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युधिष्ठिर
( २६८ )
युधिष्ठिर .
६३)। द्रोणाचार्यके द्वारा इनके लक्ष्यवेधकी परीक्षा ( आदि० १३१ । ७१-७७)। अर्जुनका युधिष्ठिरको द्रपदके साथ युद्ध करनेसे रोकना ( आदि. १३७ । २६) । धृतराष्ट्र द्वारा इनका युवराज-पदपर अभिषेक ( आदि० १३८ । २)। युधिष्ठिरने अपने शील सदाचार तथा मनोयोगपूर्वक प्रजापालनकी प्रवृत्ति के द्वारा अपने पिता महाराज पाण्डुकी कीर्तिको भी ढक दिया ( आदि. १३८ । ३)। प्रजावर्गका युधिष्ठिरको ही राज्य पानेके योग्य बताना (भादि०१४०१२३-२८) भाइयोंसहित वारणावत जानेके लिये उद्यत हो युधिष्ठिरका माननीय कौरवोंसे अनुमति एवं आशीर्वाद माँगना ( आदि. १४२ । ११-१६)। हस्तिनापुरके ब्राह्मणोंका धृतराष्ट्रके विषम बर्तावकी निन्दा करते हुए जहाँ युधिष्ठिर जायें वहीं घर-बार छोड़कर जानेका निश्चय करना, युधिष्ठिरका पुरवासियोंको समझाना और धृतराष्ट्र की ही आज्ञामें रहनेके लिये अनुरोध करना ( आदि० १४४।६१७) । लाक्षागृहमें कौरवोंके कुचक्रसे बचनेके लिये इनको विदुरका संकेत ( आदि. १४४ । १९-२६)। 'मैंने आपकी बात समझ ली, यह युधिष्ठिरका उत्तर तथा कुन्तीके पूछनेपर युधिष्ठिरका विदुरके कथनका उन्हें तात्पर्य बताना ( आदि. १४४ । २७-३३)। वारणावतवासियोंसे घिरे हुए धर्मराज युधिष्ठिर देवमण्डलीके बीच साश्चात् इन्द्र के समान सुशोभित हुए ( आदि० १४५ । ४)। युधिष्ठिरका भीमसेनसे लाक्षागृहको अग्नि- दीपक पदार्थोसे बना हुआ बताकर उसमें सावधानीसे किसी गुप्त स्थानमें रहने और पापी पुरोचन एवं दुर्योधनको चकमा देकर वहाँसे भाग निकलनेके लिये परामर्श देना (आदि० १४५ । १३-३१) । विदुरके भेजे हुए खनकसे युधिष्ठिरकी बातचीत तथा भाइयोसहित अपनेको संकटमुक्त करनेके लिये उससे कोई उपाय करनेका अनुरोध ( आदि. १४६ । १-१५)। जतुगृहको जलानेके लिये इनका अपने भाइयोंको परामर्श (आदि.१४७१२-४)। विदुरके भेजे हुए नाविकका युधिष्ठिरको विदुरका संदेश सुनाना और माता एवं भाइयोसहित इन्हें गङ्गाजीके पार उतारना ( आदि० १४८ अध्याय )। भीष्म, कौरव तथा पुत्रों सहित धृतराष्ट्रका युधिष्ठिर आदिको जलाञ्जलि देना, पुरवासियों तथा भीष्मजीका उनके लिये शोक एवं विलाप करना और विदुरका भीष्मजीसे एकान्तमें युधिष्ठिर आदिके जीवित होनेकी बात बताना (आदि. १४९। १५-१८ के बाद दाक्षिणात्य पाठसहित)। धर्मराज युधिष्ठिरकी प्रेरणासे महाबली भीमसेनका भाइयों और कुन्तीको लेकर शीघ्रताके साथ चलना (भादि.१९ । २३-२६)। भीमसेनका माता
तथा युधिष्ठिर आदिकी दयनीय दशापर विषाद एवं रोष (आदि० १५० । २१-४३)। भीमसेनका हिडिम्बाको अपने ज्येष्ठ भ्राताका परिचय देना ( आदि. १५१ । ३१)। हिडिम्बाके मुखसे भीमसेन और हिडिम्बके युद्ध की बात सुनकर युधिष्ठिरका उछलकर खड़ा हो जाना (आदि. १५३ । १३)। हिडिम्बाको मारनेके लिये उद्यत हुए भीमसेनको इनका निषेध ( आदि. १५४ । २३)। कुन्तीसहित युधिष्ठिरसे हिडिम्बाकी भीमसेनके लिये प्रार्थना, कुन्तीका युधिष्ठिरसे इसके लिये सम्मति माँगना और युधिष्ठिरका कुछ शतोंके साथ हिडिम्बाके लिये भीमसेनको अपने साथ ले जानेका आदेश (आदि. १५४ । ४-14 के बाद दाक्षिणात्य पाठसहित )। भीमसेनको बक नामक राक्षसके पास भेजने के विषयमें युधिष्ठिर और कुन्तीकी बातचीत (आदि०१६: अध्याय)। पाञ्चालदेश चलनेके लिये युधिष्ठिरको मात की प्रेरणा और इनकी स्वीकृति (आदि० १६७ । ३-८)। चित्ररथ गन्धर्वकी प्राणरक्षाके लिये इनका अर्जुनको आदेश (आदि० १६९ । ३६-३७) । पाञ्चालयात्राके समय मार्गमें ब्राह्मणोंसे युधिष्ठिरकी बातचीत (आदि. १८३ अध्याय)। श्रीकृष्णका पाण्डवोंको पहचानकर बलरामजीसे युधिष्ठिर आदिका परिचय देना (आदि. १८६ । ९. १०)। कुन्तीका युधिष्ठिरसे अपने कथनकी सत्यतापूर्वक द्रौपदीकी अधर्मसे रक्षाके लिये उपाय पूछना ( आदि० १९ । ३-५)। इनका माता कुन्तीको आश्वासन देकर अर्जुनसे द्रौपदीके विषयमें वार्तालाप और द्रौपदी हम सभी भाइयोंकी पत्नी होगी, ऐसा निश्चय (आदि०१९०। ६१६)। श्रीकृष्ण और बलभद्रजीका कुम्हारके घर जाकर युधिष्ठिरको प्रणाम करना और युधिष्ठिरका उनसे कुशल पूछकर यह जिज्ञासा करना कि आपने कैसे हमें पहचान लिया (आदि० १९० । १८-२२)। द्रुपदके पुरोहितका युधिष्ठिरसे उन लोगोंका परिचय पूछना और द्रुपदकी कामना बताना, युधिष्ठिरका भीमसेनसे पुरोहितका पूजन कराकर उनसे सामयिक वार्तालाप करना और द्रुपदकी कामनाको सफल बताना (आदि. १९२ अध्याय)। पुरोहितके मुँहसे युधिष्ठिरका कथन सुनकर द्रुपदका पाण्डवोंके शील-स्वभावकी परीक्षा करना तथा उन सबको भोजन कराना (आदि. १९३ अध्याय)। इनके द्वारा अपने सभी भाइयोंका परिचय देकर द्रुपदको आश्वासन (आदि. १९४ । ८-१२)। द्रुपदका युधेष्ठिरसे लाक्षागृहसे सकुशल बचकर निकल आनेका समाचार पूछना और युधिष्ठिर का उन्हें सब कुछ बताना (आदि० १९४ । १५-१७)। द्रौपदीका विवाह किसके साथ हो, द्रुपदके यह पूछनेपर-द्रौपदी हम सभी भाइयोंकी महारानी होगी-ऐसा उन्हें उत्तर
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