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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीष्म ( २३४ ) भीष्म चित्राङ्गदका अन्त्येष्टि-संस्कार कराना (आदि. १०१। १.)। स्वयंवरमें आये हुए शाल्व आदि विभिन्न राजाओंको जीतकर इनका काशिराजकी कन्याओंका विचित्रवीर्यके लिये अपहरण करना ( आदि. १०२ । ११-५८)। इनके द्वारा अष्टविध विवाहोंके स्वरूपका वर्णन (आदि० १०२ । १२-१५) । विचित्रवीर्यका अन्त्येष्टि-संस्कार कराना (आदि. १०२ । ७३)। सत्यवतीका इनसे राज्यासनपर आरूढ़ होने, वंशरक्षाके लिये अम्बिका आदिके गर्भसे पुत्रोत्पादन करने एवं विवाहके लिये अनुरोध करना (आदि० १०३ । १०. १)। किसी भी परिस्थितिमें किसी भी मूल्यपर सत्यको न छोड़ने तथा स्त्री-सहवास न करनेकी इनकी घोषणा (आदि. १०३ । १२--१८)। विचित्रवीर्यके क्षेत्र ( पत्नियों) से ब्राह्मणद्वारा संतानोत्पत्ति के लिये सत्यवतीको परामर्श देना (आदि. १०४ । १२)। इनके प्रति सत्यवतीकी ( व्यास-जन्मसम्बन्धी ) आत्मकथा ( आदि. १०४ । ५-१६)। विचित्रवीर्यकी स्त्रियोंसे व्यासद्वारा संतानोत्पत्तिके लिये इनको सत्यवतीकी सलाह ( आदि. १०४ । १८-१९)। इनके द्वारा सत्यवतीके इस प्रस्तावका अनुमोदन (आदि. १०४ । २२-२३)। धृतराष्ट्र के प्रति गान्धारीको समर्पित करनेके लिये इनका सुबलके पास दूत भेजना (आदि. १०९।११)। मद्रराजके नगरमें जाकर इनका शल्यसे पाण्डुके लिये माद्रीकी याचना करना (आदि. ११२।२--७)। मद्रराजद्वारा इनसे शुल्क लेकर माद्रीको पाण्डुके लिये समर्पण करना (आदि. ११२ । १४-१६) । इनके द्वारा राजा देवककी कन्याको लाकर विदुरका विवाह सम्पन्न कराना (आदि. ११३ । १२-१३)। शतशृङ्गनिवासी ऋषियोद्वारा इनको पाण्डुके परलोकवासी तथा माद्रीके सती होनेका समाचार बताकर पाण्डवोंके जन्मका वृत्तान्त सुनाना ( आदि. १२५। २२--३३)।.पाण्डुके निधनपर इनका शोक प्रकट करना तथा उन्हें जलाञ्जलि देना (आदि० १२६ । २७-२८)। इनके द्वारा पाण्डुका श्राद्ध सम्पन्न होना ( आदि. १२७ । १)। राजकुमारोंकी शिक्षाके लिये सुयोग्य आचार्यकी खोज करना (आदि. १२९ । २४२६)। राजकुमारोंकी शिक्षाके लिये इनका द्रोणाचार्यको अपने यहाँ सम्मानपूर्वक रखना (आदि० १३० । ७०- ७९) । पाण्डवोंके जतुगृहमें जलनेका समाचार सुनकर इनका विलाप करना और पाण्डवोंको जलाञ्जलि देनेके लिये उद्यत हुए भीष्मको विदुरका उनके जीवित रहनेका रहस्य बतलाकर आश्वासन देना तथा जलाञ्जलिका निषेध करना (आदि० १४९ । १८ के बाद दा० पाठ)। भीष्मकी दुर्योधनसे पाण्डवोको आधा राज्य देनेकी सलाह (आदि.२०२ अध्याय)। इनका युधिष्ठिरके राजसूययज्ञमें पधारना (सभा० ३४ । ५) । कौन काम हुआ और कौन नहीं हुआ-इसकी देख-रेखके लिये युधिष्ठिरद्वारा इनकी नियुक्ति (सभा० ३५ । ६)। राजसूय-यज्ञमें श्रीकृष्णकी अग्रपूजाके लिये इनका युधिष्ठिरको आदेश देना (सभा० ३६ । २८-२९)। इनके द्वारा शिशुपालके आक्षेपोका खण्डन करते हुए श्रीकृष्णकी महिमाका विस्तारपूर्वक वर्णन (सभा० ३८ अध्याय)। शिशुपालके द्वारा उपद्रव मचानेपर चिन्तित हुए युधिष्ठिरको इनका आश्वासन (सभा०४० अध्याय)। शिशुपालद्वारा इनकी निन्दा ( समा० ४१ अध्याय )। इनका शिशुपालको मारनेसे भीमसेनको रोकना (सभा० ४२ । १३)। इनके द्वारा शिशुपालके जन्मका वृत्तान्त सुनाना (सभा० ४३ अध्याय) । इन्हें शिशुपालकी फटकार (सभा० ४४।६-३२)। शिशुशलके वचनोंका उत्तर देना (सभा० ४४ । ३४)। श्रीकृष्णके साथ युद्ध करनेके लिये समस्त नरेशोंको इनकी चुनौती (सभा० ४४ । ४१-४२) । इनके द्वारा द्रौपदीके वचनोंका उत्तर दिया जाना (सभा० ६९।१४-२१)। इनका पुलस्त्यजीसे तीर्थयात्राके विषयमें प्रश्न करना (वन. ८२।४-७) । दुर्योधनको समझाते हुए पाण्डवोंसे संधि करनेके लिये कहना (वन० २५३ । ४-१०)। युधिष्ठिरकी महिमा बताते हुए पाण्डवोंके अन्वेषणके लिये इनकी सम्मति ( विराट० २८ अध्याय ) । कर्णकी बातोंसे कुपित हुई सेनामें शान्ति और एकता बनाये रखनेकी चेष्टा करना (विराट० ५१।१-१३)। पाण्डवोंके वनवास-कालकी पूर्तिके विषयमें इनका निर्णय ( विराट. ५२।१-४)। दुयोधनको हस्तिनापुरकी ओर भेजकर सेनाको व्यूहबद्ध करना (विराट० ५२ । १६--२३)। अर्जुनके साथ इनका अद्भुत युद्ध और मूच्छित होनेपर सारथिद्वारा रणभूमिसे हटाया जाना (विराट. ६४ अध्याय )। दुर्योधनको सेनासहित हस्तिनापुर लौट चलनेकी सलाह देना (विराट०६६ । २१-२२) ।इनके द्वारा द्रुपदके पुरोहितकी बातोका समर्थन हुए अर्जुनकी प्रशंसा करना ( उद्योग० २१ । १६. १७)। दुर्योधनको समझाते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुनकी महिमा बताना (उद्योग० ४९ । २-२८)। इनके द्वारा कर्णका उपहास किया जाना (उद्योग० ४९ । ३४४२) । इनका कर्णपर आक्षेप करना (उद्योग० ६२ । ७-११)। श्रीकृष्णको कैद करने के सम्बन्धमें दुर्योधनकी बात सुनकर कुपित हो सभासे उठ जाना (उद्योग. ८८।१९-२३) । दुर्योधनको पाण्डवोंसे संधि कर For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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