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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४१. ) मत मञ्जुला-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके ( अनु० १९ । ३३ ) । मरुत्तका धन लानेके लिये निवासी पीते हैं (भीष्म०९।३.)। जाते समय युधिष्ठिरने इन्हें खिचड़ी, फलके गूदे तथा जलकी अञ्जलि निवेदन करके इनकी पूजा की थी मणि-(१) धृतराष्ट्रकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके (आश्व०६५। ७)। सर्पसत्रमें दग्ध हो गया (आदि० ५७ । १९)। (२) एक ऋषि, जो ब्रह्माजीकी सभामें रहकर उनकी उपासना मणिमतीपुरी-यह इल्वल दैत्यकी नगरी थी (क्न. करते हैं (सभा० ११ । २४)। (३) चन्द्रमाद्वारा ९६।४)। स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक । दसरेका नाम मणिमन्थ-एक पर्वत, जहाँ श्रीकृष्णने लाखों करोड़ों वर्षोंसुमणि था ( शल्य० ४५ । ३२)। तक शिवकी आराधना की थी (अनु० १८ । ३३)। मणिकाञ्चन-श्यामगिरिके पास स्थित शाकद्वीपका एक वर्ष माणमान्-(१) एक राजा जो दनायुके पुत्र वृत्त नामक असुरके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि०६७। (भीष्म० ११ । २६)। ४४)। ये द्रौपदीके स्वयंवर में पधारे थे (आदि. १८५। मणिकुट्टिका-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. २२)। भीमसेनने पूर्वदिग्विजयके समय इन्हें पराजित ४६ । २०)। किया था (सभा० ३० । ११)। पाण्डवोंकी ओरसे मणिजला-शाकद्वीपकी एक प्रमुख नदी ( भीष्म० इन्हें रणनिमन्त्रण भेजनेका निश्चय किया गया था 1५।३२)। ( उद्योग० ४ । २०)। इनका भूरिभवाके साथ युद्ध मणिनाग-(१) कश्यपद्वारा कद्रुके गर्भसे उत्पन्न एक और उसके द्वारा इनका वध (द्रोण० २५ । ५३ नाग (आदि. ३५। ६)। गिरिव्रजके निकट इसका ५५)। द्रोणाचार्यद्वारा इनके मारे जाने की चर्चा निवासस्थान था (सभा० २१ ।९)। (२) एक (कर्ण० ६ । १३.१४)। (२)एक नाग, जो वरुणकी तीर्थ, जहाँ एक रात निवास करनेसे सहस्र गोदानका फल सभामें रहकर उनकी उपासना करता है (सभा०९। मिलता है और इस तीर्थका प्रसाद भक्षण करनेसे सर्पके १)। (३) एक तीर्थ, जहाँ एक रात निवास करनेसे अग्निकाटनेपर उसके विषका प्रभाव नहीं पड़ता (वन० टोम यज्ञका फल प्राप्त होता है (वन० ८२ । १.१)। ८४ । १०६)। (४) एक यक्ष या राक्षस, जो कुबेरका सखा था। इसका मणिपर्वत-एक पर्वत, जहाँ दुष्ट भौमासुरने सोलह हजार भीमसेनके साथ युद्ध और उनके द्वारा वध ( वन एक सौ अपहृत कन्याओंके रहने के अन्तःपुरका निर्माण १६० । ५९-७७)। अगस्त्यजीका अपमान करनेके कराया था (सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, कारण उनके द्वारा इसे शाप मिलने की चर्चा (वनपृष्ठ ८०५)। १६१ । ६०-६२ ) । (५) एक पर्वत, जो स्वप्नमें मणिपूर-यह धर्मश राजा चित्रवाहन की राजधानी थी। यहाँ श्रीकृष्णके साथ शिवजीके पास जाते हुए अर्जुनको मार्गमें तीर्थयात्राके अवसरपर अर्जुनका आगमन हुआ था और मिला था (द्रोण० ८० । २४)। चित्राङ्गदाके साथ विवाह करके वे तीन वर्षतक यहाँ मण्डक-एक भारतीय जनपद (भीष्म०९ । ४३)। निवास किये थे । अर्जुनद्वारा चित्राङ्गदाके गर्भसे यही मण्डलक-तक्षककुलमें उत्पन्न एक नाग, जो सर्पसत्र में दग्ध बभ्रुवाहनका जन्म हुआ था ( सभा० २१४ । १३- हो गया (आदि० ५७ । ८)। २७)। अश्वमेधीय अश्वके पीछे जाते हुए अर्जुनका मण्डक-अश्वकी एक जाति; इस जातिके बहत-से अश्व मणिपुर में पुनः आगमन तथा पिता-पुत्रका घोर संग्राम अर्जुनने दिग्विजयके समय गन्धर्वनगरसे करके रूपमें (आश्व० ७९ अध्याय)। प्राप्त किये ( सभा० २८ । ६)। मणिपुष्पक-सहदेवके शङ्खका नाम ( भीष्म० २५ । मतङ्ग-(१) एक प्राचीन राजर्षि, जो शापवश व्याध हो गये थे और जिन्होंने दुर्भिक्षके समय विश्वामणिभद्र-एक यक्षविशेष, जो कुबेरकी सभामें रहकर मित्रकी पत्नीका भरण-पोषण किया था ( आदि०७१। उनकी सेवा करते हैं (सभा. १० । १५ ) । ये ३१)। महर्षि विश्वामित्रने पुरोहित बनकर इनके यज्ञका यात्रियों तथा व्यापारियोंके उपास्यदेव है (वन० ६४। सम्पादन किया था, जिसमें इन्द्र स्वयं सोमपान करनेके १३०; वन० ६५ । २२)। कुण्डधार मेघकी प्रार्थनासे लिये पधारे थे ( आदि. ७१ । ३३)। (२) एक इनका ब्राह्मण को वरदान देना (शान्ति. २७१। महर्षि, जिनका आश्रम तीर्थरूपमें माना जाता है २१-२२ )। इनके द्वारा अष्टावक्र मुनिका स्वागत (वन. ८४ । १०१)। (३) ये ब्राह्मणीके गर्भसे म. ना.३१ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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