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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीमसेन ( २३२ ) भीमसेन कहना (द्रोण० १४८ ॥३-६)। इनके द्वारा घुसे और थप्पड़से कलिंगराजकुमारका वध ( द्रोण. १५५ । २४)। इनके द्वारा घूसे और थप्पड़से ध्रुवका वध (द्रोण. १५५ । २७) । इनके द्वारा से और थप्पड़से जयरातका वध (द्रोण० १५५ । २८ )। इनके द्वारा घूसे और थप्पड़से दुर्मद (दुर्धर्ष) और दुष्कर्णका वध ( द्रोण० १५५ । ४० )। इनके परिपके प्रहारसे सोमदत्तका मञ्छित होना (द्रोण. १५. । १०-११)। इनके द्वारा बाहीकका वध (द्रोण० १५७ । ११-१५)। इनके द्वारा नागदत्त, दृढरथ (दृढाश्व ), महाबाहुः अयोभुज ( अयोबाहु), दृढ ( दृढक्षत्र ), सुहस्त, विरजा, प्रमाथी, उग्र (उग्रश्रवा ) और अनुयायी ( अग्रयायी ) का वध (द्रोण. १५७ । १६-१९)। इनके द्वारा शतचन्द्रका वध (द्रोण० १५७ । २३ )। इनके द्वारा शकुनिके भाई गवाक्ष, शरभ, विभु, सुभग और भानुदत्तका वध (द्रोण. १५७ । २३-२६) । इनका द्रोणाचार्यके साथ युद्ध करते समय कौरवसेनाको खदेड़ना (द्रोण. १६१ अध्याय )। दुर्योधनके साथ इनका युद्ध और उसे पराजित करना (द्रोण. १६६ । ४३-५८)। अलायुधके साथ इनका घोर संग्राम (द्रोण १७७ अध्याय ) । इनके द्वारा अर्जुनको प्रोत्साहन-प्रदान (द्रोण. १८५। ९-११)। धृष्टद्युम्नको उपालम्म देना (द्रोण. १८६ । ५१-५४) । कर्णके साथ युद्ध- में उससे पराजित होना (द्रोण. १८८।१०-२२)। कर्णके साथ इनका युद्ध (द्रोण. १८९ । ५०५५) । अश्वत्थामा नामक हाथीको मारकर द्रोणाचार्यको अश्वत्थामाके मारे जानेकी झूठी खबर सुनाना (द्रोण. १९० । १५-१६)। द्रोणाचार्यको उपालम्भ देते हुए अश्वत्थामाकी मृत्यु बताना(द्रोण. १९२॥३७-४२)। अर्जुनसे अपना वीरोचित उद्गार प्रकट करना (दोण. १९७ । ३-२२)। धृष्टद्युम्नसे बाग्बार्णोद्वारा लड़ते हुए सात्यकिको पकड़कर शान्त करना ( द्रोण. १९८ । ५०-५२)।इनका वीरोचित उदगार और नारायणास्त्रके विरुद्ध संग्राम करना (द्रोण. १९९ । ४५-६३)। अश्वत्थामाके साथ इनका घोर युद्ध और सारथिके । मारे जानेपर युद्धसे हट जाना (द्रोण. २००। ८७१२८)। इनके द्वारा कुलूतनरेश क्षेमधूर्तिका वध (कर्ण० १२ । २५-४४)। अश्वत्थामाके साथ इनका घोर युद्ध और उसके प्रहारसे मूच्छित होना (कर्णः १५ अध्याय ) । इनके द्वारा कर्ण-पुत्र भानुसेनका वध ( कर्ण० १८ । २७ ) । कर्णको पराजित करके उसकी जीभ काटनेको उद्यत होना (कर्ण० ५० । ४७ के बादतक)। कर्णके साथ इनका घोर युद्ध और गजसेना, रथसेना तथा घुड़सवारोंका वध (कर्ण० ५१ अध्याय)। इनके द्वारा विवित्सु, विकट, सम, क्राथ (कथन), नन्द और उपनन्दका वध (कर्ण० ५३ । १२-१९)। इनके द्वारा कौरवसेनाका महान् संहार (कर्ण० ५६ । ७०-८१)। इनके द्वारा दुर्योधनकी पराजय और गजसेनाका संहार ( कर्ण० ६१ । ५३, ६२-७४)। युद्धका सारा भार अपने ऊपर लेकर अर्जुनको युधिष्ठिरके पास भेजना ( कर्णः ६५ । १०)। अपने सारथि विशोकके साथ इनका वार्तालाप ( कर्ण० ७६ अध्याय) । इनके द्वारा कौरवसेनाका भीषण संहार और शकुनिकी पराजय (कर्ण. ७७ । २४-७०, कर्ण०८१।२४-३५)। दुःशासनके साथ इनका घोर युद्ध (कर्ण० ८२ । ३३ से कर्ण. ८३ । १० तक)। दुःशासनका वध करके उसका रक्त पान करना (कर्ण० ८३ । २८-२९) । इनके द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों (निषङ्गी, कवची पाशी, दण्डधार, धनुग्रह, अलोलुप, शल, संध ( सत्यसंध ), वातवेग और सुवर्चा ) का वध (कर्ण० ८४ । २-६)। कर्णवधके लिये अर्जुनको प्रोत्साहन देना (कर्ण० ८९।३७-४२)। इनके द्वारा पचीस हजार पैदल सेनाका वध(कर्ण० ९३।२८)। इनके द्वारा कृतवर्माकी पराजय ( शल्य०११ । ४५४७)। इनका शल्यको पराजित करना ( शल्य. ११।६१-६२ )। शल्यके साथ इनका गदायुद्ध (शल्य० १२ । १२-२७)। शल्यके साथ इनका घोर युद्ध (शल्य०१३ अध्याय; शल्य०१५।१६-२७)। इनके द्वारा दुर्योधनकी पराजय (शल्य. १६ । ४२-४४)। इनके द्वारा शल्यके सारथि और घोड़ोंका वध (शल्य. १७ । २७)। इनके द्वारा इक्कीस हजार पैदल सेनाका वध (शल्य. १९। ४९-५०)। इनके द्वारा गजसेनाका संहार (शल्य. २५। ३०-३६)। इनके द्वारा धृतराष्ट्रके ग्यारह पुत्रों (दुर्मर्षण, श्रुतान्त (चित्राङ्ग), जैत्र, भूरिबल ( भीमबल), रवि, जयत्सेन, सुजात, दुर्विषह (दुर्विषाह), दुर्विमोचन: दुष्प्रधर्ष (दुष्प्रधर्षण), श्रुतर्वा) का वध(शल्य०२६ । ४-३२) धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शनका इनके द्वारा वध (शल्य. २७ । ४९-५०) गदायुद्धके प्रारम्भमें दुर्योधनको चेतावनी देना (शल्य० ३३ । ४३५)। इनका युधिष्ठिरसे अपना उत्साह प्रकट करना (शल्य. ५६ । १६-२७)। दुर्योधनको चेतावनी देना (शल्य. ५६ । २९-३६) । दुर्योधनके साथ भयंकर गदायुद्ध (शल्य. ५७ अध्याय)। गदाप्रहारसे दुर्योधनकी जाँघ तोड़ देना (शल्य० ५८। ४७)। इनके द्वारा दुर्योधनका तिरस्कार करके उसके मस्तकको पैरसे ठुकराना For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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