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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३ ) अर्धकीलतीर्थ अश्वरक्षाके लिये नियुक्ति ( आश्व० ७२ । १६ )। (मौसल० ७ । २८-३१)। अर्जुनका श्रीकृष्णपत्नियों सेनासहित अर्जुनका अश्वकी रक्षाके लिये उसके पीछे पीछे तथा द्वारकावासियोंको लेकर इन्द्रप्रस्थकी ओर प्रस्थान पैदल ही जाना (आश्व० ७३ । ७-८) । अर्जुनके द्वारा (मौसल०७ ॥३२)मार्गमें लुटेरोंका आक्रमण और अर्जुन त्रिगतीकी पराजय, सूर्यवर्माकी हार, केतुवर्माका वध, धृत आदिका उनसे स्त्रियोंकी रक्षा करनेमें असमर्थ होना । वर्माका घायल होना आदि (आश्व०७४ अ.में)। प्राग्ज्यो शेष व्यक्तियोंको लेकर जाना | मार्तिकावतमें कृतवर्माके तिषपुरमें भगदत्तके पुत्र बज्रदत्तकी पराजय तथा उसके पुत्रको सरस्वतीके तटपर सात्यकिके पुत्रको उन प्रदेशीका राजा बनाना और वज्रको इन्द्रप्रस्थ अभिषिक्त करना हाथीका विनाश (आश्व०७६।१७-१९)। अर्जुनका सैन्धवों (मौसल०७ । ५१-७२)। अर्जुनका व्यासजीसे बीती बातें के साथ युद्ध और दुःशलाके अनुरोधसे उसकी समाप्ति बताना और व्यासजीका उन्हें आश्वासन देते हुए पाण्डवों(आश्व० ७७-७८ अ० )। अर्जुन और बभ्रुवाहनका युद्ध को महाप्रस्थानके लिये प्रेरित करना ( मौसल० ८ तथा अर्जुनकी मृत्यु (आश्व०७९ अमें)। उलूपीके प्रयत्नसे अमें) अर्जुनका भाइयोसहित महाप्रस्थान और मार्गमें संजीवनी मणिके द्वारा अर्जुनका पुनर्जीवन ( आश्व० ८० अग्निदेव और भाइयोंके कहनेसे गाण्डीव धनुषको जलअमें )। उलूपीसे उसके और चित्राङ्गदाके युद्धस्थलमें में डाल देना ( महाप्रा० १ । १-४२ ) । मार्गमें आनेका कारण पूछना (आश्व०८१। में)। अर्जुनकीपराजय अर्जुनका गिरना और युधिष्ठिरका उनके गिरनेका कारण का रहस्य तथा उलूपी और चित्राङ्गदासे विदा लेकर उनका बताना ( महाप्रा० २ । १४-२२)। अर्जुनका भगवान् पुनः अश्वके पीछे जाना (आश्व० ८१ अमें)। अर्जुनद्वारा श्रीकृष्णके पार्षदरूपसे दर्शन (स्वर्गा० ४ । ४)। मगधराज मेवसंधिकी पराजय (आश्व० ८२ अ०में)। शकुनि- महाभारतमें आये हुए अर्जुनके नाम-ऐन्द्रि, भारत, पुत्रकी पराजय, शकुनिकी स्त्रीके अनुरोधसे अर्जुनका युद्ध भीमानुज, भीमसेनानुज, बीभत्सु, बृहन्नला, शाखामृगबंद कर देना (आश्व०८४ अमें)। श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे ध्वज, शक्रज, शक्रनन्दन, शक्रसूनु, शक्रात्मज, शक्रसुत. श्वेताश्व, श्वेतहय, श्वेतवाह, श्वेतवाहन, देवेन्द्रतनय, अर्जुनका संदेश कहना ( आश्व० ८६।९-२१)। अर्जुनके धनंजय, गाण्डीवभृत्, गाण्डीवधन्वा, गाण्डीवधारी, विषयमें श्रीकृष्ण-युधिष्ठिरकी बातचीत, अर्जुनके दूत तथा गाण्डीवी, गुडाकेश, इन्द्ररूप, इन्द्रसुत, इन्द्रात्मज) अर्जुनका हस्तिनापुरमें आना (आश्व० ८७ । १-२२)। इन्द्रावरज, जय, जिष्णु, कपिध्वज, कपिकेतन, कपिप्रवर, धृतराष्ट्रकै श्राद्ध और दानके लिये धन माँगनेपर अर्जुनकी कपिवरध्वज, कौन्तेय, कौरव, कौरवश्रेष्ठ, कौरव्य, सहमति तथा भीमसेनके अस्वीकार करनेपर अर्जुनका उन्हें कौरवेय, किरीटभृत्, किरीटमाली, किरीटवान्, किरीटी, समझाना (आश्रम० ११-१२ अ०)। यादवोसहित कृष्ण, कृष्णसारथि, कुन्तीपुत्र, महेन्द्रसूनु, महेन्द्रात्मज) इनका वनमें जाकर धृतराष्ट्र और माता कुन्ती आदिके। नर, पाकशासनि-पाण्डव, पाण्डवेय, पाण्डुनन्दन पार्थ, पौरव, दर्शन करना तथा व्यासजीके द्वारा मृत व्यक्तियोका फाल्गुन, प्रभञ्जनसुतानुज, सव्यसाची सुरसूनु, तापत्य:त्रिदशेआवाहन होनेपर उन सबसे मिलना हस्तिनापुरको लौटना श्वरात्मज, वानरध्वज, वानरकेतन, वानरकेतु, वानरवयंकेतन, तथा धृतराष्ट्र आदिके दग्ध होनेके समाचारसे दुखी होना वासवज, वासवनन्दनावासवात्मज, वासवि, विजय आदि । और उनके श्राद्ध आदि करना (आश्रम०२३-३९ अजुनकी पत्नियोके नाम-द्रौपदी, उलूपी, चित्राङ्गदा अ०तक)। अर्जुन का दारुकके साथ द्वारका जाना और सुभद्रा। श्रीकृष्णपत्नियोंसे मिलना और उन्हें धीरज बँधाकर इनके पुत्रोके नाम क्रमशः-श्रुतिकीर्ति, इरावान्, बभ्रुवाहन और अभिमन्यु। वसुदेवके पास जाना ( मौसल. ५ अमें ) । (२) हैहयराज कार्तवीर्य, यमसभाके एक सदस्य (सभा० अर्जुनसे मिलकर वसुदेवका विलाप करना और उनके । ११)। ( विशेष देखिये कार्तवीर्य) (३) लिये कहे गये श्रीकृष्णका संदेश सुनाना (मौसल.६ अ०में ) । 'अब पाण्डवोंके भी परलोकगमनका - यमसभामें बैठनेवाले एक राजा (सभा० ८ । १७)। समय आ गया है, हम यहाँके लोगोंको इन्द्रप्रस्थ अर्जुनक-एक व्याध, इसका गौतमी, सर्प, मृत्य और जायगे'-ऐसा वसुदेवसे कहकर अर्जुनका दारुक तथा कालक साथ सवाद ( अनु० १।२१-६८)। मन्त्रियोंको यात्राकी तैयारीके लिये आदेश देना तथा अर्जुनवनवासपर्व-आदिपर्वका अवान्तर पर्व अध्याय रातमें श्रीकृष्णभवनमें ठहरना (मौसल०७।१-१४) २१२ से २१७ तक। वसुदेवका परलोकवास और अर्जुनद्वारा उनका दाह-संस्कार अर्जुनाभिगमनपर्व-वनपर्वका अवान्तर पर्व, अध्याय एवं वृष्णिवंशी कुमारोद्वाराजलदान (मौसल०७। १५- १२ से ३७ तक। ५७) । अर्जुनका यादव-विनाशस्थलमें जाकर छोटे-बड़ेके अर्थ-धर्मद्वारा श्रीदेवीसे उत्पन्न (शान्ति० ५९ । १३२ )। क्रमसे सबका दाह करना, फिर श्रीकृष्ण-बलरामके शरीरों- अर्धकीलतीर्थ-दर्भामुनिके द्वारा प्रकट किया हुआ एक का अनुसंधान कराकर उनका भी दाह-संस्कार करना तीर्थ (वन० ८३ । १५३)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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