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यक्ष्मा
( २६३ )
यम
महात्मा जमदग्निनन्दन परशुरामने उस तीर्थका निर्माण (२) एक राजकुमार, जो उपरिचर वसुका पुत्र था, किया है (वन० ८३ । २३-२५)।
वह युद्ध में किसीसे पराजित नहीं होता था (आदि. ६३। यक्ष्मा-एक रोग, जिसे क्षय या तपेदिक कहते हैं । चन्द्रमा- ३३)।
पर कुपित होकर प्रजापति दक्षने उन्हीं के लिये इस रोगकी यम-( १ ) समस्त प्राणियोका नियमन करनेवाले 'सृष्टि की थी (शल्य. ३५। ६१-६२)।
यमराज, जो भगवान् सूर्यके पुत्र तथा सबके शुभाशुभ यशवाह-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ७०)।
कोंके साक्षी हैं ( आदि०७४ । ३०; आदि. ७५ ।
२२)। इन्हें शूद्र-योनिमें जन्म लेनेके लिये माण्डव्य यज्ञसेन-पाञ्चाल-नरेश पृषतके पुत्र (आदि० १३० ।
ऋषिका शाप (आदि. १०७।१४-१६) । द्रौपदीके ४२)। ( देखिये द्रुपद)।
स्वयंवरको देखनेके लिये इनका आगमन ( आदि. यति-(१) नहुषके प्रथम पुत्र, ययातिके बड़े भाई १८६ । ६) । नैमिषारण्यमें इनके द्वारा देवताओंके (आदि० ७५ । ३०)। ये योगका आश्रय लेकर ब्रह्म- यज्ञमें शामित्र-कर्म-सम्पादन (आदि. १९६ ।)। भूत मुनि हो गये थे (आदि.७५ । ३१)। (२) खाण्डवदाहके समय श्रीकृष्ण और अर्जुनसे युद्ध करनेके विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक (अनु० ४ । ५८)। लिये इन्द्रकी ओरसे ये भी कालदण्ड लेकर आये थे यथावास-एक वानप्रस्थी ऋषि, जो वानप्रस्थ-धर्मका पालन (आदि० २२६ । ३२)। ये एक हजार युग बीतनेपर एवं प्रसार करके स्वर्गलोकमें गये थे ( शान्ति. २१४। बिन्दुसरोवरपर यज्ञका अनुष्ठान करते हैं (सभा०३।
१५)। नारदजीके द्वारा इनकी दिव्य सभाका वर्णन यदु-(१) गजा ययातिके प्रथम पुत्र, जो देवयानीके गर्भसे (सभा० ८ अध्याय)। ये ब्रह्माजीकी सभामें विराज
उत्पन्न हुए थे (आदि. ७५ । ३५; आदि० ८३ । मान होते हैं (सभा० ११ ५१)। इनके द्वारा ९)। इनका अपने पिताको युवावस्था देनेसे अस्वीकार अर्जुनको दण्डास्त्रका दान ( वन० ४१ । २५)। करना (आदि. ७५। ४३, आदि० ८४।५)। दमयन्ती-स्वयंवरमें इनके द्वारा राजा नलको वर-प्रदान ययातिका इनकी संतानको राज्याधिकारसे वञ्चित होनेका (बन० ५७ । ३७ )। सावित्रीको अनेक वर देनेके शाप देना (भादि. ८४ । ९)। यदुकी ही संताने पश्चात् इनका सत्यवान्को जीवित करना (वन० २९७ । यादव कहलायी ( आदि. ९५। १०)। भगवान् ११-६०)। इन्द्रने इन्हें पितरोंका राजा बनाया था नारायणने अपने मस्तकसे दो केश निकाले, जिनमेंसे एक (उद्योग. १६ । १४) । पितरोंद्वारा पृथ्वी-दोहनके श्वेत था, एक श्याम । वे दोनों केश यदुकुलकी दो समय ये बछड़ा बने थे (द्रोण ६९ । २६)। त्रिपुरस्त्रियों रोहिणी तथा देवकीके भीतर प्रविष्ट हुए । रोहिणीसे दाहके समय ये भगवान् शिवके बाणके पुखभागमें बलदेवजी प्रकट हुए, जो भगवान् नारायणके श्वेत केश- प्रतिष्ठित हुए थे (द्रोण० २०२ । ७७)। इनके द्वारा रूप थे और देवकीके गर्भसे श्याम केशस्वरूप भगवान् स्कन्दको उन्माथ और प्रमाथ नामक दो पार्षदोंका दान श्रीकृष्णका प्रादुर्भाव हुआ ( आदि. १९६ । ३२- (शल्य. ४५।३०)। महर्षि गौतमके साथ इनका ३३)। यदु देवयानीके पुत्र और शुक्राचार्यके दौहित्र थे, धर्मविषयक संवाद (शान्ति. १२९ अध्याय)। इनके ये बलवान, उत्तम पराक्रमसे सम्पन्न एवं यादववंशके द्वारा जापक ब्राह्मणको वरदान (शान्ति. १९९ । प्रवर्तक थे। इनकी बुद्धि बड़ी मन्द थी। इन्होंने घमंडमें ३०)। इनको नारायणसे शिवसहस्रनामका उपदेश आकर समस्त क्षत्रियोंका अपमान किया था। ये पिताके मिला और इन्होंने नाचिकेतको इसका उपदेश किया आदेशपर नहीं चलते थे । भाइयों और पिताका अपमान (अनु. १७ । १७८-१७९)। इनका अपने दूतोंको करते थे। उन दिनों भूमण्डलमें यदु ही सबसे अधिक शर्मी नामक ब्राह्मणको लानेका आदेश (अनु०६८। बलवान् थे और समस्त राजाओंको वशमें करके हस्तिना- ६-९)। ब्राह्मणको तिल, जल और अन्नके दानकी पुरमें निवास करते थे । इनके पिता ययातिने अत्यन्त महिमा बतलाना ( अनु. ६८ । १६-२२)। कुपित हो इन्हें शाप दे दिया और राज्यसे भी उतार दिया। नाचिकेतके साथ संवादमें गोदानकी महिमा बताना जिन भाइयोंने इनका अनुसरण किया, उनको भी पिताका (अनु०७१।१८-५६) । इनके द्वारा धर्मके रहस्यका शाप प्राप्त हुआ (अयोग. १४९ । ६-११)। इन्हीं वर्णन (अनु. १३० । १४-३३)। इनके लोकका यदुके वंशमै देवमीढ़ नामसे विख्यात एक यादव हो गये वर्णन ( अनु. ११५ । दा. पाठ, पृष्ठ ५९८० से हैं, जिनके पुत्रका नाम शूर था (द्रोण० १४४।६-७)। ५९८५ तक)। ये मुञ्जवान् पर्वतपर शिवजीकी उपासना यदुके पुत्रका नाम क्रोष्टा था ( अनु० १४७ । २८)। करते हैं (आश्व० ८।४-६)। (२) वरुणद्वारा
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