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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भीमसेन www.kobatirth.org ( २३३ ) आश्व० ( शल्य० ५९ । ४ - १२ ) । युधिष्ठिर के साथ विजय सूचक वार्तालाप करना ( शल्य० ६० । ४३-४६ ) । दुर्योधनको गिरानेके पश्चात् पाण्डवसैनिकोंद्वारा इनकी प्रशंसा ( शल्य० ६१ । ७-१६ ) । अश्वत्थामा को मारने के लिये इनका प्रस्थान करना ( सौप्तिक ० ११ । २८ - ३८ )। गङ्गातटपर व्यासजीके पास बैठे हुए अश्वत्थामाको ललकारना (सौप्तिक ० १३ । १६-१७ ) । अश्वत्थामाकी मणि द्रौपदी को देकर उसे शान्त करना ( सौप्तिक ० १६ । २६-३३) । अपनी सफाई देते हुए गान्धारीसे क्षमा माँगना ( स्त्री० १५ । २ - ११११५-२० ) । संन्यासका विरोध करके कर्तव्यपालनपर जोर देते हुए युधिष्ठिरको समझाना ( शान्ति० १० अध्याय ) । भीमसेनका भुक्त दुःखोंकी स्मृति कराते हुए मोह छोड़कर मनको काबूमें करके राज्यशासन और यज्ञके लिये युधिष्ठिर को प्रेरित करना ( शान्ति ० १६ अध्याय ) | युधिष्ठिर द्वारा युवराजपद पर इनकी नियुक्ति ( शान्ति० ४१ । ९ ) । युधिष्ठिरद्वारा इन्हें दुर्योधनका महल रहनेके लिये दिया गया ( शान्ति ० ४४ । ६-७ ) । युधिष्ठिरके पूछनेपर भीमसेनका त्रिवर्ग में कामकी प्रधानता बताना ( शान्ति० १६७ । २९ - ४० ) । युधिष्ठिरके पूछनेपर शंकरजीको आराधनाद्वारा मरुत्तके छोड़े हुए धनको लानेकी ही सलाह देना ६३ । ११-१५ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । व्यासजीकी आशासे राज्य और नगरकी रक्षाके लिये नकुलसहित भीमसेनकी नियुक्ति ( आश्व० ७२ । १९ ) । युधिष्ठिरकी आशा से भीमसेनका ब्राह्मणोंके साथ जाकर यज्ञभूमिको नपवाना और वहाँ यज्ञमण्डप, सैकड़ों निवासस्थान तथा ब्राह्मणोंके ठहरनेके लिये उत्तम भवनों का शिल्पशास्त्र के अनुस्पर निर्माण कराना, साथ ही राजाओंको निमन्त्रित करने के लिये दूत भेजना ( आश्व० ८५ । ७-१७)। युधिष्ठिर का भीमसेनको समागत राजाओं की पूजा करनेका आदेश (आश्व० ८६ । १-३ ) । बभ्रुवाहनका इनके चरणोंमें प्रणाम करना और भीमसेनका उसे सत्कारपूर्वक प्रचुर धन देना ( अश्व ० ८८ । ६-११ ) । भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारका जाते समय भीमसेनका उनके रथपर चढ़कर उनके ऊपर छत्र लगाना ( आश्व० ९२ के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ ६३८२ ) । भीमसेनका राजा धृतराष्ट्र के प्रति अमर्ष और दुर्भाव, अपने कृतश पुरुषोंद्वारा धृतराष्ट्रकी आशाको भंग कराना, उन्हें सुनाकर दुर्योधन और दुःशासन आदिका दमन करनेवाली अपनी चन्दनचर्चित भुजाओं के बलकी प्रशंसा करना तथा धृतराष्ट्र और गान्धारीके मनमें उद्वेग पैदा करना ( आश्रम ० ३ । ३ -१३ ) । धृतराष्ट्र के द्वारा श्राद्धके लिये धन माँगे जानेपर भीमसेनद्वारा विरोध (आश्रम० ११ । ७-२४ ) । म० ना० ३० भीष्म अर्जुनका भीमसेनको समझाना ( आश्रम ० १२ । १-२ )। वनमें जाते समय कुन्तीका युधिष्ठिरको भीमसेन आदिके साथ संतोषजनक बर्ताव करनेका आदेश देना ( आश्रम० १६ । १५ ) । भीमसेनका गजराजकी सेनाके साथ गजारूढ़ हो धृतराष्ट्र और कुन्ती आदिसे मिलनेके लिये भाइयोंसहित वनको जाना ( आश्रम ० २३ । ९ ) । भीमसेन आदिको आया देख कुन्तीका उतावलीके साथ आगे बढ़ना ( आश्रम २४ । ११ ) । संजयका ऋषियोंसे भीमसेन और उनकी पत्नी का परिचय देना (आश्रम ० २५ | ६, १२) । भीमसेनका अपने भाइयोंसे महाप्रस्थानका निश्चय करके जाने के लिये अपने आभूषण उतारना और उनके साथ महाप्रस्थान करना ( महाप्रस्थान० १।२० -- २५ ) । मार्ग में द्रौपदी, सहदेव, नकुल और अर्जुनके क्रमशः गिरनेपर इनका युधिष्ठिरसे कारण पूछना; फिर इनका स्वयं भी गिरना और युधिष्ठिर से अपने पतनका कारण पूछना ( महाप्रस्थान० २ अध्याय ) । स्वर्ग में इनका मरुद्गणोंसे घिरकर वायुदेवके पास विराजमान दिखायी देना ( स्वर्गा० ४। ७-८ )। 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाभारतमें आये हुए भीमसेनके नाम-अच्युतानुज, अनिलात्मज, अर्जुनाग्रज, अर्जुनपूर्वज, बल्लव, भीमधन्वा, जय, कौन्तेय, कौरव, कुरुशार्दूल, मारुतात्मज, मारुति, पाण्डव, पार्थ, पवनात्मज, प्रभञ्जनसुत, राक्षसकण्टकः समीरणसुत, वायुपुत्र, वायुसुत, वृकोदर आदि । ( ५ ) ये काशी के राजा दिवोदास के पिता थे (उद्योग ० ११७ । १ ) । भीष्म- ये शान्तनुद्वारा गङ्गा के गर्भसे आठवें वसु के अंश से उत्पन्न हुए थे। इनका नाम देवव्रत था ( आदि० ६३ । ९१६ आदि० ९५ । ४७; आदि० १०० | २१ ) इनके द्वारा बचपन में ही गङ्गाकी धाराका अवरोध करके अस्त्रविद्याका अभ्यास करना ( आदि० १०० । २६ ) । गङ्गाद्वारा शान्तनुको इनका परिचय देना एवं प्रशंसा करना ( आदि० १०० । ३३ – ० ) । इनका युवराजपद पर अभिषेक ( आदि० १०० । ४३ ) । पिताको दुखी देखकर उनके लिये दाशराजसे सत्यवतीकी याचना करना ( आदि० १०० । ७५ ) । पिता के मनोरथकी पूर्तिके लिये 'सत्यवतीकुमार ही राजा होगा' इस प्रकारकी इनकी दुष्कर प्रतिज्ञा ( आदि० १०० । ८७ ) । समस्त देवताओं तथा ऋषियोंकी साक्षी देते हुए इनकी आजीवन अखण्ड ब्रह्मचारी रहनेकी भीषण प्रतिज्ञा ( आदि० १०० । ९४ - ९६ ) । इनके ऊपर देवताओंद्वारा पुष्पवर्षा और इनका 'भीष्म' नाम रखा जाना ( आदि० १०० । ९८ ) । पिताद्वारा इनको स्वच्छन्द - मृत्युका वरदान ( आदि० १०० १०२ ) । इनके द्वारा For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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