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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्जुन ( २१ ) अर्जुन (द्रोण० २९ । ४७-५०)। वृपक और अचलका वध (द्रोण ३०।११ ) । इनका शकुनिकी मायाका नाश करते हुए उसे परास्त करना ( द्रोण० ३० । १५-२८) । कर्ण के साथ युद्ध (होण०३२।५२-६२)। इनके द्वारा कर्णके तीन भाइयोंका वध (द्रोण०३२। ६०-६१)। अभिमन्युकी मृत्युपर विलाप (द्रोण० ७२ । १९-६५)। भाइयोंपर क्रोध प्रकट करना (द्रोण ० ७२ । ७६-८३) । युधिष्ठिरके मुखसे अभिमन्युवधका वृत्तान्त सुनकर मूर्छित होना (द्रोण ०७३ । १६-१७)। जयद्रथवधकी प्रतिज्ञा करना (द्रोण०७३।२०-४९)। श्रीकृष्णसे जयद्रथवधके विषयमें वीरोचित वचन कहना (द्रोण०७६ अ. में)। श्रीकृष्णसे पुत्रवधू उत्तरासहित सुभद्राको समझानेके लिये कहना (द्रोण०७७१९-१०)। इनके द्वारा शहरजी- का निशोथ पूजन (द्रोण०७९॥ १-४)। (अर्जुनका स्वप्न-) खप्नमें श्रीकृष्णका आना और उनकी सम्मतिसे उनके साथ शिवजीके पास जाकर प्रणाम करना (द्रोण०८०।२-४९)। इनके द्वारा भगवान् शिवकी स्तुति ( द्रोण ८०। ५५६४)। भगवान् शिवसे दिव्यास्त्रकी याचना (द्रोण००१३) पाशुपतास्त्र की प्राप्ति और श्रीकृष्णसहित शिविरको लौटना (स्वप्नकी समाप्ति) (द्रोण० ८१।२१-२४) । पाण्डवसभाम अपना खप्न सुनाना(द्रोण०८४।६) श्रीकृष्ण और सालकिके साथ रणयात्रा (द्रोण०८४ । २१)। सात्यकिको युधिष्ठिरको रक्षाकाभार सौंपना (द्रोण०८४।२७-३४)। युद्धके आरम्भमें इनके द्वारा शङ्खनाद (द्रोण० ८८ । २०)। दुर्मर्पणकी गजसेनाका संहार (दंण० ८९ अ० में)। इनका दुःशासन के साथ युद्ध और उसका पलायन (द्रोण० ९० अमें )। इनके द्वारा द्रोणाचार्यका सम्मान (द्रोण० ९१।३-६)। द्रोणाचार्य के साथ युद्ध और उन्हें छोड़कर आगे बढ़ना (द्रोण० ९१।११-३२, ९२ । ६-१४)। कृतवर्मा के साथ युद्ध (दोण ० ९२ । १६-२६)। श्रुतायुधके साथ युद्ध (द्रोण० ९२ । ३५-४३)। काम्बोजराज सुदक्षिणके साथ युद्ध और उसका वध (द्रोण० ९२ । ६१७१)। श्रुतायु और अच्युतायुके साथ इनका युद्ध और उन दोनोंका वध (द्रोण.९३।७-२४)। इनके द्वारा नियुतायु और दीर्घायुका वध (द्रोण०९३ । २९) । म्लेच्छसेनाका संहार (द्रोण० ९३ । ३१-५९)। श्रुतायु और अम्बष्ठके साथ युद्ध और अम्बष्ठका वध (द्रोण०९३॥ ६०६९) । विन्द-अनुविन्दका वध (द्रोण० ९९ । २५.२९)। संग्रामक्षेत्रमें इनका सरोवर प्रकट करना(द्रोण०९९ ॥५९)। रणक्षेत्रमें बाणमय ग्रहका निर्माण (द्रोण० ९९ । ६२)। श्रीकृष्णके प्रोत्साहन देनेपर दुर्योधनको मारनेके लिये उद्यत होना (द्रोण. १०२।१९-२१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ) दुर्योधनके साथ युद्ध और उसे परास्त करना (द्रोण० १०३। २१-३२ ) । इनका कौरव महारथियों के साथ घोर युद्ध (द्रोण० १०४ अ०में )। इनके ध्वजका वर्णन (द्रोण०१०५। ८-९) । इनका नौ महारथियोंके साथ युद्ध (द्रोण० १०५। ३३-३८)। कर्ण और अश्वत्थामाको खदेड़ना(द्रोण०१३९ । ११२-१२१)। सात्यकिको देखकर अर्जुनकी चिन्ता (द्रोण०१४१।२६-३७)। श्रीकृष्णकी प्रेरणासे भूरेश्रवाकी दाहिनी भुजा काटना (द्रोण० १४२ । ७२) । भूरिश्रवाको उत्तर देना (द्रोण. १४३ ॥१६-३२)। इनका सात कौरव महारथियों के साथ युद्ध (द्रोण०१४५ अ०में)। इनके द्वारा कर्णकी पराजय(द्रोण० १४५। ८३)। कौरवसेनाका भीषण संहार (द्रोण १४६ अ० में )। इनके द्वारा जयद्रथका सिर काटकर उसे बाणद्वारा उसके पिता वृद्धक्षत्रकी गोदमें डालना (द्रोण० १४६। १२२-१२७) । कृपाचार्य और अश्वत्थामाको युद्ध में पराजित करना(द्रोण०१४७१९")। कृपाचार्यके मूञ्छित होनेपर विलाप करना (द्रोण० १३७।१३-२७) । भीमसेनको कटुवचन सुनानेके कारण कर्णको फटकारना (द्रोण०१४८ । ८-२२)। कर्णपुत्र वृषसेनके वधकी प्रतिज्ञा करना (द्रोण०१४८ । १९-२०)। कर्णके साथ युद्ध करके उसे पराजित करना(द्रोण०१५९।६२६४) । द्रोणाचार्य के साथ युद्ध और कौरवसेनाको खदेड़ना (द्रोण० १६१ अ०में)। इनके द्वारा राक्षसराज अलम्बुषकी पराजय(द्रोण०१६७ । ४७)। शकुनि और उलूककी पराजय (द्रोण० १७१। ३८-४०) । कर्णके पराक्रमसे भयभीत हुए युधिष्ठिरसे प्रेरित हो इनका श्रीकृष्णसे अपना कर्तव्य पूछना (दोण. १७३ । २९-३४)। घटोत्कचको कर्णके साथ युद्ध करने के लिये आदेश देना(द्रोण० १७३। ६०-६२)। घटोत्कचवधसे प्रसन्न हुए श्रीकृष्णसे उनकी प्रसन्नताका कारण पूछना (द्रोण० १८०। ६-१०)। जरासंध आदिके वधके विषयमें श्रीकृष्णसे प्रश्न करना (द्रोण० १८१।१)। उभयपक्षके सैनिकोंको सो जाने के लिये आदेश देना (होण. १८४ । २६-२८)। द्रोणाचार्यके साथ घोर युद्ध करना(द्रोण०१८८१२४-५३)। श्रीकृष्णसे सात्यकिकी प्रशंसा करना (द्रोण०१९१ । ४८-५३)। अश्वत्थामाके क्रोध और गुरुहत्याके भीषण परिणामका वर्णन करना (द्रोण०१९६ । २६-५३)। नारायणास्त्र, गौ और ब्राह्मणके सामने गाण्डीव रख देनेकी बात कहना (द्रोण० १९९ । ५३)। व्यासजीसे अपने आगे-आगे चलनेवाले त्रिशूलधारी पुरुषके विषयमें प्रश्न करना (द्रोण० २०२ | ४-८)। युधिष्ठिरके आदेशसे अर्धचन्द्रव्यूह बनाकर कर्णके साथ युद्ध करनेके लिये प्रस्थान (कर्ण० ११ । २८)। अश्वत्थामाके साथ घोर युद्ध और उसे परास्त करना (कर्ण०१६ असे १७ अ० तक)। इनके द्वारा हाथीसहित दण्डधारका वध (कर्ण० १८।१३)। इनके द्वारा हाथीसहित दण्डका वध (कर्ण० १८ । १९)। संशप्तकोंका भीषण संहार (कर्ण० १९ । २-२६) । For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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