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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मधुकुम्भा ( २४४ ) विष्णुने ब्रह्माजीके हितके लिये मारा था । इसीलिये वे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है ( वन० १३४ । मधुसूदन कहलाते हैं (शान्ति. २०७ । १४-१६)। ३९-१०)। इसकी उत्पत्तिका वर्णन (शान्ति० ३४७ । २५-२६)। मधुसूदन-श्रीकृष्णका एक नाम । मधु नामक असुरको इसका भगवान् हयग्रीव (विष्णु)द्वारा वध ( सभा० मारनेके कारण ये मधुसूदन कहलाते हैं (वन० २०७ । ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७८४, वन० २०३। १६)। ३५, शान्ति. ३४७ । ६९-७०)। (२) यमकी सभामें मधुम्रव-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत स्थित एक प्राचीन रहने वाला एक राजा (सभा०८।१६)। तीर्थ, जो पृथूदकके पास है । इसमें स्नान करनेसे सहस्र मधकरभा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. ४६. गोदानका फल मिलता है (वन०८३ । १५०)। मनस्यु-महाराज पूरुके पौत्र तथा प्रवीरके पुत्र । इनकी मधुच्छन्दा-एक वानप्रस्थी ऋषि, जिन्होंने उस (वानप्रस्थ) ___ माताका नाम 'शूरसेनी' था। ये चक्रवर्ती सम्राट थे । धर्मके पालनसे उत्तम लोक प्राप्त किया (शान्ति. इनके द्वारा अपनी पत्नी सौवीरीके गर्भसे तीन पुत्र उत्पन्न २४४।१६)। ये विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक हुए-शक्त, संहनन और वाग्मी ( आदि. ९४ । थे (अनु०४ । ५०)। ६-७)। मधुपर्क-(१) देवताओं तथा अतिथियोंके पूजनका एक मनस्विनी-प्रजापति दक्षकी पुत्री, धर्मराजकी पत्नी और उपचार, जो विशेष विधिसे अर्पित किया जाता है (वन. __ चन्द्रमाकी माता ( आदि० ६६ । १९)। ५२ । ४१)। (प्रायः दधि, मधु और घृत ही मधुपर्कके मनु-(१) मानव-सृष्टिके प्रवर्तक आदि मनु, जो विराट उपयोगमें लाये जाते हैं। कुछ लोग मधुके स्थानमें शर्करा अण्डसे प्रकट हुए (आदि०१।१२)। इनकी पुत्री डालते हैं । ) (२) गरुड़की प्रमुख संतानों से एक आरुषी महर्षि च्यवनकी पत्नी थी ( आदि० ६६ । (उद्योग० १०१।१४)। १६)। इन्हें ही स्वयम्भूका पुत्र मानकर स्वायम्भुव' मधुमान्-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ५३)। कहा गया है। इन्होंने धर्मसम्मत विवाहके विषयमें अपना मधुर-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । १)। निर्णय दिया है (आदि०७३।९) । इन्होंने सोमको चाक्षुषी विद्या प्रदान की थी ( आदि. १६९ । मधुरस्वरा-स्वर्गलोककी एक अप्सरा, जिसने अर्जनके ४३)। मगध देशको मेघोंके लिये अपरिहार्य कर स्वागतमें नृत्य किया था (वन० ४३ । ३०)। दिया था, जिससे मेघ सदा समयपर वहाँ जल बरसाते मधलिका-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । थे। सभा० २१।१०)। ये इन्द्रके विमानपर बेठ कर कौरवोंके साथ अर्जुनका युद्ध देखने के लिये आये थे मधुवटी-कुरुक्षेत्रको सीमामें स्थित एक तीर्थ । यहाँ जाकर (विराट० ५६ । १०)। इनकी पत्नीका नाम सरस्वती देवीतीर्थमें स्नान करके मानव देवता-पितरोंकी पूजा करे था ( उद्योग० ११७।१४)। (पुराणान्तरों में शतरूपा तो देवीकी आशाके अनुसार सहस्र गोदानका फल पाता है नाम आता है । ) विन्दुसरोवरके तटपर ये सदा स्थित (वन० ८३ । ९४)। रहते हैं ( भीष्म० ७ । ४६ )। ये पृथ्वी-दोहनके मधुवन-वानरराज सुग्रीवके अधिकार में सुरक्षित एक वन, समय बछड़ा बने थे (द्रोण० ६९ । २१)। ये स्कन्द के जिसके भीतर बलपूर्वक घुसकर हनुमान, अङ्गद आदिने जन्म-समयमें भी पधारे थे ( शल्य. ४५।१०)। वहाँका मधु पी लिया था (न० २८२ । २७-२८)। इनका सिद्धोंके साथ संवाद, इनके कथनानुसार धर्मका स्वरूप, पापसे शुद्धि के लिये प्रायश्चित्त, अभक्ष्य वस्तुओंमधुवर्ण-स्कन्द का एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७२)। का वर्णन तथा दानके अधिकारी एवं अनधिकारीका मधुविला-कर्दमिल क्षेत्रके निकट बहनेवाली एक प्रसिद्ध विवेचन (शान्ति० ३६ अध्याय)। ये मनुष्योंके आदि नदी, जिसका दूसरा नाम समंगा है (वन. १३५। राजा थे (शान्ति० ६७ । २१-२२)। इन्हें प्रजापति १)। वृत्रासुरका वध करके श्रीहीन हुए इन्द्र समंगा मनु भी कहते हैं, इन्होंने बृहस्पतिके प्रश्नोंके उत्तरमें या मधुविलामें ही नहाकर पापमुक्त हो सके थे (वन. ज्ञान और त्यागकी प्रशंसा करते हुए उन्हें परमात्म१३५ । २)। अपने पिता कहोडकी आज्ञासे समंगामें तत्त्वका उपदेश दिया तथा उनके अन्य प्रश्नोंका भी स्नान करनेसे अष्टावक्रके सारे अन सीधे हो गये थे। विवेचन किया (शान्ति० अध्याय २०१ से २०६ तक)। इसीसे वह पुण्यमयी हो गयी। इसमें स्नान करनेवाला पाञ्चरात्र आगमके अनुसार ही स्वायम्भुव मनुने धर्म For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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