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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४० ) मजान भौम-एक असुर ( देखिये नरकासुर ) (सभा० ३८। खीरका दान करनेसे पितरोंकी तृप्ति होती है ( अनु० २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८०४-८०७)। ८८ । ७ अनु० १२६ । ३५-३७) । मघा नक्षत्रमें भ्रमर-सौवीरदेशका एक राजकुमार, जो जयद्रथके रथके हाथीके शरीरकी छाया में बैठकर उसके कानसे हवा लेते पीछे हाथमें ध्वजा लेकर चलता था। द्रौपदीहरणके समय हुए चावलकी खीर या लौहशाकका पितरोंके लिये दान जयद्रथके साथ गया था (वन० २६५ । १०.११)। करनेसे पितर संतुष्ट होते हैं (अनु० ८८1८)। मघामें अर्जुनद्वारा इसका वध हुआ (वन० २.१ ।२७)। श्राद्ध एवं पिण्डदान करनेवाला मनुष्य अपने कुटुम्बीजनोंमें श्रेष्ठ होता है (अनु. ८५ । ५)। चान्द्रव्रतके समय मघाकी चन्द्रमाके नासिका स्थानपर भावना करनी चाहिये मकरी-भारतवर्षकी एक प्रधान नदी, जिसका जल यहाँके । (अनु. ११०।८)। निवासी पीते हैं (भीष्म० ९ । २३)। मङ्कणक-एक प्राचीन ऋषि, जो वायुदेवद्वारा सुकन्याके गर्भसे मगध-एक प्राचीन देश । बिहार प्रान्तका दक्षिणी भाग उत्पन्न हुए थे (शल्य०३८ । ५९)। सप्तसारस्वतइसकी राजधानी गिरिव्रज ( आधुनिक राजगृह ) थी तीर्थमें इन्हें सिद्धि प्राप्त हुई थी। एक बार इनके हाथमें ( सभा० २१ । २-३) । किसी समय बृहद्रथ मगध कुश गड़ जानेसे घाव हो गया, जिससे शाकका रस चूने देशके राजा थे (आदि. ६३।३०)। कालेयोंमें जो लगा । उसे देखकर हर्षके मारे ये नृत्य करने लगे महान् श्रेष्ठ असुर था, बही मगध देशमें जयत्सेन नामका (वन० ८३ । ११५-११७) । महादेवजीका इनके राजा हुआ था (आदि० ६७ । १८)। इस देशपर पास आगमन तथा नृत्यका कारण पूछना (वन० ८३ । पाण्डुने आक्रमण करके वहाँके राजा दीर्घ' का वध किया १२०-१२१)। इनका महादेवजीसे अपने हर्षका कारण था ( आदि. ११२ । २६-२७ )। इस देशमें राजा बताना ( वन० ८३ । १२२-१२३)। महादेवजीके बृहद्रथने जरा राक्षसी (गृहदेवी) के लिये महान् उत्सव हाथसे झरती हुई भस्मको देखकर इनका लजित होकर मनानेकी आज्ञा जारी की थी (सभा० १८ । १०)। उनके चरणोंमें गिरना और महादेवजीकी स्तुति करना महाभारतकालमें जरासंध मगध देशका राजा था, जिसे (वन० ८३ । १२४-१३१)। इन्हें शिव जीसे वरदान भगवान् श्रीकृष्णने युक्तिपूर्वक भीमसेनद्वारा मरवा डाला प्राप्त होना (वन० ८३ । १३२-१३४)। इनके वीर्यसे ( सभा० २४ । ७ के बाद दा० पाठ ) । जरासंधके सात पुत्रोंकी उत्पत्ति हुई थी, जो सब-के-सब ऋषि हुए। मरने के बाद उसके पुत्र सहदेवको भगवान् श्रीकृष्णने उनके नाम हैं-बायुवेग, वायुबल, वायुहा, वायुमण्डल, मगध देशके राज्यपर अभिषिक्त कर दिया (सभा० वायुज्वाल, वायुरेता और वायुचक्र (शल्य० ३८ । ३४२४ । ४३)। इस देशको पूर्व दिग्विजयके समय भीम- ३८)। इनके चरित्रका विशेषरूपसे वर्णन (शल्य. सेनने अपने वशमें कर लिया था ( सभा० ३० । १६- ३८। ३८-५८)। १८) । यहाँके राजा भी युधिष्ठिरके राजसूय-यज्ञमें भेंट मङ्कि-एक प्राचीन मुनि (शान्ति. १७७ । ४)। ऊँटलेकर आये थे (सभा० ५२।१८) । यहाँके राजा द्वारा इनके बछड़ोंका अपहरण हो जानेपर इन्होंने तृष्णा तथा निवासी महाभारत-युद्धमें युधिष्ठिरके पक्षमें आये थे और कामनाकी गहरी आलोचना की, जो मङ्कि-गीताके ( उद्योग० ५३ । २)। इस देशकी गणना भारतके नामसे प्रसिद्ध है (शान्ति. १७७ । ९-५२)। अन्तमें प्रमुख जनपदोंमें है (भीष्म०९ । ५०)। ये धन-भोगोंसे विरक्त होकर परमानन्दस्वरूप परब्रह्मको मघा-(१) एक तीर्थ, यहाँ जानेसे अग्निष्टोम और अति प्राप्त हो गये (शान्ति. १७७ । ५३-५४)। रात्र यज्ञोंका फल मिलता है (वन०८४ । ५.)। मङ्ग-शाकद्वीपका एक जनपद, जिसमें अधिकतर कर्तव्य(२) सत्ताईस नक्षत्रोंमें एक नक्षत्रका नाम । जब पालनमें तत्पर रहनेवाले ब्राह्मण निवास करते हैं (भीष्म मङ्गलग्रह वक्र होकर मघा नक्षत्रपर आता है, तब अमङ्गलका सूचक होता है (भीष्म०३।१४)। ११।३६)। मषा नक्षत्रपर चन्द्रमाकी स्थिति होनेसे अपशकुन समझना मचक्रुक-समन्तपश्चक एवं कुरुक्षेत्रकी सीमाका निर्धारण चाहिये (भीष्म० १७।२)। जो मनुष्य मघा नक्षत्र में करनेवाला एक स्थान, जहाँ मचक्रुक नामके यक्ष द्वारपालतिलसे भरे हुए वर्धमान पात्रोंका दान करता है, वह इस रूपमें निवास करते हैं। इन यक्षको नमस्कार करनेमात्रसे लोकमे पुत्रों और पशुओंसे सम्पन्न हो परलोकमें आनन्दका सहस्र गोदानका फल प्राप्त होता है (धन.८३ । ९० भागी होता है (अनु० ६४ । १२)। आश्विन मासके शल्य. ५३ । २४)। कृष्णपक्षमें मघा और त्रयोदशीका संयोग होनेपर घृतमिश्रित मजान-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य०४५। ७.)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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