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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यातुधानी युधिष्ठिर www - इनका विदेहराज जनकके पूछनेपर विविध ज्ञानविषयक युद्ध (द्रोग. ९२ । २७ -३२)। दुर्योधनके साथ इसका उपदेश देना ( शान्ति० अध्याय ३१० से ३१८ तक)। युद्ध ( द्रोण० १३० । ३०-४३ )। कृपाचार्यद्वारा गन्धर्वराज विश्वावसुके चौबीस प्रश्नोंका इनके द्वारा इसका पराजित होना ( कर्ण०६१। ५५-५६)। इसके समाधान ( शान्ति० ३३८ । २६---८४) । इन्हें सूर्य- द्वारा कर्णके भाई चित्रसेनका वध (कर्ण० ८३ । ३९)। देवसे वेदज्ञानकी प्राप्ति ( शान्ति. ३१८ । ६-१२)। अश्वत्थामाद्वारा इसका वध (सौप्तिक० ८ । ३८)। इनके सम्मुख सरस्वतीका प्राकट्य ( शान्ति. ३१८। यधिधिर-महाराज पाण्डके क्षेत्रज पुत्र (आदि । १४)। इन्हें विश्वामित्रका ब्रह्मवादी पुत्र कहा गया है ११४; आदि० ६३ । ११५-११६ )। धर्मराजके द्वारा (अनु० ४ । ५१ )। कुन्तीके गर्भसे इनकी उत्पत्ति तथा इनके उत्पत्तिकालीन यातुधानी-जा वृषादर्भिद्वारा यज्ञसे प्रकट की हुई एक ग्रहोंकी स्थिति (आदि. १२२ । ६-७)। इनके जन्म कृत्या ( अनु० ९३ । ५.)। तालाबपर गये हुए कालमें आकाशवाणी हुई । उसने बताया कि यह श्रेष्ठ सप्तर्षियोंसे इसका उनके नामका निर्वचन पूछना ( अनु० पुरुष धर्मात्माओंमें अग्रगण्य, पराक्रमी एवं सत्यवादी ९३ । ८.)। शुनःसख-रूपधारी इन्द्रद्वारा इसका वध राजा होगा । पाण्डुका यह प्रथम पुत्र 'युधिष्ठिर' नामसे (अनु. ९३ । १०५)। विख्यात हो तीनों लोक में प्रसिद्धि प्राप्त करेगा । यह यानसन्धिपर्व-उद्योगपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय यशस्वी, तेजस्वी और सदाचारी होगा (आदि० १२२ । ४७ से ७१ तक)। ७-१०)। शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंद्वारा इनका नाम करण-संस्कार ( आदि. १२३ । १९-२०)। वसुदेवके यामुन-(१) एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ५। ५१)। पुरोहित काश्यपके द्वारा इनके उपनयन दि संस्कार (भादि. (२) गङ्गा-यमुनाके मध्यभागमें स्थित एक प्राचीन पर्वत १२३ । ३१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। राजर्षि शुकसे शिक्षा ( अनु. ६८।३)। लेकर इनका तोमर चलानेकी कलामें पारंगत होना यायात-एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ राजा ययातिने यज्ञ किया (आदि० १२३ । ३१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ था। इसकी विशेष महिमाका वर्णन (शल्य. ४१ । ३६९) । पाण्डुकी चितापर आरोहण करनेसे पूर्व माद्रीने ३२-३९)। अपने पुत्रोंके मस्तक सूंघे और युधिष्ठिरका हाथ पकड़कर यायावर-मुनिवृत्तिसे कठोर व्रतका पालन करते हुए सदा कहा-पुत्रो ! अब बड़े भैया युधिष्ठिर ही तुम चारों भाइयोंके इधर-उधर घूमते रहनेवाले गृहस्थ ब्राह्मणोंके एक समूह- पिता हैं' (आदि० १२४।२८ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, विशेषका नाम ! जरत्कारु मुनि यायावर ही थे (आदि. पृष्ठ ३.३) । शतशृङ्गनिवासो मुनि पाण्डवोको हस्तिना१३ । ११, १४)। यायावरोंके धर्मका वर्णन (अनु. पुरमें ले जाकर भीष्मजीसे युधिष्ठिरका परिचय कराते १४२ । दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ५९३२)। हुए बोले- महाराज पाण्डुको साक्षात् धर्मराजद्वारा यह यास्क-एक प्राचीन ऋषि, जिन्होंने अनेक योंमें नारायण- पुत्र प्राप्त हुआ है। इसका नाम युधिष्ठिर है ( भादि. का शिपिविष्ट नामसे गान किया है (शान्ति० ३४२ । १२५ । २२-२३)। दुर्योधनद्वारा जलविहारका प्रस्ताव और युधिष्ठिरका उसे स्वीकार करना (आदि. १२७ । ७२)। ३५-३७) । धर्मात्मा युधिष्ठिरका भीमसेनको न देखयुगन्धर-(१) एक पर्वत या प्रदेश ( यहाँके लोग ऊँटनी कर माता कुन्तीके पास जाकर भीमसेनके विषयमें पूछना और गदहीतकके दूधका दही बना लेते हैं, जो शास्त्र और उनके लिये चिन्ता प्रकट करना । भीमसेनके खो जाने के निषिद्ध है।) (वन. १२९ । ९)। (२) एक समाचारसे कुन्तीका चिन्तित होकर युधिष्ठिरको उनकी पाण्डवपक्षीय योद्धा, जिसने द्रोणाचार्यपर धावा किया खोजके लिये आदेश देना (आदि. १२८ । ४-१२)। और अन्तमें यह द्रोणद्वार। मारा गया (द्रोण. १६ । भीमसेनका नागलोकसे आकर अपने बड़े भाई युधि३०-३१)। ष्ठिरको प्रणाम करना और दुर्योधनकी कुचेष्टाको बताना । यगप-एक देवगन्धर्व, जो अर्जुनके जन्मोत्सव पधारे थे युधिष्ठिरका भीमसेनको सर्वथा चुप रहनेकी सलाह देना ( आदि. १२२ । ५६ ) तथा सतत सावधान हो जाना ( आदि. १२८ । ३०युधामन्यु-पाण्डव-पक्षका एक श्रेष्ठ रथी, जो पाञ्चालदेशका . ३५) । इनका द्रोणाचार्यसे कृपाचार्यकी अनुमति ले राजकुमार था ( उद्योग० १७० । ५)। यह अर्जुनका सदा हस्तिनापुरमें ही रहकर भिक्षा ग्रहण ( जीवननिर्वाह) चक्ररक्षक था ( भीष्म० १५ । १९)। इसके रथके करनेके लिये कहना ( भादि. १३० । २६)। रथपर घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३1३)। कृतवर्मा के साथ बैठकर युद्ध करनेमें इनकी कुशलता ( आदि. १३५ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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