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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्री ( २५७ ) मुद्गल (मौद्गल्य) मिश्री-एक नाग, जो बलरामजीके परमधामगमनके समय मुञ्जकेश-एक क्षत्रिय गजा, जो निचन्द्र नामक असुरके उनके स्वागतार्थ प्रभासक्षेत्रमें आया था ( मौसल. ४।। अंशसे उत्पन्न हुआ था (आदि. ६७ । २५-२६)। १५-१६)। पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें रण-निमन्त्रण भेजनेका निश्चय मुकुट-एक क्षत्रिय वंश, जिसमें विगाहन' नामक कुलाङ्गार किया गया था ( उद्योग० ४ । १४)। नरेश हुआ था (उद्योग. ७४ । १६)। मुअपृष्ठ-हिमालयके शिखरपर एक रुद्रसेवित स्थान मुकुटा-स्कन्दकी अनुचरी एकमातृका (शल्य.४६।२३)। (शान्ति. १२२ । ४)। मुखकर्णी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६। मुञ्जवट-(१) कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक स्थाणुतीर्थ, २९)। जहाँ एक रात रहनेसे मानव गणपति-पद प्राप्त करता है मखमण्डिका-शिशुग्रहस्वरूपा दितिका नाम ( वन (वन० ८३ | २२)। (२) गङ्गातटवर्ती महादेवजी२३० । ३.)। का एक परम उत्तम तीर्थ, जहाँ महादेवजीको प्रणाम मुखर-एक कश्यपवंशी नाग ( उद्योग० १०३ । १६)। करके उनकी परिक्रमा करनेसे गणपति-पदकी प्राप्ति होती है। वहाँ गङ्गाजीमें स्नान करनेसे समस्त पापोंसे छुटकारा मुखसेचक-धृतराष्ट्रकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्पसत्रमें दग्ध हो गया था (आदि० ५७ । १६)। मिल जाता है (वन० ८५ । ६७-६८)। - मावान-हिमालयके पृष्ठभागमें स्थित एक पर्वत, जहाँ मचुकुन्द-एक प्राचीन राजर्षि, जो यमकी सभामें रहकर मुजवान्-हमालय सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं (सभा० ८।२१)। उमावलभ भगवान् शङ्कर सदा तपस्या किया करते हैं । इसका विशेष वर्णन (आश्व०८।१-१२)। पूर्वकालमें धनाध्यक्ष कुबेर राजर्षि मुचुकुन्दपर प्रसन्न । होकर उन्हें सारी पृथ्वी दे रहे थे; परंतु इन्होंने उसे ग्रहण मुजावट-हिमालयके शिखरका एक स्थान, जहाँ परशुरामनहीं किया। वे बोले--मेरी इच्छा है कि मैं अपने बाह- जीने ऋषियोको अपनी जटा बाधनका आदेश दिया था बलसे उपार्जित राज्यका उपभोग करूँ।' इससे कुबेर बड़े (शान्ति० १२२ । ३)। प्रसन्न और विस्मित हुए । तदनन्तर क्षत्रिय-धर्ममें तत्पर मुण्ड-कौरवदलके मुण्डदेशीय योद्धा ( भीष्म० ५६ । रहनेवाले मुचुकुन्दने अपने बाहुबलसे प्राप्त की हुई इस ९)। पृथ्वीका न्यायपूर्वक शासन किया (उद्योग. १३२ । ९- मुण्डवेदाङ्ग-धृतराष्ट्रकुलमें उत्पन्न हुआ एक नाग, जो ११)। एक बार मुचुकुन्दने अपने बलको जाननेके जनमेजयके सर्पसत्रमें दग्ध हो गया ( आदि. ५७ । लिये अलकापति कुबेरपर आक्रमण किया । कुबेरके भेजे १७)। हुए राक्षसोंने इनकी सेनाको कुचलना आरम्भ किया । मुण्डी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६ । १७)। तब इन्होंने पुरोहितका ध्यान आकृष्ट किया । वसिष्ठजीने मुदावर्त-हैहयवंशमें उत्पन्न एक कुलाङ्गार राजा ( उद्योग. तपोबलसे राक्षसोंका संहार कर डाला। इसपर कुबेरके ७४ | १३)। साथ इनका वाद-विवाद हुआ । कुबेरने इन्हें राज्य देना । चाहा, पर इन्होंने नहीं लिया। अपने बाहबलसे उपार्जित मुदिता-सह नामक अग्निकी भार्या (वन.२२२। राज्यका ही उपभोग किया (शान्ति०७४ । ४- मुद्गर-तक्षककुलमें उत्पन्न हुआ एक नाग, जो जनमेजयके २०)। परशुरामजीसे शरणागत-रक्षाके विषयमें इनका सर्पसत्रमै दग्ध हो गया (आदि० ५७ । १०)। न्ति. १४३ । ७)। राजा काम्बोजसे इन्हें मुद्रपर्णक-एक कश्यपवंशी नाग ( उद्योग. १०३ । खगकी प्राप्ति हुई और इन्होंने मरुत्तको दिया (शान्ति०१३)। १६६ । ७.) । गोदान-महिमाके विषयमें इनका नाम- मुद्रपिण्डक-कश्यपद्वारा कद्रूके गर्भसे उत्पन्न एक नाग निर्देश (अनु० ७६ । २५)। इनके द्वारा मांस-भक्षण- (आदि.३५।१)। निषेध (अनु. ११५। ६१) । सायं-प्रातःस्मरणीय मुद्गल (मौद्गल्य )-(१) वेद-विद्याके पारङ्गत एक मद राजाओंमें भी इनका नाम आया है (अनु० १६५ । ब्राह्मण मुनि, जो जनमेजयके सर्पसत्रमें सदस्य बनाये ५४-६०)। गये थे (आदि. ५३ । ९)। ये कुरुक्षेत्रमें शिलोचमुख-एक प्राचीन ऋषि, जो युधिष्ठिरका विशेष आदर , वृत्तिसे जीवन-निर्वाह करते थे (वन० २६० ।।)। करते थे (वन २६ । २१)। इनके द्वारा दुर्वासाका स्वागत ( बन. २६०।१४मुअकेतु-एक नरेश, जो युधिष्ठिरकी सभामें बैठते थे २२)। इनका देवदूतोंसे संवाद तथा स्वर्गमें जानेसे (समा० ४।२१)। इनकार करना (वन० २६० । ३२ से वन० २६१। म. ना. ३३-- For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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