्त्र उतारकर कहीं रख देनेकी आज्ञा देना (विराट. म० ना० ३५ ५।९-१२)। इनका नकुलको शमी वृक्षपर चढ़कर सबके धनुष रखनेकी आज्ञा देना और पाँचों भाइयों के गुप्त नाम निश्चित करना (विराट० ५। २८-३५)। इनके द्वारा दुर्गादेवीका स्तवन और देवीका प्रत्यक्ष प्रकट होकर इन्हें वर देना (विराट० ६ अध्याय)। युधिष्ठिरका राजा विराटसे मिलना और उनके यहाँ आदरपूर्वक निवास पाना (विराट० . अध्याय)। कीचकद्वारा मारी जानेपर द्रौपदीको इनका संकेतसे आश्वासन देना (विराट. १६ । ४०-४४)। सुशर्माके हाथसे विराटको छुड़ानेके लिये भीमसेनको आदेश (विराट. ३३।११-१३)। इनका एक हजार त्रिगौंको युद्ध में मार गिराना (विराट. ३३ । ३३ ) । सुशर्माको दासभावसे मुक्त करना (विराट. ३३ । ६.)। इनके द्वारा राजा विराटका अभिनन्दन (विराट० ३४ । १४)। इनके द्वारा की गयी बार-बार बृहन्नलाकी प्रशंसासे रुष्ट हुए विराटका युधिष्ठिरके मुखपर पासेसे प्रहार करना और इनकी नाकसे रक्त गिरना (विराट० ६८ । ३७-४७)। उत्तरके कहनेसे विराटका युधिष्ठिरसे क्षमा माँगना और इनका पहलेसे ही किये हुए क्षमादानको सूचित करना (विराट. ६८।६१-६५)। अर्जुनका राजा विराटको महाराज युधिष्ठिरका परिचय देना (विराट. ७० अध्याय)। विराटका युधिष्ठिरको राज्य समर्पण करके अर्जुनके साथ उत्तराके विवाहका प्रस्ताव करना (विराट०७१।२८३५)। इनका मत्स्यनरेशकी कन्या और पार्थपत्र अभिमन्युके सम्बन्धका अनुमोदन करना और मित्रों के यहाँ निमन्त्रण भेजना ( विराट. ७२ । १२-१३)। अभिमन्यु और उत्तराका विवाह हो जानेपर धर्मपुत्र युधिष्ठिरद्वारा ब्राह्मणोंको धन, सहस्रों गौ, नाना प्रकारके रत्न, भाँति-भाँतिके वस्त्र, आभूषण, वाहन और शय्या आदिका दान (विराट. ७२ । ३८-४०)। विराट सभामें युधिष्ठिर आदिके समक्ष भगवान् श्रीकृष्ण, बलराम, सात्यकि और द्रुपदके भाषण (उद्योग. अध्याय १ से १ तक)। अर्जुन के साथ युद्ध होनेके समय कर्णका सारथि बननेपर उसके उत्साहको नष्ट करनेके लिये इनकी शल्यसे प्रार्थना (उद्योग० ८ । ४५; उद्योग० १८ । २३)। युधिष्ठिरकी सहायताके लिये आयी हुई सेनाओंका संक्षिप्त विवरण (उद्योग० १९।१-१५)। संजयसे कौरवपक्षका कुशल पूछते हुए इनका सारगर्भित प्रश्न करना (उद्योग. २३ । ६-२८) । इन्द्रप्रस्थ लौटानेपर ही शान्ति सम्भव होगी-संजयसे ऐसा कथन ( उद्योग २६ । २९)। संजयकी बातोंका उत्तर देना ( उद्योग २८ अध्याय)। संजयके विदा होते समय प्रधान-प्रधान कुरुवंशियोंको इनका संदेश (उद्योग०३०।३-१९)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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