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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्जुन ( २२ ) अर्जुन सुशर्माके छः भाइयों ( सत्यसेन, चन्द्रदेव, मित्रदेव. अश्वत्थामाके साथ युद्ध ( शल्य० १४ अमें )। श्रतंजय, सौश्रति और मित्रवर्मा) का वध(कर्ण०२७ । १२- श्रीकृष्णके समक्ष दुर्योधनके दुराग्रहकी निन्दा (शल्य. २५)। कौरवसेनाकासंहार ( कर्ण०३० । १५-३६)। २४ । १६-५०)। कौरवोंकी रथसेनाका संहार ( शल्य. युधिष्ठिरके आदेशसे कर्णपर आक्रमण ( कर्ण० ४६ ।३७)। २५। १-१४)। दुर्योधनको मारनेके विषयमें श्रीकृष्णसे इनके द्वारा संशप्तकों का संहार (कर्ण० ४७ अ०में)। वार्तालाप ( शल्य० २७ । १३-२७) । सत्यकर्मा, सुशर्माके साथ युद्ध और दस हजार संशप्तकोंका वध सत्येषु और पैंतालीस पुत्रोंसहित सुशर्माका वध ( शल्य. (कर्ण० ५३ अमें)। संशतकोंका संहार और सुदक्षिणके २७ । ३८-४८)। श्रीकृष्णसे भीमसेन और दुर्योधनके भाईका वध (कर्ण० ५६।१००-११७)। अश्वत्थामाके साथ बलाबलके विषयमें पूछना (शल्य. ५८ ॥२)। भीमसेनको युद्ध और उसे परास्त करना (कर्ण० ५६ । १२१-१४२)। अपनी जाँघ ठोंककर संकेत करना (शल्य० ५८ । २१)। श्रीकृष्णसे युधिष्ठिरको देखनेके लिये उनके पास चलनेका युद्ध के पश्चात् इनके रथका दग्ध होना (शल्य० ६२ । आग्रह ( कर्ण० ५८ ॥३-७)। धृष्टद्युम्नको अश्वत्थामा- १३ ) । श्रीकृष्णसे अपने रथके दग्ध होनेका कारण के चंगुलसे छुड़ाना और अश्वत्थामाको पराजित करना पूछना (शल्य० ६२ । १६-१७) । अश्वत्थामासे भीमसेन(कर्ण० ५९ । ५४-६१)। इनके द्वारा अश्वत्थामाकी __ की रक्षाके लिये श्रीकृष्णके साथ जाना ( सौप्तिक. पराजय ( कर्ण. ६४ । ३१-३२ )। श्रीकृष्णके साथ १३ । ६)। अश्वत्थामाका अस्त्र-शान्त करनेके लिये युधिष्ठिरके पास जाकर उनके चरणोंमें प्रणाम करना ब्रह्मास्त्रका प्रयोग ( शल्य० १४ । ५-६) । व्यासजीको (कर्ण०६५। १७)। अबतक कर्णके न मारे जानेका देखकर अपना अस्त्र लौटा लेना (सौप्तिक० १५। २-४) कारण युधिष्ठिरसे बतलाते हुए उसके वधकी प्रतिज्ञा गान्धारीके शापके भयसे श्रीकृष्णके पीछे छिपना (स्त्री. करना (कर्ण०६७ अमें ) । युधिष्ठिरका वध करने- १५।३१)। धनकी महत्ता दिखाते हुए राजधर्म पालनके को उद्यत होना (कर्ण० ६९ । ९-१५)। श्रीकृष्णसे । लिये युधिष्ठिरको समझाना ( शान्ति. ८ अ.में) अपनी प्रतिज्ञा पूर्तिका उपाय पूछना ( कर्ण० ६९ । ६७-- युधिष्ठिरको समझाते हुए गृहस्थधर्मके पालनपर जोर देना ७५)। 'तू' शब्द कहकर युधिष्ठिरको कटुवचन सुनाना ( शान्ति० ११ अमें) । युधिष्ठिरसे इनके द्वारा (कर्ण०७० । २-२१)। युधिष्ठिरका अपमान करनेके राधधर्मकी महत्ताका वर्णन करना (शान्ति० १५ कारण आत्महत्याके लिये तलवार खींचना ( कर्ण० अ०में)। राजा जनक और उनकी रानीका दृष्टान्त ७०।२३)। युधिष्ठिरसे क्षमायाचना(कर्ण०७०।३८-३९)। देकर युधिष्ठिरको संन्यास लेनेसे रोकना (शान्ति० १८ युधिष्ठिरसे कर्ण वधकी प्रतिज्ञा करना (कर्ण० ७०। अमें ) । युधिष्ठिरसे क्षत्रिय-धर्मकी प्रशंसा करना ४०-४१ )। युधिष्ठिरके चरणोंमें प्रणिपात और कर्ण- (शान्ति० २२ अ०में)। युधिष्ठिरका शोक दूर करनेके वधकी प्रतिज्ञा करना ( कर्ण०७१ । ३५-३०)। कर्ण- लिये श्रीकृष्णसे प्रार्थना करना (शान्ति० २९ । २-३)। वधके लिये मार्गमें जाते समय चिन्तामग्न होना (कर्ण अर्जुनको युधिष्ठिरका शत्रुओं तथा दुष्टोंके दमनका कार्य ७२ । १६.१७ )। श्रीकृष्णसे इनके वीरोचित उद्गार । सौंपना (शान्ति० ४१ । १३)। युधिष्ठिरका इन्हें रहने के (कर्ण० ७४ अ०में ) । इनके द्वारा कौरवसेनाका लिये दुःसासनका भवन देना (शान्ति० ४४ । ८-९)। भीषण संहार (कणे. ७७ । ५-२०)। श्रीकृष्णसे कर्ण- युधिष्ठिरके पूछनेपर त्रिवर्गमें अर्थकी प्रधानता बताना के पास चलनेके लिये कहना ( कर्ण० ७९ । ७-१२)। ( शान्ति० १६७। ११-२०)। श्रीकृष्णसे उनके नामोंकी इनके द्वारा कौरवसेनाका विध्वंस (कर्ण० ७९१७१-९० व्युत्पत्ति पूछना ( शान्ति० ३४१ । ५-७)। श्रीकृष्णसे से ८० अ० तक; ८१ । ५-२०) । कौरवोंको पुनः गीताका ज्ञान पूछना (आश्व०१६ । ५-७)। ललकारते हुए वृषसेनका वध ( कर्ण० ८५ । ३७)। श्रीकृष्णसे परब्रह्मके स्वरूपके विषयमें प्रश्न करना युद्धके लिये इनका कर्णके सम्मुख उपस्थित होना ( कर्ण (आश्व० ३५ । १)। श्रीकृष्णके प्रति इनके प्रशंसा८६ । २३)। कर्णवधके लिये श्रीकृष्णसे वार्तालाप सूचक वचन ( आश्व० ५२ । ६-२४) । श्रीकृष्णकी ० ८७ । १०५-११७ )। कर्णके साथ इनका द्वारका-यात्राके लिये युधिष्ठिरसे आज्ञा माँगना ( आश्व० द्वैरथ युद्ध (कर्ण० ८९ अ०से ९० अ० तक)। इनके ५२। ४२-४३)। व्यासजीके समझानेसे पुत्रशोकसे निवृत्त द्वारा राजकुमार सभापतिका वध (कर्ण० ८९ । ६४)। होकर संतोष-लाभ करना (आश्व० ६२। १८)। धन कर्णके सर्पमुख बाणसे इनके किरीटका गिरना ( कर्ण० लानेके विषयमें पाँचों भाइयोंमें बातचीत; और भाइयों के ९०। ३३) । इनके द्वारा कर्णका वध (कर्ण० ९१।५०)। साथ जाकर इनका हिमालयसे मरुत्तका धन ले आना रथसेनाका विध्वंस (कर्ण. ९३ । ४२-४६ )। ( आश्व० ६३ अ०से ६५ अ० तक)। अर्जुनकी For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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