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मोक्षधर्मपर्व
( २६२ )
यक्षिणीतीर्थ
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मोक्षधर्मपर्व-शान्तिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय ९३ । ४३-४९) । वीर सात्यकिके द्वारा रणभूमिमें १७४ से ३६५ तक)। -
आहत होकर सैकड़ों म्लेच्छ प्राणोंसे हाथ धो बैठे थे मोदाकी-केसर पर्वतके पास स्थित शाकद्वीपका एक वर्ष
(द्रोण. ११९ । ४३) । म्लेच्छोंने पाण्डवसेनापर (भीष्म. ११।२६)।
अत्यन्त क्रोधी गजराज बढ़ाये थे (कर्ण०२२ । १०)।
म्लेच्छ जातीय अङ्गराज पाण्डुकुमार नकुलद्वारा मारा मोदागिरि-एक देश, जहाँके राजाको भीमसेनने पूर्वदिग्वि
गया (कर्ण २२।१८)। म्लेच्छ सैनिक दुर्योधनकी जयके समय मार गिराया था (समा०३०।३१)।
सहायताके लिये बड़े रोषपूर्वक लड़ रहे थे। अर्जुनके मोदापुर-एक नगर, जहाँके राजाको उत्तर-दिग्विजयके सिवा और किसीके लिये उन्हें जीतना असम्भव था
अवसरपर अर्जुनने परास्त किया था (सभा० २७ । (कर्ण०७३ । १९-२२)। अर्जुनको अश्वमेधीय ११)।
अश्वकी रक्षाके समय बहुत-से म्लेच्छ सैनिकोंका सामना मोहन-एक जनपद, जिसे कर्णने जीता था (वन० २५४ । करना पड़ा (आश्व०७३ । २५)। युधिष्ठिरकी यज्ञ
शालामें ब्राह्मणोंके लेनेके बाद जो धन पड़ा रह गया, मौञ्जायन-एक ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते हैं
उसे म्लेच्छजातिके लोग उठा ले गये ( आश्व०८९। (सभा० ४।१३)। हस्तिनापुर जाते समय मार्गमें २६)। श्रीकृष्णसे इनकी भेंट (उद्योग०८३ । ६४ के बाद)। मौर्वी-तृणविशेष; जिसकी मेखला बनायी जाती है (द्रोण. यकृल्लोमा-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४६) । १७ । २३)।
यक्ष-देवयोनि-विशेष या उपदेवता, जो विराटअण्डसे ब्रह्मा मौसलपर्व-महाभारतका एक प्रधान पर्व ।
आदि देवताओंकी उत्पत्तिके बाद प्रकट हुए बताये जाते
हैं (आदि. १।३५)। शुकदेवजीने यक्षोंको महाम्लेच्छ-एक जाति और जनपद, नन्दिनी गौके फेनसे म्लेच्छ जातिकी सृष्टि हुई। उन म्लेच्छ सैनिकोंने विश्वा
भारतकी कथा सुनायी थी ( आदि. १ । १०८)।
यक्षलोग पुलस्त्य मुनिकी संतानें हैं ( आदि. १६ । मित्रकी सेनाको तितर-बितर कर दिया ( आदि. १७४ ।
७)। कुबेरकी सभामें उपस्थित हो लाखों यक्ष उनकी ३८-४०)। भीमसेनने समुद्रतटवर्ती म्लेच्छों और उनके
उपासना करते हैं (सभा० १०।१८)। ब्रह्माजीकी अधिपतियोंको जीतकर उनसे 'कर' के रूपमें भाँति-भाँतिके
समामें इनकी उपस्थिति बतायी गयी है ( सभा. ११ । रत्न प्राप्त किये थे (सभा० ३० । २५-२७)।
५६)। कुबेरका यक्षोंके राजपदपर अभिषेक किया गया समुद्र के द्वीपोंमें निवास करनेवाले म्लेच्छ जातीय राजाओंको
था (वन०१११।१०.११)। भीमसेनने यक्षों और माद्रीकुमार सहदेवने परास्त किया था ( सभा० ३१ ।
राक्षसोंको मार भगाया था (वन० १६०। ५७-५८)। ६६)। नकुलने भी उनपर विजय पायी थी (सभा०
सुन्द-उपसुन्दने इन्हें पराजित और पीड़ित किया था ३२ । १६) । समुद्रके टापुओंमें रहनेवाले म्लेच्छोंके साथ
(वन० २०८।)। राजा भगदत्त युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें पधारे थे (सभा०
यक्ष-ग्रह-एक यक्षसम्बन्धी ग्रह, जिसके बाधा करनेपर ३४ .)। म्लेच्छोंके स्वामी भगदत्त भेंट लेकर युधिष्ठिरके यहाँ आये थे (सभा० ५१।१४)। जब
__ मनुष्य पागल हो जाता है (वन० २३० । ५३)। प्रलयका पूर्वरूप आरम्भ हो जाता है, उस समय इस प्रक्षयुद्धपर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय १५४ पृथ्वीपर बहुत-से म्लेच्छ राजा राज्य करने लगते हैं (वन से १६४ तक)। १८८ । ३४)। विष्णुयशा कल्कि भूमण्डलमें सर्वत्र यक्षिणी-एक देवी, जिनके प्रसादरूप नैवेधके भक्षणसे ब्रह्मफैले हुए म्लेच्छोंका संहार करेंगे (वन० १९०। ९७)। हत्यासे मुक्ति हो जाती है (वन० ८४ । १०५)। कर्णने अपनी दिग्विजयमें म्लेच्छ राज्योंको जीत लिया यक्षिणीतीर्थ-कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक लोकविख्यात था (वन० २५४ । १९-२१)। एक भारतीय जन- तीर्थ, जहाँ जानेसे और स्नान करनेसे सम्पूर्ण कामनाओंकी पदका नाम म्लेच्छ है (भीष्म० ९ । ५७)। म्लेच्छ पूर्ति होती है । यह कुरुक्षेत्रका विख्यात द्वार है, उसकी जातीय अङ्ग भीमसेनद्वारा युद्धमें मारा गया (द्रोण. परिक्रमा करके तीर्थयात्री मनुष्य एकाग्रचित्त हो पुष्कर२६।६७)। नन्दिनी गौसे उत्पन्न हुए म्लेच्छ अर्जुनपर तीर्थके तुल्य उस तीर्थमें स्नान करके देवताओं और तीखे बार्णोकी वर्षा करते थे; परंतु अर्जुनने दाढ़ीभरे पितरोंकी पूजा करे । इससे वह कृतकृस्य होता और मुखवाले उन सभी म्लेच्छोंका संहार कर डाला (द्रोण. अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है। उत्तम श्रेणीके
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