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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मुनि ४४ तक)। इनका दूसरा नाम मौद्गल्य भी था ( वन ० २६१ । २४ ) । ये मौद्गल्य मुनि शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मको देखने गये थे ( शान्ति० ४७ । ९ ) । इन्हें शतद्युम्नसे सुवर्णमय भवनकी प्राप्ति ( शान्ति० २३४ । ३२; अनु० १३७ । २१ )। (२) एक देश, जिसे भगवान् श्रीकृष्णने जीता था ( द्रोण० ११ । १६१८)। ( २५८ ) मुनि - (१) दक्ष प्रजापतिकी कन्या एवं कश्यपकी पत्नी ( आदि० ६५ । १२ ) । इनके देवगन्धर्व जातिवाले भीमसेन आदि सोलह पुत्र थे ( आदि० ६५ । ४२— ४४) । ( २ ) अहर ( अहः ) नामक वसुके एक पुत्र ( आदि० ६६ | २३) । ( ३ ) पूरुवंशी महाराज कुरुके द्वारा वाहिनी के गर्भ से उत्पन्न पाँच पुत्रोंमेंसे एक । शेष चार अश्ववान्, अभिष्यन्तः चैत्ररथ और जनमेजय थे । ( आदि० ९४ । ५० ) । निदेश - कौञ्चपवर्ती अन्धकारक के बादका एक देश ( भीष्म० १२ । २२ ) । मुनिवीर्य - एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३१ )। मुमुचु- दक्षिण दिशाका आश्रय लेकर रहनेवाले एक ऋषि ( अनु० १६५ । ३९ ) । मुर (मुरु ) - ( १ ) एक प्राचीन देश, जिसपर राजा भगदत्तका शासन था ( सभा० १४ । १४ १४ ) । ( २ ) एक महान् असुर, जो प्राग्ज्योतिषपुरके राजा भौमासुरके राज्य की सीमाका पालन करनेवाले चार प्रधान असुरोंमेंसे एक था । इसके एक हजार पुत्र थे; जिनमें दस पुत्र भौमासुरके अन्तःपुरके रक्षक थे । इस असुरने तपस्या करके इच्छानुसार वरदान प्राप्त किया था । इसने भौमासुरके राज्यकी सीमापर छः हजार पाश लगा रखे थे, जो मौरवपाशके नामसे विख्यात थे । उनके किनारे के भागों में छुरे लगे हुए थे । भगवान् श्रीकृष्ण ने उन पाशोंको सुदर्शनचक्रद्वारा काटकर मुरुको उसके वंशजोंसहित मार डाला ( सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ ८०५-८०७ ) । मुर्मुरा- एक नदी, जो अग्निकी उत्पत्तिका स्थान बतायी गयी है ( वन० २२२ । २५ ) । मुष्टिक - एक असुर, जो कंसका भृत्य था । बलरामजी - द्वारा इसका वध ( सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ ८०१ ) । एक मुसल - विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक ( अनु० ४ । ५३)। मूक - ( १ ) तक्षक कुलमें उत्पन्न नाग, जो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृगतपा जनमेजयके सर्पसत्र में जल मरा ( आदि० ५७ । ९ ) । (२) एक दानव, जो सूअरका रूप धारण करके अर्जुनको मारने की घात में लगा था ( वन० ३८ । ७ ) । अर्जुनद्वारा इसका वध ( वन० ३९ । १६ ) । मूल - ( सत्ताईस नक्षत्रोंमेंसे एक ) जो मूल नक्षत्रमें एकाग्रचित्त हो ब्राह्मणको मूल-फलका दान करता है, उसके पितर तृप्त होते हैं और वह अभीष्ट गति पाता है ( अनु० ६४ / २४ ) | मूल नक्षत्रमें श्राद्ध करनेसे आरोग्यकी प्राप्ति होती है ( अनु० ८९ । १० ) । मार्गशीर्षमासके शुक्ल पक्ष की प्रतिपदाको मूल नक्षत्रसे चन्द्रमाका योग होनेपर चन्द्रसम्बन्धी व्रत आरम्भ करे । देवतासहित मूल नक्षत्र के द्वारा उनके दोनों चरणोंकी भावना करे ( अनु० ११० । ३ ) । मूषक - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५६, ६३ ) । मूषकाद ( मूषिकाद ) - कश्यपद्वारा कद्रू के गर्भ से उत्पन्न एक नाग ( आदि० ३५ । १२ ) । यह वरुणकी सभा में रहकर उनकी उपासना करता है ( समा० ९ । १० ) । नारदजीका मातलिको इसका परिचय देना ( उद्योग ० १०३ । १४)। मृगधूम - कुरुक्षेत्र की सीमाके अन्तर्गत एक पुण्य तीर्थ, जहाँ महादेवजीकी पूजा करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है ( वन० ८३ | १०१ ) | मृगमन्दा - क्रोधवशाकी क्रोधजनित कन्याओंमेंसे एक । इसीसे रीछों की उत्पत्ति हुई ( आदि० ६६ । ६०६२) । मृगव्याध - ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक । ब्रह्माजीके आत्मज, स्थाणुके पुत्र ( आदि० ६६ । २ ) । मृगशिरा - ( सत्ताईस नक्षत्रोंमेंसे एक ) मृगशिरा नक्षत्रमें दूध देनेवाली गौका बछड़े सहित दान करके दाता मृत्युके पश्चात् इस लोकसे सर्वोत्तम स्वर्गलोकमें जाते हैं ( अनु० ६४ । ७ ) । इस नक्षत्रमें श्राद्ध करनेसे तेजकी प्राप्ति होती है (अनु० ८९ । ३ ) । मार्गशीर्षमासमें चन्द्रव्रतमें मृगशिराको चन्द्रमाके नेत्र समझकर पूजा करनेका विधान है (अनु० ११० । ८ ) । मृद्भवपर्व - पर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय २५८ ) । मृगी- क्रोधवशा की क्रोधजनित कन्याओंमेंसे एक । संसारके समस्त मृग इसीकी संतानें हैं ( आदि० ६६ । ६०६२)। For Private And Personal Use Only मृगतपा - दानवोंके सुविख्यात दस कुर्लेमेंसे एक ( आदि० ६५ । २८-२९ ) ।
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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