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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनोजव मन्दपाल शास्त्रका निर्माण एवं धर्मोपदेश किया ( शान्ति० मनोनुग-क्रौञ्चद्वीपवर्ती वामन पर्वतके पासका एक देश ३३५ । ४४.४५)। जिस समय उपमन्यु सर्वालङ्कार (भीष्म० १२ । २१)। तथा परिवारगोंसे घिरे हुए महादेवजीका दर्शन कर मनोरमा-(१) एक अप्सरा, जो कश्यपकी प्राधा नामरहे थे, उस समय उन्होंने देखा कि स्वायम्भुव मनु वाली पत्नीसे उत्पन्न हुई थी ( आदि०६५। ५०)। वहाँ पधारे हुए है (अनु० १४ । २८०)। पुष्प, धूप, इसने अर्जनके जन्ममहोत्सवमें आकर नृत्य किया था दीप और उपहारके दानके माहात्म्य-प्रसङ्गमें तपस्वी ( आदि० १२२ । ६२)। (२) उद्दालक मुनिके सुवर्ण और मनुका संवाद ( अनु० ९८ अध्याय)। आवाहन करनेपर उनके यज्ञमें प्रकट हुई सरस्वती (२) कश्यपकी प्राधा' नामवाली पत्नीसे उत्पन्न हुई नदीका नाम (शल्य० ३८ । २५)। पुत्री (आदि०६५। १५-१६) । (३) विवस्वान्के । मनोहरा-(१) सोम नामक वसुकी पत्नी, जिसके गर्भसे पुत्र, जो वैवस्वत मनुके नामसे प्रसिद्ध हुए (आदि०७२ । पहले वर्चाका जन्म हुआ; फिर शिशिर, प्राण तथा १२) । इनके वेन, धृष्णु, नरिष्यन्त, नाभाग, इक्ष्वाकु, रमण नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए ( आदि. ६६ । कारूष, शर्याति, इला, पृषध्र, नाभागारिष्ट-ये दस पुत्र २२)। (२) अलकापुरीकी एक अप्सरा, जिसने थे ( आदि० ७५ । १५-१६) । वैवस्वत मनुका चरित्र अष्टावक्रके स्वागतके लिये कुबेरसभामें नृत्य किया था तथा मत्स्यावतारकी कथा (बन० १८७ अध्याय)। (अनु०१९ । ४५)। इन्हें विवस्वान्से योगकी प्राप्ति हुई और इन्होंने वही योग इक्ष्वाकुको प्रदान किया (भीष्म० १२२ । ३४ मन्थरा-दुन्दुभी नामक गन्धवींके अंशसे उत्पन्न हुई एक कुबड़ी दासी, जो कैकेयीकी सेवामें रहती थी (वन ४२) । त्रेतायुगके आरम्भमें सूर्यने मनुको और मनुने २७६ । १०)। इसका कैकेयीके मनमें भेद उत्पन्न सम्पूर्ण जगत् के कल्याणके लिये अपने पुत्र इक्ष्वाकुको । सात्वत धर्मका उपदेश किया (शान्ति० ३४८ । ५१)। करना ( वन० २७७ । १७-१८)। महर्षि गौतमसे इन्हें शिवसहस्रनामको प्राप्ति हुई और मन्थिनी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । इन्होंने समाधिनिष्ठ एवं ज्ञानी नारायण नामक किसी २८)। साध्य देवताको यह स्तोत्र प्रदान किया ( अनु०१७। मन्दग-शाकद्वीपका एक जनपद, जिसमें धर्मात्मा शोका १७७-१७८ )। (४) ये तपनामधारी पाञ्चजन्य निवास है (भीष्म ११।३८)। नामक अग्निके पुत्र थे। इनका एक नाम भानु भी मन्दगा-भारतकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके था । इनके तीन पत्नियाँ थीं-सुप्रजा, बृहद्भासा और निवासी पीते हैं (भीष्म ९।३३)। निशा । प्रथम दोसे छः पुत्र और तोसरीसे एक कन्या मन्दपाल-एक विद्वान् महर्षि, जो धर्मशोंमें श्रेष्ठ और तथा सात पुत्र उत्पन्न हुए (बन० २२१ । ४-१५)।। कठोर व्रतका पालन करनेवाले थे। ये ऊध्वरेता मुनियों( पाचेतस नामसे प्रसिद्ध मन, जिन्होंने छ: व्यक्तियों के मार्गका आश्रय ले सटा वेटोके नामm. uimaa को त्याज्य बताया है (शान्ति० ५७ । ४३-४५)। और तपस्यामें संलग्न रहते थे । अपनी तपस्या पूर्ण (६) स्वारोचिष नामसे प्रसिद्ध एक मनु, जिन्हें करके शरीरको त्यागकर जब ये पितृलोकमें गये, तब ब्रह्माजीने सात्वत धर्मका उपदेश दिया था। फिर स्वारी- वहाँ इन्हें अपने तप एवं सत्कोका फल नहीं मिला। चिपने अपने पुत्र शङ्खपदको इसका उपदेश दिया इन्होंने देवताओंसे इसका कारण पूछा । देवताओंने (शान्ति० ३४८ । ३६.३७)। (७) चाक्षुष नामक बताया कि आपने पितृ-ऋणको नहीं उतारा है। अतः मनु, जिनके पुत्र भगवान् वरिष्ठके नामसे प्रसिद्ध हैं संतान उत्पन्न करके अपनी वंशपरम्पराको अविच्छिन्न ( अनु० १८ । २०)। (८) सौवर्ण नामक बनानेका प्रयत्न कीजिये । यह सुनकर शीघ्र संतान उत्पन्न मनु, जिनके समयमें वेदव्यास सतर्षि पदपर प्रतिष्ठित करनेके लिये इन्होंने शाह्निक पक्षी होकर जरिता नामहोंगे (अनु. १८ । ४३)। वाली शाझिंकासे सम्बन्ध स्थापित किया । उसके गर्भसे मनोजव-(१)अनिल नामक वसुके प्रथम पुत्र । इनकी चार ब्रह्मवादी पुत्रोंको जन्म देकर ये मुनि लपिता माताका नाम शिवा है (आदि० ६६ । २५)। (२) नामवाली पक्षिणीके पास चले गये। बच्चे अपनी माँके कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक पवित्र तीर्थ, जो व्यास- साथ खाण्डववनमें ही रहे। जब अग्निदेवने उस वनवनमें स्थित है। इसमें स्नान करनेसे सहस्र गोदानका फल को जलाना आरम्भ किया, उस समय इन्होंने उनकी मिलता है (वन० ४३ । ९३ )। स्तुति की और अपने पुत्रोंकी जीवन-रक्षाके लिये पर माँगा। तब अग्निदेवने 'तथास्तु' कहकर इनकी प्रार्थना मनोजवा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य.४६।११।। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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