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युधिष्ठिर
( २६९ )
युधिष्ठिर
देना और इस कार्यको धर्मसंगत बताना । पदका इनके इस निश्चयको लोकवेदविरुद्ध बताना और पुनः कुन्ती आदिके साथ बैठ कर इसपर विचार करनेके लिये प्रेरित करना (आदि. १९४ । २०-३२)। व्यासजीके पूछनेपर द्रौपदीक विवाह के सम्बन्ध में इनका निर्णय (आदि० १९५ । १३-१७)। द्रौपदीके साथ इनका विधिपूर्वक विवाह (आदि० १९७ । ११-१२)। युधिष्ठिरका आधा राज्य पाकर भाइयोसहित खाण्डवप्रस्थमें प्रवेश (आदि. २०६ । २३-२७)। श्रीकृष्णका विश्वकर्माद्वारा युधिष्ठिरके लिये खाण्डवप्रस्थमें एक दिव्य नगरका निर्माण कराना, युधिष्ठिरका उस नगर एवं भवनमें प्रवेश तथा द्वारकाको जाते हुए श्रीकृष्णसे युधिष्ठिरकी पाण्डवोंपर कृपा बनाये रखने और कर्तव्यकी अनुमति देनेके लिये प्रार्थना (आदि. २०६ । २८-५। के बाद दाक्षिणात्य पाठसहित)। भाइयोसहित युधिष्ठिरद्वारा धर्मपूर्वक प्रजाका पालन (आदि० २०७ । ५-८)। इनके पास देवर्षि नारदका शुभागमन ( आदि० २०७ । ९ के बाद दाक्षिणात्य पाठसहित)। राजा युधिष्ठिरद्वारा देवर्षि नारदका सत्कार तथा नारदजीका युधिष्ठिर आदिसे द्रौपदीके विषयमें कुछ नियम बनाने के लिये कहकर उन्हें सुन्द और उपसुन्दकी कथा सुनाना (आदि० २०७।१८ से आदि० २." अध्यायतक)। नियमभङ्गका प्रायश्चित्त करनेके लिये आज्ञा माँगनेवाले धनंजयको युधिष्ठिरका वनमें जानेसे रोकना ( आदि. २१२ । २७-३३)। सुभद्राहरणके लिये इनकी अर्जुनको अनुमति (आदि० २१८ । २५)। सुभद्राके लिये दहेज लेकर आये हुए श्रीकृष्ण-बलराम आदिका युधिष्ठिरसे मिलना तथा युधिष्ठिरद्वारा उन सबका सत्कार (आदि० २२० ॥३८--४३) । अभिमन्युके जन्मपर युधिष्ठिरका ब्राह्मणोंको दस हजार गौओंका दान करना (आदि. २२० । ६९)। द्रौपदीका युधिष्ठिरसे प्रतिविभ्यनामक पुत्र प्राप्त करना ( आदि. ६३ । १२२-१२३, आदि. ९५। ७५, आदि० २२० । ७९)। इनके द्वारा शिबिराजकुमारी देविकाके गर्भसे यौधेयकी उत्पत्ति ( आदि. ९५ । ७६)। युधिष्ठिर और उनके राज्यकी विशेषता (आदि० २२१ । २-१६)। श्रीकृष्ण का मयासुरको धर्मराज युधिष्ठिरके लिये एक दिव्य सभाभवन बनानेके लिये आदेश देना (सभा०११-१३)। श्रीकृष्णके द्वारका जाते समय उनके रथपर दारुकको हटाकर राजा युधिष्ठिरका स्वयं बैठना और घोड़ोंकी बागडोर सँभालना (समा. २ । १६-१७)। मयासुरका धर्मराज युधिष्ठिरको उनके लिये दिव्य सभाभवन तैयार हो जानेकी सूचना देना (सभा० ३ । ३७)। मनिर्मित सभाभवनमें इनका प्रवेश (सभा०।1-6)।नारदद्वारा इनको विविध
मङ्गलमय उपदेश ( सभा० ५ अध्याय )। इनकी दिव्य सभाओके विषयमे जिज्ञासा और नारद द्वारा उनका वर्णन ( सभा० अध्याय ६ से ११ तक)। राजसूय-यश करनेके लिये इनको नारदद्वारा पाण्डुका संदेश (सभा. १२ अध्याय)। इनका राजसूय यज्ञविषयक संकल्प और उसके विषयमें भाइयों, मन्त्रियों, मुनियों और श्रीकृष्णसे सलाह लेना (सभा० १३ अध्याय) । श्रीकृष्णकी युधिष्ठिरको राजसूय यज्ञके लिये सम्मति ( सभा० १४ अध्याय)। राजसूय यज्ञसे पहले जरासंधको मारने के लिये इनको श्रीकृष्णकी सलाह ( सभा० १५ अध्याय)। जरासंधको जीतनेके विषयमें इनके उत्साहहीन होनेपर अर्जुनका इनके प्रति उत्साहपूर्ण उद्गार ( सभा. १६ । ३)। श्रीकृष्णका इनके प्रति अर्जुनकी बातका अनुमोदन करते हुए इनके पूछनेपर उन्हें जरासंधकी उत्पत्तिका प्रसंग सुनाना (सभा. १७। १९) । इनके अनुमोदन करनेपर श्रीकृष्ण भीमसेन और अर्जुनकी मगधयात्रा (सभा० २० अध्याय)। अर्जुनका युधिष्ठिरसे उत्तरदिशाकी विजयके लिये जाने की आज्ञा माँगना और युधिष्ठिरका स्वस्तिवाचन कराकर जानेकी आज्ञा देना (सभा• २५ ।
-७)। अन्य भाइयोंका भी धर्मराजसे सम्मानित होकर दिग्विजयके लिये यात्रा करना और केवल धर्मराजका खाण्डवप्रस्थमें रह जाना ( सभा० २५ । ८-११)। युधिष्ठिरके शासनकी विशेषता, श्रीकृष्णकी आज्ञासे इनका राजसूय-यज्ञकी दीक्षा लेना तथा राजाओं, ब्राह्मणों तथा सगे-सम्बन्धियोंको बुलाने के लिये निमन्त्रण भेजना (सभा० ३३ अध्याय)। इनके यज्ञमें सब देशके राजाओं, कौरवों तथा यादवोंका आगमन और उन सबके भोजन, विश्राम आदिकी सुव्यवस्था (सभा० ३४ अध्याय)। इनके राजसूय-यज्ञका वर्णन (सभा० ३५ अध्याय)। युधिष्ठिरकी यज्ञशालाकी विशेषता और इनके उस धन-वैभव और यशविधिको देखकर देवर्षि नारदको संतोष ( सभा० ३६ । ९.१०)। भीष्मका युधिष्ठिरको राजाओंके लिये अWप्रदान करनेका आदेश तथा भीष्मसे पूछकर युधिष्ठिरका सबसे पहले श्रीकृष्णको सहदेवद्वारा अर्ध्य-प्रदान कराना (सभा० ३६ । २२-३१)। शिशुपालके विरोध करनेपर इनका उसे समझाना (सभा०३८ । १-५)। युधिष्ठिरका भीष्मजीसे भगवान् श्रीकृष्णके सम्पूर्ण चरित्रोंको सुननेकी इच्छा प्रकट करना और भीष्मजीक! भगवान्के अतीत वर्तमान और भावी अवतारोंका वर्णन करना ( सभा. ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७८१-८२६तक)। शिशुपालके द्वारा राजसूय यज्ञमें उपद्रव खड़ा करनेपर इनकी चिन्ता और भीष्मद्वारा इनको आश्वासन (सभा० ४० अध्याय)। युधिधिरका अपने भाइयोंको
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