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भीमसेन
( २३२ )
भीमसेन
कहना (द्रोण० १४८ ॥३-६)। इनके द्वारा घुसे और थप्पड़से कलिंगराजकुमारका वध ( द्रोण. १५५ । २४)। इनके द्वारा घूसे और थप्पड़से ध्रुवका वध (द्रोण. १५५ । २७) । इनके द्वारा से और थप्पड़से जयरातका वध (द्रोण० १५५ । २८ )। इनके द्वारा घूसे और थप्पड़से दुर्मद (दुर्धर्ष) और दुष्कर्णका वध ( द्रोण० १५५ । ४० )। इनके परिपके प्रहारसे सोमदत्तका मञ्छित होना (द्रोण. १५. । १०-११)। इनके द्वारा बाहीकका वध (द्रोण० १५७ । ११-१५)। इनके द्वारा नागदत्त, दृढरथ (दृढाश्व ), महाबाहुः अयोभुज ( अयोबाहु), दृढ ( दृढक्षत्र ), सुहस्त, विरजा, प्रमाथी, उग्र (उग्रश्रवा ) और अनुयायी ( अग्रयायी ) का वध (द्रोण. १५७ । १६-१९)। इनके द्वारा शतचन्द्रका वध (द्रोण० १५७ । २३ )। इनके द्वारा शकुनिके भाई गवाक्ष, शरभ, विभु, सुभग और भानुदत्तका वध (द्रोण. १५७ । २३-२६) । इनका द्रोणाचार्यके साथ युद्ध करते समय कौरवसेनाको खदेड़ना (द्रोण. १६१ अध्याय )। दुर्योधनके साथ इनका युद्ध और उसे पराजित करना (द्रोण. १६६ । ४३-५८)। अलायुधके साथ इनका घोर संग्राम (द्रोण १७७ अध्याय ) । इनके द्वारा अर्जुनको प्रोत्साहन-प्रदान (द्रोण. १८५। ९-११)। धृष्टद्युम्नको उपालम्म देना (द्रोण. १८६ । ५१-५४) । कर्णके साथ युद्ध- में उससे पराजित होना (द्रोण. १८८।१०-२२)। कर्णके साथ इनका युद्ध (द्रोण. १८९ । ५०५५) । अश्वत्थामा नामक हाथीको मारकर द्रोणाचार्यको अश्वत्थामाके मारे जानेकी झूठी खबर सुनाना (द्रोण. १९० । १५-१६)। द्रोणाचार्यको उपालम्भ देते हुए अश्वत्थामाकी मृत्यु बताना(द्रोण. १९२॥३७-४२)। अर्जुनसे अपना वीरोचित उद्गार प्रकट करना (दोण. १९७ । ३-२२)। धृष्टद्युम्नसे बाग्बार्णोद्वारा लड़ते हुए सात्यकिको पकड़कर शान्त करना ( द्रोण. १९८ । ५०-५२)।इनका वीरोचित उदगार और नारायणास्त्रके विरुद्ध संग्राम करना (द्रोण. १९९ । ४५-६३)। अश्वत्थामाके साथ इनका घोर युद्ध और सारथिके । मारे जानेपर युद्धसे हट जाना (द्रोण. २००। ८७१२८)। इनके द्वारा कुलूतनरेश क्षेमधूर्तिका वध (कर्ण० १२ । २५-४४)। अश्वत्थामाके साथ इनका घोर युद्ध और उसके प्रहारसे मूच्छित होना (कर्णः १५ अध्याय ) । इनके द्वारा कर्ण-पुत्र भानुसेनका वध ( कर्ण० १८ । २७ ) । कर्णको पराजित करके उसकी जीभ काटनेको उद्यत होना
(कर्ण० ५० । ४७ के बादतक)। कर्णके साथ इनका घोर युद्ध और गजसेना, रथसेना तथा घुड़सवारोंका वध (कर्ण० ५१ अध्याय)। इनके द्वारा विवित्सु, विकट, सम, क्राथ (कथन), नन्द और उपनन्दका वध (कर्ण० ५३ । १२-१९)। इनके द्वारा कौरवसेनाका महान् संहार (कर्ण० ५६ । ७०-८१)। इनके द्वारा दुर्योधनकी पराजय और गजसेनाका संहार ( कर्ण० ६१ । ५३, ६२-७४)। युद्धका सारा भार अपने ऊपर लेकर अर्जुनको युधिष्ठिरके पास भेजना ( कर्णः ६५ । १०)। अपने सारथि विशोकके साथ इनका वार्तालाप ( कर्ण० ७६ अध्याय) । इनके द्वारा कौरवसेनाका भीषण संहार और शकुनिकी पराजय (कर्ण. ७७ । २४-७०, कर्ण०८१।२४-३५)। दुःशासनके साथ इनका घोर युद्ध (कर्ण० ८२ । ३३ से कर्ण. ८३ । १० तक)। दुःशासनका वध करके उसका रक्त पान करना (कर्ण० ८३ । २८-२९) । इनके द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों (निषङ्गी, कवची पाशी, दण्डधार, धनुग्रह, अलोलुप, शल, संध ( सत्यसंध ), वातवेग और सुवर्चा ) का वध (कर्ण० ८४ । २-६)। कर्णवधके लिये अर्जुनको प्रोत्साहन देना (कर्ण० ८९।३७-४२)। इनके द्वारा पचीस हजार पैदल सेनाका वध(कर्ण० ९३।२८)। इनके द्वारा कृतवर्माकी पराजय ( शल्य०११ । ४५४७)। इनका शल्यको पराजित करना ( शल्य. ११।६१-६२ )। शल्यके साथ इनका गदायुद्ध (शल्य० १२ । १२-२७)। शल्यके साथ इनका घोर युद्ध (शल्य०१३ अध्याय; शल्य०१५।१६-२७)। इनके द्वारा दुर्योधनकी पराजय (शल्य. १६ । ४२-४४)। इनके द्वारा शल्यके सारथि और घोड़ोंका वध (शल्य. १७ । २७)। इनके द्वारा इक्कीस हजार पैदल सेनाका वध (शल्य. १९। ४९-५०)। इनके द्वारा गजसेनाका संहार (शल्य. २५। ३०-३६)। इनके द्वारा धृतराष्ट्रके ग्यारह पुत्रों (दुर्मर्षण, श्रुतान्त (चित्राङ्ग), जैत्र, भूरिबल ( भीमबल), रवि, जयत्सेन, सुजात, दुर्विषह (दुर्विषाह), दुर्विमोचन: दुष्प्रधर्ष (दुष्प्रधर्षण), श्रुतर्वा) का वध(शल्य०२६ । ४-३२) धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शनका इनके द्वारा वध (शल्य. २७ । ४९-५०) गदायुद्धके प्रारम्भमें दुर्योधनको चेतावनी देना (शल्य० ३३ । ४३५)। इनका युधिष्ठिरसे अपना उत्साह प्रकट करना (शल्य. ५६ । १६-२७)। दुर्योधनको चेतावनी देना (शल्य. ५६ । २९-३६) । दुर्योधनके साथ भयंकर गदायुद्ध (शल्य. ५७ अध्याय)। गदाप्रहारसे दुर्योधनकी जाँघ तोड़ देना (शल्य० ५८। ४७)। इनके द्वारा दुर्योधनका तिरस्कार करके उसके मस्तकको पैरसे ठुकराना
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