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युधिष्ठिर
( २७० )
युधिष्ठिर
शिशुपालका अन्त्येष्टि-संस्कार करने की आज्ञा देना और कन्तीको अपने ही घरमें सत्कारपर्वक रखनेकी इच्छा उसके पुत्रको चेदिदेशके राज्यपर अभिषिक्त करना प्रकट करना और उन सभी भाइयोंको सान्त्वना एवं (सभा ४५। ३४-३६) । इनके राजसूय यज्ञका । आशीर्वाद प्रदान करना ( सभा० ७८ । ५-२३)। विस्तृत वर्णन और उसकी समाप्ति (सभा० ४५ । ३७- कुन्तीका युधिष्ठिरादि पुत्रोंको वनकी ओर जाते देख आर्त३९ तथा दा. पाठ, पृष्ठ ८४१-८४३) । धर्मात्मा स्वरमे विलाप करना और युधिष्ठिर आदिका उन्हें प्रणाम युधिष्ठिरका अवभृथ स्नान, राजाओंका उन्हें बधाई देकर करके चल देना ( सभा० ७९ । १३-३०)। स्वदेश जाने के लिये अनुमति माँगना तथा युधिष्ठिरका उन युधिष्ठिरका वस्त्रसे मुख ढककर वनको जाना (सभा. सबको अपने राज्यकी सीमातक पहुँचा आनेके लिये ८०।४)। इनका अपने साथ आते हुए पुरवासियोंसे भाइयोंको आदेश देना (सभा० ४५ । ४०-४५)। लौट जानेका अनुरोध ( वन० । ३७)। साथ चलनेश्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे विदा माँगना और इनका गद्गद- वाले ब्राह्मणोंसे लौट जाने के लिये इनका अनुरोध (बन. कण्ठसे उन्हें जानेकी अनुमति देना । उनके जाते समय २।२-४)। इनके द्वारा सूर्यका स्तवन (वन०३। भाइयोसहित युधिष्ठिरका पैदल ही उनके पीछे पीछे जाना, ३६-६९)। सूर्यसे इन्हें अक्षयपात्रकी प्राप्ति (वन. श्रीकृष्णका अपने रथको रोककर युधिष्ठिरको कर्तव्यका ३। ०२)। इनका किर्मीरको अपना परिचय देना उपदेश दे उन्हें लौटाना और स्वयं भी आज्ञा लेकर जाना (वन०११।२६-२७)। श्रीकृष्णके मुखसे इनका (समा०४५।५१-६७)।राजसूय यज्ञके अन्तमें व्यास- शाल्वोपाख्यान-श्रवण (वन अध्याय १५ से २२ तक)। जीकी भविष्यवाणीसे इनको चिन्ता और समत्वपूर्ण वर्ताव इन्हें मार्कण्डेयजीका धर्मविषयक आदेश ( वन. करनेकी प्रतिज्ञा (सभा० १६ अध्याय)। इनके द्वारा २५। ८-१८)। इनके द्वारा क्रोधकी निन्दा और प्रतिदिन दस हजार ब्राह्मणोंको सोनेकी थालियोंमें भोजन क्षमाकी प्रशंसा (वन. २९ अध्याय)। द्रौपदीके कराना (सभा० ४९ । १८)। राजसूय यज्ञमें इनको आक्षेपका समाधान (वन० ३१ अध्याय)। इनका समुद्रद्वारा मधुकी भेंट ( सभा० ४९ । २६)। इनके भीमसेनको समझाते हुए धर्मपर ही डटे रहना ( वन. राजसूय यज्ञमें लाख ब्राह्मणोंके भोजन करनेपर शङ्खध्वनि ३४ अध्याय)। भीमसेनको समझाना (वन० ३६ । (सभा० ४९ । ३.)। युधिष्ठिरको भेटमें मिली हुई २-२०)। इन्हें व्यासजीसे प्रतिस्मृति विद्याकी प्राप्ति वस्तुओंका दुर्योधनद्वारा वर्णन (सभा अध्याय ५१ से (वन. ३६ । ३८)। इनका व्यासजीकी आज्ञासे ५३ तक)। धृतराष्ट्र की प्रेरणासे इनके पास विदुरका आना भाइयों तथा विप्रोसहित द्वैतवनसे काम्यकवनमें जाना
और इनका उनसे वार्तालाप (सभा० ५८।१६)। (वन. ३६ । ४१)। इनके द्वारा अर्जुनको प्रतिस्मृति इनका पुरोहित और सेवकोंके साथ सपरिवार हस्तिनापुरको विद्याका उपदेश (वन०३७ । १६) । इन्द्रका लोमशजाना ( सभा० ५८ । २० के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। को युधिष्ठिरके लिये संदेश देकर उनके पास भेजना और जूएके अनौचित्यके सम्बन्धमें इनका शकुनिके साथ संवाद इनकी रक्षाके लिये उन्हें नियुक्त करना (वन० ४७ । (सभा० ५१ अध्याय)। युधिष्ठिरद्वारा द्यत-क्रीडाका २४-३३)। इनका तेरह वर्षोंतक शान्त रहनेके आरम्भ (सभा० ६. । ६-९)। शकुनिके छलसे लिये भीमसेनको उपदेश (वन० ५२ । ३७-३९)। इनका जूएमें प्रत्येक दाँवपर हारना ( सभा. ६१ बृहदश्वसे वार्तालाप तथा नलोपाख्यान सुननेकी इच्छा अध्याय)।धन, राज्य, भाइयों तथा द्रौपदीसहित इनका प्रकट करना (वन० ५२ । ४२-५९)। बृहदश्वका अपनेको भी हारना (सभा०६५ अध्याय)। शत्रुओंको इन्हें नलोपाख्यान सुनाना और इनको महर्षि बृहदश्वसे मारनेके लिये उद्यत हुए भीमसेनको युधिष्ठिरका शान्त करना अक्षहृदय तथा अश्वविद्याकी प्राप्ति (वन० अध्याय ५३ से (सभा० ७२ अध्याय)। इन्हें धृतराष्ट्रका आश्वासन ७९ तक)। द्रौपदीका युधिष्ठिरसे अर्जुनके लिये चिन्ता एवं सारा धन लौटाकर इन्द्रप्रस्थ जानेकी आशा देना प्रकट करना (वन. ८० । ११ -१५) । युधि परके (सभा० ७३।२-१६)। इनका इन्द्रप्रस्थ लौटना पास देवर्षि नारदका आगमन, इनका नारदजीसे तीर्थयात्रा(सभा० ७३ । १७-१८)। धृतराष्ट्रकी आज्ञासे पुनः फलविषयक प्रश्न, नारदजीद्वारा भीष्म-पुलस्त्य-संवादको
एके लिये इनका मार्गमेंसे ही लौटना ( सभा० ७६।। प्रस्तुत करना और इन्हें ऋषियोंके साथ तीर्थयात्रा करनेके ६)। सबके मना करनेपर भी इनका शकुनिके साथ लिये आदेश देना (वन० अध्याय ८१ से ८५ तक)। पुनः जूआ खेलना और हारना (सभा० ७६ । २१- इनका धौम्यसे पुण्य तपोवन आश्रम एवं नदी आदिके २४)। इनका धृतराष्ट्र आदिसे वनगमनके लिये विदा विषयमें प्रश्न तथा धौम्यद्वारा इनके समक्ष चारों दिशाओंके लेना ( सभा. ७४।१-३) । विदुरका युधिष्ठिरसे तीर्थोंका वर्णन (धन-अध्याय 4 से ९० तक) युधिष्ठिरके
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