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युधिष्ठिर
( २७४ )
युधिष्ठिर
दुर्योधनसे पाँच गाँवकी माँगका संदेश ( उद्योग. ३१।१९)। इनके रथका वर्णन (उद्योग० ५६ । १४)। इनका श्रीकृष्णसे धृतराष्ट्रके लोभकी चर्चा करते।
और धनकी महत्ता बताते हुए अपना अभिप्राय निवेदन करना (उद्योग०७२। ६-७०)। माता कुन्ती और कौरवोंसे कहने के लिये श्रीकृष्णको संदेश देना ( उद्योग ८३ । ३७-४८)। कुन्तीका श्रीकृष्णसे युधिष्ठिर आदिके कुशल-समाचार पूछना और अपने दुःखौंको याद करके रोना (उद्योग. ९०। ४-८९) । कुन्तीके द्वारा युधिष्ठिरको संदेश ( उद्योग० अध्याय १३२ से १३६ तक)। इनका श्रीकृष्णसे कौरवसभाका समाचार पूछना
और श्रीकृष्णका इन्हें उत्तर देना (उद्योग० अध्याय १४७ से १५० तक)। प्रधान सेनापति चुननेके लिये इनका प्रस्ताव (उद्योग० १५१।८)। कुरुक्षेत्रमें अपनी सेनाका पड़ाव डालना ( उद्योग. १५२ । १)। श्रीकृष्णसे अपने कर्तव्यके विषयमें पूछना (उद्योग. १५४ । ५) । अपने सेनापतिका अभिषेक करना (उद्योग. १५७ । ११-१४)। उलूकको दुर्योधनके संदेशका उत्तर देना (उद्योग. १६२ । ५१-५६) उद्योग. १६३ । २५-३०)। इनका अर्जुनसे उनकी शक्ति जानने के लिये प्रश्न करना (उद्योग० १९४।७)। अपनी सेनाको कुरुक्षेत्रके मैदानमें ले जाना (उद्योग० १९६ अध्याय)। अर्जुनको अपनी सेनाकी न्यूहरचना करनेका आदेश देना ( भीष्म १९ । ६)। कौरवसेनाको देखकर इनका विषाद करना (भीष्म०२१।३५)। अपना अनन्तविजय नामक शङ्ख बजाना (भीष्म० २५।१६)। भीष्मसे युद्धके लिये आज्ञा मांगना (भीष्म०४३ । ३७)। द्रोणाचार्यको प्रणाम करके
से युद्ध के लिये आज्ञा माँगना (भीष्म ४३ । ५२)। कृपाचार्यका सम्मान करके उनसे भी युद्ध के लिये आज्ञा माँगना (भीम० ४३ । ६९)। शल्यसे युद्ध के लिये आशा माँगना ( भीष्म० ४३ । ७४) । युधिष्ठिरका कौरववीरों को अपने पक्षमें आनेके लिये निमन्त्रित करना और आये हुए युयुत्सुको अपने पक्षमें ले लेना (भीष्म ४३ । ९४-१०१)। प्रथम दिनके युद्ध में शल्यके साथ इनका द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म० ४५ । २८-३०)। भीष्मका पराक्रम देखकर इनकी चिन्ता (भीष्म ५०। ४२४)। इनका शल्यके साथ युद्ध (भीष्म०७१।१८२१)। इनके द्वारा अपनी सेनाके वज्रब्यूहका निर्माण (भीष्म.८१।२२-२३)। इनका भयंकर कोप और इनके द्वारा श्रुतायुकी पराजय (भीष्म० ८४ । ८-१७)। शिखण्डीको उपालम्भ देना (भीष्म.८५। २०-२५)। भीष्मसे भयभीत होकर इनका धनुष-बाण फेंक देना
(भीष्म० ८५ । ३१) । भीष्मके साथ युद्ध और इनकी पराजय (भीष्म० ८६ । २-११)। इनपर भगदत्तका आक्रमण ( भीष्म० ९५ । ८४)। भीष्मका इन्हें सब
ओरसे घेर लेना (भीष्म. १०२। २७-२८) । इनका शकुनिके साथ युद्ध (भीष्मः १०५।११-२३) । शल्यके साथ युद्ध (भीष्म० १०५ । ३०-३३) । इनका करुणापूर्ण शब्दोंमें भीष्मवधके लिये श्रीकृष्ण मे सलाह पूछना (भीष्म. १०७ । १३-२४) । भीष्मवधका उपाय उन्हींसे पूछनेके लिये श्रीकृष्णसे कहना (भीष्म० १०७ । ४१-५१)। भीष्मके पास जाकर उनसे उनके वधका उपाय पूछना (भीष्म. १०७ । ६२-७४)। द्रोणाचार्यके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११० । १७ भीष्म १११ । ५०-५२)। भीष्मके आदेशसे अपनी सेनाको उनपर आक्रमण करने की आज्ञा देना (भीष्म ११५। १७-२०)। शल्यके साथ दन्द्वयुद्ध (भीष्म ११६ । ४०-४१)। श्रीकृष्णसे वार्तालाप (भीष्म. १२० । ६९-७०)। धृतराष्ट्रद्वारा इनकी वीरताका वर्णन (द्रोण. १०।७-१२)। द्रोणाचार्यकी अपनेको पकड़नेकी प्रतिज्ञा सुनकर अर्जुनको अपने पास ही रहने के लिये कहना (द्रोण० १३ । ३-६)। द्रोणाचार्यसे अपनी रक्षाके लिये इनका अर्जुनको आदेश देना (द्रोण. १७ । १२-१३)। द्रोणाचार्यद्वारा निर्मित गरुडव्यूहको देखकर इनका भयभीत होना (द्रोण० २०।२०-२१)। इनके रथके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । १०)। शल्यके साथ युद्ध (द्रोण. २५ । १५-१७)। भगदत्तको विशाल रथ-सेनाके द्वारा इनका घेरना (द्रोण० २६ । ३१-३९) । अभिमन्युको व्यूह-भेदनके लिये कहना (द्रोण० ३५ । १४-१७)। जयद्रथका इन्हें व्यूहमें घुसनेसे रोक देना (द्रोण० ४२ । ३-८)| अभिमन्युकी मृत्युके पश्चात् इनका अपने सैनिकोंको सान्त्वना देना (द्रोण०४९।३५)। अभिमन्युकी मृत्युपर इनका करुणविलाप (द्रोण. ५१ अध्याय)। व्यासजीसे मृत्युकी उत्पत्ति आदिके विषयमें प्रश्न करना (द्रोण. ५२ । १८-१९)। व्यासजीके समझानेसे अभिमन्यु-वधजनित शोकसे रहित होना (द्रोण०७१ । २५-२६)। अर्जुनसे अभिमन्युवधका वृत्तान्त कहना (द्रोण ७३ । १--१६)। इनकी युद्धकालमें भी दान-पूजन आदिकी नित्य-चर्या (द्रोण. ८२ अध्याय)। जयद्रथ वधके लिये की गयी अर्जुनकी प्रतिज्ञाको पूर्ण करनेके लिये श्रीकृष्णसे प्रार्थना करना (द्रोण० ८३ । १०--१९) । अर्जुनको विजयका आशीर्वाद देना (द्रोण० ८४ । ४)। इनका शल्यके साथ युद्ध (द्रोण० ९६ । २९-३०)। कृतवर्मापर इनका आक्रमण (द्रोण. ९७।२)। द्रोणाचार्यके
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