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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मतङ्गकेदार ( २४२ ) मथुरा ब्राह्मणेतरद्वारा उत्पन्न हुए थे (अनु०२० )। १२-१३)। महाभारतकालमें विराट यहाँके राजा थे इनका गर्दभीके साथ-संवाद (अनु०२७।११-१९)। (विराट. १ । १७)। मत्स्यनरेश विराटके यहाँ की ब्राह्मणत्व-प्राप्तिके लिये इनकी तपस्या (अनु. २७ । पाण्डवोंने अपना अज्ञातवासका समय बिताया (विराट. २२-२३)। वर देनेके लिये आये हुए इन्द्रके साथ . अध्याय) । मत्स्यदेशके राजा विराट एक अक्षौ. इनका संवाद (अनु. २७ । २४ से २९ । १२ तक)। हिणी सेना लेकर युधिष्ठिरकी सहायतामें आये थे ( उद्योग इनका इन्द्रसे वर माँगना और इन्द्रका इन्हें वर देना १९ । १२)। इसकी गणना भारतके प्रमुख जनपदोमें (अनु० २९ । २२-२५)। इन्हें प्राणत्यागके पश्चात् है (भीष्म० ९। ४.)। कुछ मत्स्यदेशीय सैनिक उत्तम स्थानकी प्राप्ति (अनु० २९ । २६)। भीष्मद्वारा मारे गये थे (भीष्म ४९ । ४२) । मताकेदार-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे मनुष्य सहस्र द्रोणाचार्यद्वारा पाँच सौ 'मत्स्य देशीय वीरोंका वध एक गोदानका फल पाता है (वन० ८५।१७-१८वन. साथ हुआ था (द्रोण० १९० । ३१) । कर्णने पहले ८७ । २५)। कभी इस देशको जीता था ( कर्ण० ८।१८)। मतनाथम-श्रम और शोकका विनाश करनेवाले इस यहाँके निवासी धर्मके जाननेवाले और सत्यवादी होते आश्रममें प्रवेश करनेसे मनुष्य गवायन यज्ञका फल थे ( कर्ण० ४५ । २८, ३० )। युद्धसे बचे हुए पाता है (वन० ८४ । १.१)। मत्स्यदेशीय वीरोंका अश्वत्थामाद्वारा संहार (सौप्तिक. मति-दक्ष प्रजापतिकी पुत्री एवं धर्मराजकी पत्नी (आदि. ८। १५८-१५९)। ६६ । १५)। मत्स्यगन्धा-दाशराजकी पोष्य कन्या ( आदि. ६३ । मतिनार-एक पूरुवंशी नरेश, जो पुरु-पौत्र अनाधृष्टि ६९, ८६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ) (विशेष देखिये(ऋचेयु) के पुत्र थे । ये महान् धार्मिक तथा अश्व- सत्यवती) मेध आदि बड़े-बड़े यज्ञों के अनुष्ठान करनेवाले थे। इनके मथुरा-(पुराणानुसार सात मोक्षदायिनी पुरियोंमेंसे एक तंसु, महान्, अतिरथ एवं द्रुह्यु नामके चार पुत्र थे। पुरीका नाम । यह वजमें यमुनाके दाहिने किनारेपर है। ( आदि. ९४ । १३-१४)। (यहाँ आदिपर्वके ९४ रामायण (उत्तरकाण्ड) के अनुसार इसे मधु नामक दैत्यने अध्यायमें वर्णित परम्पराके अनुसार राजा मतिनार पूरुसे बसाया था, जिसके पुत्र लवणासुरको पराजित करके चौथी पीढ़ीमें आ रहे हैं। परंतु आदिपर्वके ९५ अध्यायके शत्रुघ्नने इसको विजय किया था। पाली-भाषाके ग्रन्थों में ११ से २६ तकके श्लोकोंमें पूरुवंशकी जिस परम्पराका इसे मथुरा लिखा है । महाभारत कालमें यहाँ शूरसेनवर्णन किया गया है, उसमें राजा मतिनार पुसे १६वीं वंशियोंका राज्य था और इसी वंशकी एक शाखामें पीढ़ीमें आते हैं।) भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रका यहाँ जन्म हुआ था । शूरमत्कुलिका-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६ । सेनवंशियोंके राज्यके अनन्तर अशोकके समयमें उनके आचार्य उपगुप्तने इसे बौद्धधर्मका केन्द्र बनाया था । यह मत्तमयूर-एक क्षत्रिय-समुदाय, जिसे पश्चिम-दिग्विजयके जैनोंका भी तीर्थस्थान है । उनके उन्नीसवे तीर्थकर समय नकुलने जीता था (सभा० ३२ । ५)। मल्लिनाथका यह जन्मस्थान है । मौर्यसाम्राज्यके मत्स्य-(१) एक राजा, जो उपरिचर वसुके वीर्यद्वारा अनन्तर यह स्थान अनेक यूनानी, पारसी और शक मत्स्यके गर्भसे उत्पन्न हुआ था (आदि. ६३।५०-६३)। क्षत्रियोंके अधिकारमें रहा । महमूद गजनवीने सन् यह यम-सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करता १०१७ ई. में आक्रमण करके इस नगरको नष्ट-भ्रष्ट है (सभा० ८।१०)। (२)एक देश और यहाँके कर डाला था । अन्य मुसल्मान बादशाहोंने भी समयनिवासी । वनमें भटकते हुए पाण्डव मत्स्यदेशमें आये थे समयपर आक्रमण करके इसे तहस-नहस किया था। ( आदि. १५५ । २) । यहाँके निवासी जरासन्धके यहाँ हिंदुओंके अनेक मन्दिर हैं और अनेक कृष्णोभयसे उत्तर दिशाको छोड़कर दक्षिण भाग गये थे पासक वैष्णव-सम्प्रदायके आचार्योंका यह केन्द्र है। मथुराका (सभा० १४ । २८)। पूर्व-दिग्विजयके समय भीम- दूसरा नाम शूरसेनपुर है (सभा०३८। दाक्षिणात्य पाठ, सेनने इस देशपर विजय पायी थी (सभा० ३०1८)। पृष्ठ ८०४, कालम २ )। यही भगवान् श्रीकृष्णका सहदेवने भी दक्षिणदिग्विजयके समय इसे जीता था अवतार हुआ और नवजात बालक श्रीहरिको वसुदेवजीने (सभा० ३१ । ४) । अर्जुनद्वारा अशतवासके लिये कंसके भयसे मथुरासे ले जाकर नन्दगोपके घरमें छिपा चुने हुए देशों में यह मत्स्यदेश भी था (विराट । दिया (समा०३८ । पृष्ठ ७९८)। मथुरामें ही श्री For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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