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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मद्धार ( २४३) अंध्रदेशीय मल्ल चाणूरका वध किया था। वहीं (विराट.३३।१०) ये एक उदार रथी सम्पूर्ण अत्रोके बलदेवने मुष्टिकको मारा था । उसी नगरमें श्रीकृष्णने शाता और मनस्वी वीर थे (उद्योग. १७१।१५)। कंसके भाई और सेनापति सुनामाका संहार किया । द्रोणाचार्यद्वारा इनके मारे जानेकी चर्चा (कर्णः ।। ऐरावत-कुलमें उत्पन्न कुवलयापीडको नष्ट किया । कंसको ३४)। मारा, उग्रसेनको मधुराके राज्यपर अभिषिक्त किया मदिराश्व-एक राजर्षि, जो इक्ष्वाकुकुमार दशाश्वके पुत्र और माता-पिताके चरणों में वन्दना की (समा० ३८। थे। ये परम धर्मात्मा, सत्यवादी, तपस्वी, दानी तथा वेद पृष्ठ ८०१)। श्रीकृष्ण शूरसेनपुरी मथुराको छोड़कर एवं धनुर्वेदके अभ्यासमें तत्पर रहनेवाले थे (अनु० २। द्वारका चले गये थे ( सभा०३८ । पृष्ठ ८०४ )। ८) । हिरण्यहस्तको कन्यादान करके देववन्दित कसके मारे जानेपर उसकी पत्नीकी प्रेरणासे जरासंधने लोकों में गये थे (शान्ति. २३४ । ३५, अनु. १३.। जब मथुरापर आक्रमण किया, तब अपने मन्त्री हंस २४)। और डिम्भकके आत्मघात कर लेनेपर उत्साहशून्य होकर , मद्र-एक प्राचीन भारतीय जनपद (जो आधुनिक मतके वह लौट गया । इससे मथुरावासी यादव आनन्दपूर्वक अनुसार रावी और चिनाब अथवा रावी और झेलमके वहाँ रहने लगे । तदनन्तर अपनी पुत्रियोंकी प्रेरणासे मध्यवर्ती भू-भागमें स्थित था)। भीष्मजीका बूढ़े जब जरासंधने पुनः आक्रमण किया, तब यादव वहाँसे मन्त्रियों, ब्राह्मणों तथा सेनाके साथ इस देशमें जाना और भाग खड़े हुए और रैवतक पर्वतसे सुशोभित कुशस्थलीमें मद्रराज शल्यसे पाण्डुके लिये माद्रीका वरण करना जाकर रहने लगे (सभा. १४ । ३५-५०)। (आदि. ११२।२-७) । अर्जुनके जन्मकालमें जरासंधने गिरिवजसे एक गदा फेंकी थी, जो मथुरामें आकाशवाणी हुई थी कि यह बालक आगे चलकर मद्र आकर एक स्थानपर गिरी, वह स्थान गदावसानके आदि देशोंपर विजय पायेगा (आदि. १२२ । ४.)। नामसे प्रसिद्ध हुआ ( सभा० १९ । २३-२४ )। पाण्डुपुत्र नकुलने इस देशपर प्रेमसे ही विजय पायी थी मथुराके योद्धा मल्लयुद्धमें निपुण होते हैं (शान्ति. (समा० ३२ । १४-१५)। मद्र या मद्रदेशके लोग १०१।५)। साक्षात् नारायणने ही कंसका वध करनेके युधिष्ठिरके लिये भेंट लेकर आये थे (समा० ५२।१४)। लिये मथुराम श्रीकृष्णरूपसे अवतार लिया था (शान्ति. सती सावित्रीके पिता अश्वपति मद्रदेशके ही नरेश ये ३३९ । ८९-९०)। (बन० २१३ । १३)। कर्णने मद्र और वाहीक आदि मदधार-एक पर्वत, जिसे पूर्व-दिग्विजयके समय भीमसेनने जिस पूर्व-दिग्विजयक समय भामसेनने देशोंको आचारभ्रष्ट बताकर उनकी निन्दा की थी (कर्ण. जीता था (सभा० ३.१९)। अध्याय ४४ से ४५ तक)। मदयन्ती-राजा मित्रसह ( कल्माषपाद अथवा सौदास ) मद्रक-(१) एक प्राचीन क्षत्रिय राजा, जो क्रोधवशसंज्ञक की पत्नी, जिनके गर्भसे बसिष्ठद्वारा अश्मककी उत्पत्ति दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुआ था ( आदि. ६७ । ५९. हुई थी (आदि. १७६ । ४३-४६. आदि. १८१ ६ .)।(२)मद्रदेशीय योद्धा, जो कौरवसेनामें उपस्थित २६. शान्ति० २३४ । ३०)। कुण्डलकी याचनाके लिये थे (भीष्म० ५१।७)। गये हुए उत्तङ्क मुनिके साथ इनका संवाद (आश्व० मढकलिङ्ग-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४२)। ५७ । २१-२८)। उत्तङ्कको कुण्डल देना (आश्व० ५८।३)। मधु-(१) एक महान् दैत्य, जो कैटभका भाई था । 'यह भगवान् विष्णुके कानोंकी मैलसे उत्पन्न हुआ था मदासुर-च्यवनद्वारा प्रकट की हुई कृत्याके रूपमें एक और उन्होंने ही मिट्टीसे उसकी आकृति बनायी थी। विशालकाय असुर (वन० १२४ । १९)। इसकी त्वचा मृदु होनेसे इसका नाम मधु रखा गया मदिरा-वसुदेवजीकी अनेक पत्नियों से एक । ये देवकी, ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७४३. भद्रा तथा रोहिणीके साथ पतिदेवकी चितापर आरूढ़ हो .४४)। कैटभसहित यह असुर ब्रह्माजीको मारनेके लिये भस्म हो गयी थीं (मौसल.011८)। उद्यत हुआ था (वन० १२।३९)। इसके द्वारा मदिराक्ष ( मदिराश्व )-मत्स्यनरेश विराटके भाई, विष्णुको अपनी मृत्युका वर देना (वन.२०६।३०)। त्रिगोंद्वारा गोहरणके समय इनका कवच धारण करके इसकी भगवान् विष्णुसे वर-याचना (वन० २०३ । ३१. युद्धके लिये प्रस्थान करना (विराट० ३१ । १२-१३)। ३२)। यह तमोगुणसे प्रकट हुआ था। यह असुरोका गोहरणके समय त्रिगोंसे इनका युद्ध (विराट. १२ ।। पूर्वज था। इसका स्वभाव बड़ा ही उग्र था । यह सदा १९-२१)। ये राजा विराटके चक्र-रक्षक भी ये ही भयानक कर्म करनेवाला था । इस असुरको भगवान् For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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