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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युधिष्ठिर ( २७२ ) युधिष्ठिर - (वन० १६६ अध्याय ) । अर्जुनद्वारा इनके समक्ष अपनी बताना, युधिष्ठिरका कौरवोंको बन्धनसे छुड़ाना, गन्धर्वोकी तपस्या, यात्रा तथा स्वर्ग-यात्राके वृत्तान्तका वर्णन (वन. प्रशंसा करना और दुर्योधनको प्रेमपूर्वक दुःसाहससे निवृत्त भध्याय १६७ से १७३ तक)। अर्जुनद्वारा यात्राका वृत्तान्त होनेकी सलाह देना ( वन० २४६ । १२-२३)। सुनकर इनके द्वारा उनका अभिनन्दन तथा दिव्यास्त्र-दर्शन- दुःशासनका युधिष्ठिरके पास दूत भेजकर उन्हें दुर्योधनके की इच्छा (वन० १७४ । ११-१५)।युधिष्ठिर और भीम- वैष्णव-यज्ञमें आनेके लिये संदेश कहलाना तथा युधिष्ठिर सेनका वार्तालाप (वन० १७६ । ७-१७)। भाइयोसहित का दुर्योधनके यज्ञकर्मकी प्रशंसा करके समय-पालनसे युधिष्ठिरका गन्धमादनसे बदरिकाश्रम आदि स्थानोंमें होते पहले आनेमें असमर्थता प्रकट करना ( वन० २५६ । हुए द्वैतवनमें प्रवेश (वन० १७७ अध्याय)। युधिष्ठिरको ७--१४)। कर्णद्वारा अर्जुन-वधकी प्रतिज्ञा सुनकर अनिष्ट-दर्शनसे चिन्ता तथा उनके द्वारा भीमसेनकी खोज इनकी चिन्ता (वन. २५७ । २३-२४ ) । स्वप्नमें करते हुए उनके पास पहुँचकर उन्हें अजगरके वशमें पड़ा मृगौसे प्रेरित होकर भाइयोसहित युधिष्ठिरका काम्यकवनमें हुआ देखना (वन० १७९ अध्याय)। इनकी अजगर- गमन (वन० २५८ अध्याय )। युधिष्ठिरकी चिन्ता, रूपधारी नहुषसे बातचीत तथा इनके द्वारा अपने प्रश्नों- व्यासजीका आगमन, युधिष्ठिरद्वारा उनका सत्कार, उनका का उचित उत्तर पाकर संतुष्ट हुए सर्परूपधारी नहुषका युधिष्ठिरसे तप और दानकी महिमा बताना और उनके भीमसेनको छोड़ देना और युधिष्ठिरके साथ वार्तालाप करने पूछनेपर तपसे भी दानको ही श्रेष्ठ बताना (वन० २५९ के प्रभावसे सर्पयोनिसे मुक्त हो स्वर्गको जाना (वन० । अध्याय)। दुर्योधनका दुर्वासाको संतुष्ट करके उनसे अध्याय १८० से १८१ तक)। युधिष्ठिर आदिका पुन: युधिष्ठिरका अतिथि होनेके लिये कहना (वन० २६२ । द्वैतवनसे काम्यकवनमें प्रवेश (वन. १८२ । १७. ७-२२)। इनके द्वारा दुर्वासाका अतिथि-सत्कार १८)। सत्यभामासहित श्रीकृष्णका युधिष्ठिरके पास आना (वन. २६३ । २-४)। द्रौपदीहरणके अवसरपर और इनको तथा भीमसेनको प्रणाम करना (वन० १८३।। इनका त्रिगर्तराजके साथ युद्ध और इनके द्वारा उसका ७-८)। इनके द्वारा श्रीकृष्णको बातोंको सुनकर उनका वध, भीमद्वारा बदी होकर जयद्रथका युधिष्ठिरके सामने अनुमोदन करना (वन. १८३ । १६-४०)। इनके उपस्थित होना, उसकी दशा देखकर युधिष्ठिरका हँसना और पास मार्कण्डेयजीका शुभागमन तथा इनके पूछनेपर उसे दासभावसे मुक्त करके छोड़ देनेका आदेश देना तथा मार्कण्डेयजीद्वारा कर्मफलका विवेचन (वन. १८३ । जयद्रथको उसके दुष्कर्मके लिये धिकारकर जानेके लिये ४१-९५) । इनका मार्कण्डेयजीसे सर्वकारण काल- आज्ञा देना ( वन० २७२ । १४---२३ )। अपनी विषयक जिज्ञासा (वन०१८८२-१६) मार्कण्डेयजीसे कलि दुरवस्थासे दुखी हुए युधिष्ठिरका मार्कण्डेय मुनिसे प्रश्न युगके प्रभावका वर्णन करनेके लिये प्रश्न (वन०१९०१२-६)। करना और उनका उन्हें श्रीरामोपाख्यान सुनाना, अन्तमें युधिष्ठिरके पूछनेपर मार्कण्डेयजीका इनके लिये धर्मका राजा युधिष्ठिरको आश्वासन देना (वन० अध्याय २७३ उपदेश (वन. १९१ । २१-३०)। युधिष्ठिरका से २९२ तक)। युधिष्ठिरकी मार्कण्डेयजीसे द्रौपदी-जैसी उनके बताये धर्मके पालनकी प्रतिज्ञा करना ( वन. दूसरी किसी पतिव्रता नारीके विषयमें जिज्ञासा और १९११३१-३२)। पतिव्रता और धर्मब्याधकी कथा सुनकर मार्कण्डेयजीका उनके प्रश्न के उत्तरमें सावित्रीका उपाख्यान युधिष्ठिरका संतोष प्रकट करना (वन० २१६ । ३६)। सुनाना (वन० अध्याय २९३ से २९९ तक)। युधिष्ठिरयुधिष्ठिरकी अग्निके विषयमें जिज्ञासा और मार्कण्डेयजीद्वारा का नकुलको वृक्षपर चढ़कर पानीका पता लगानेके लिये अग्निवंशका वर्णन ( वन० अध्याय २१७ से २२२ कहना (वन० ३१२ । ५.६)। नकुलके पानीका पता तक)। युधिष्ठिरके पूछनेपर मार्कण्डेयजीका इन्हें कार्ति- लगानेपर युधिष्ठिरका उनको तरकसोंमें पानी भर लानेका केयके जन्म-कर्मका वृत्तान्त सुनाना (वन० अध्याय आदेश (वन० ३१२ । ९)। नकुलके लौटनेमें देर २२३ से २३१ तक ) । इनका कार्तिकेयके त्रिलोक- होनेपर युधिष्ठिरका सहदेवको भेजना ( वन० ३१२ । विख्यात नामोंको सुननेकी इच्छा प्रकट करना और १४-१५)। उनके लौटने में भी विलम्ब होनेपर इनका मार्कण्डेयजीका इन्हें उन नामोंको सुनाना (वन० २३२ अर्जुनको पहलेके गये हुए दोनों भाइयोंको बुलाने और अध्याय)। युधिष्ठिर आदि पाण्डवोंका समाचार सुनकर पानी लानेके लिये आदेश देना (बन० ३१२। २०. धृतराष्ट्रका खेद और चिन्तापूर्ण उद्गार (वन० २३६ ।। २१)। उनके लौटनेमें भी देर होनेपर युधिष्ठिरका भीमअध्याय)। इनका भीमसेनको गन्धर्वोके हाथसे कौरवोंको सेनको भेजना (वन० ३१२ । ३३-३५) । अन्तमें छुड़ानेका आदेश ( वन. २४३ । १--१९ )। युधिष्ठिरका जलाशयके तटपर जाना (वन. ३१२ । चित्रसेनका युधिष्ठिरके पास आना, दुर्योधनकी कुचेष्टाको ११-४५)। द्वैतवनमें जलके लिये गये हुए चारों For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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