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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्तिकावती ( २५९ ) मेधावी मृत्तिकावती-एक जनपद, जिसे कर्णने जीता था ( वन० कर सदा उसके समक्ष नतमस्तक रहता था ( सभा• २५४ । १०)। १४। १३)। मृत्यु-(१)(पुरुष) अधर्मकी स्त्री नितिके गर्भसे मेघवाहिनी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । उत्पन्न तीन पुत्रोंमेंसे एक । यह सब प्राणियों का नाशक १.)। है। इसके पत्नी या पुत्र कोई नहीं है, क्योंकि यह मेघवेग-कौरवपक्षका एक वीर, जो अभिमन्युद्वारा मारा सबका अन्तक है (आदि. ६६ । ५४-५५)। जापक गया था (द्रोण. ४८ । १५-१६)। ब्राह्मणके पास इसका आना (शान्ति. १९९३२)। शासन्धि-मगध देशका राजकुमार, जो सहदेवका पुत्र था अर्जुनक नामक व्याध और सर्पके साथ इसका संवाद और उन्हींके साथ द्रौपदी-स्वयंवरमें गया था ( आदि. ( अनु०१ । ५०-६८)। सुदर्शनद्वारा मृत्युपर १८५।८)। अश्वमेधीय अश्वकी रक्षाके प्रसङ्गमें अर्जुनके विजयका वर्णन ( अनु० २ । ४८-६७)। (२) साथ इसका युद्ध और पराजय (आश्व० ८२ अध्याय)। (स्त्री) ब्रह्मानीके शरीरसे नारीरूपमें इसकी उत्पत्ति (द्रोण० ५३ । १७.१८ शान्ति० २५७ । १५)। मेघखना-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६।८)। ब्रह्माद्वारा संहारकार्यके सौंपे जानेपर इसका रोदन (द्रोण मेद-ऐरावतकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्प५३ । २२-२३, शान्ति. २५७ । २१)। इसकी घोर सत्रमें जलकर भस्म हो गया (आदि. ५७।११)। तपस्या (द्रोण. ५४ । १७-२६ शान्ति० २५८ । १५- मेदिनी-पृथ्वीका एक नाम । भगवान् विष्णुदारा मधु और २४) । ब्रह्मासे वरकी याचना (द्रोण. ५४ । ३०- कैटभ दोनों दैत्योंके मारे जानेपर उनकी लाशें जलमें ३२)। इसका संहारकार्य स्वीकार करना (द्रोण. ५४ । डूबकर एक हो गयीं । जलकी लहरोंसे मथित होकर उन १४ शान्ति० २५८ । ३७)। इसकी प्रबलताका वर्णन दोनों दैत्योंने मेद छोड़ा, उससे आच्छादित होकर वहाँका (शान्ति० ३१९ अध्याय)। जल अदृश्य हो गया । उमीपर भगवान् नारायणने नाना मेकल-एक भारतीय जनपद और वहाँके निवासी जाति- प्रकारके जीवोंकी सृष्टि की। उन दैत्योंके मेदसे सारी वसुधा विशेष (भीष्म० ९ । ४१)।इस देशके योद्धा भीष्मकी आच्छादित हो गयी। इसलिये मेदिनीके नामसे प्रसिद्ध हुई रक्षामें तत्पर थे (भीष्म ५१ । १३-१४)। कोसल- (सभा० ३८ । २९ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ ७८४)। नरेश बृहलके साथ मेकल आदि देशोंके सैनिक थे मेधा-दक्ष प्रजापतिकी पुत्री एवं धर्मराजकी पत्नी-(आदि. (भीष्म ८७।१)। कर्णने इस देशको जीता या ६६ । १४)। (द्रोण०४।८) । मेकल पहले क्षत्रिय था परतु मेधातिथि-H) एक प्राचीन महर्षि, जो इन्द्रकी सभामै ब्राह्मणोंके साथ ईर्ष्या करनेसे नीच हो गये ( अनु० विराजमान होते हैं (सभा० ७ । १७)। इनके पुत्र ३५ । १७-१८)। कण्वमुनि पूर्वदिशाके ऋषि हैं (शान्ति० २०८।२७)। मेघकर्णा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ ।। इन्होंने वानप्रस्थका पालन करके स्वर्ग प्राप्त किया है (शान्ति० २४४ । १७)। ये उपरिचर वसुके यशमें मेघनाद-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६२ )। सदस्य बने थे (शान्ति० ३३६ । ७)। ये दिव्य महर्षि माने गये हैं। प्रयाणके समय भीष्मजीको देखनेके लिये मेघपुष्प-भगवान् श्रीकृष्णके रथका एक दिव्य अश्व (विराट. १५।२१ उद्योग.८३ । १९; द्रोण.७९ । पधारे थे और युधिष्ठिरद्वारा पूजित हुए थे ( अनु० २६ । ३८ द्रोण. १४७॥ १७ सौप्तिक० १३ । ३, शान्ति. ३-१)(२) एक नदी, जो अग्निकी उत्पत्तिका स्थान बतायी गयी है (वन० २२२ । २३)। ५३ । ५.)। मेधाविक-एक तीर्थ, जहाँ देवताओं और पितरोंका तर्पण मेघमाला-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. ४६ । करनेसे मनुष्य अश्वमेध यशका फल पाता तथा मेधा प्राप्त कर लेता है (वन०४५। ५५)। मेघमाली-मेरुद्वारा स्कन्दको दिये गये दोपार्षदोंमेंसे एक। मेधावी-(१) बालधि मुनिका पुत्र, जिसका जन्म पिताकी दूसरेका नाम काञ्चन था (शल्य०४५।४७)। तपस्यासे हुआ था। पर्वत इसकी आयुके निमित्त थे । मेघवासा-एक दैत्य, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी मेधायुक्त होनेके कारण इसका नाम मेधावी था। यह बड़ा उपासना करता है (सभा०९।१४)। उद्दण्ड था (वन० १३५ । ३५-४९)। धनुषाक्ष मेघवाहन-एक राजा, जो जरासंधको मस्तककी मणि मान- मुनिके द्वारा इसकी आयुके निमित्तभूत पर्वतोंको भैसौसे For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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