SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीमसेन ( २३० ) भीमसेन मारनेके लिये उद्यत होना ( सभा० ७२ । १०-११)। दुःशासनके उपहास करनेपर उसे मारनेके लिये इनकी प्रतिज्ञा (सभा० ७७ । १६-१८)। दुःशासनका रक्त पीने तथा धृतराष्ट्र के सभी पुत्रोंका वध करनेके लिये इनकी प्रतिशा ( सभा० ७७ । २०-२२)। दुर्योधनको मारनेके लिये प्रतिज्ञा करना (सभा०७७ । २६-२८)। इनका अपनी भुजाओंकी ओर देखते हुए वन-गमन करना (सभा० ८०। ४)। किर्मीरके साथ इनका युद्ध तथा इनके द्वारा उसका वध (वन ११।२८-६७)। इनका पुरुषार्थकी प्रशंसा करते हुए युधिष्ठिरसे युद्ध छेड़नेके लिये अनुरोध (बन० ३३ अध्याय)। इनका युधिष्ठिरको युद्ध करनेके लिये उत्साहित करना (वन ३५ अध्याय)। इनकी अर्जुनके लिये चिन्ता (वन ८०।१७-२१)। इनका गन्धमादन पर्वतपर चढ़नेका उत्साह प्रकट करना ( वन. १४०।९-१७)। गन्धमादनकी यात्रामें इनके द्वारा घटोत्कचका स्मरण किया जाना (वन० १४४ । २५)। इनका सौगन्धिक पुष्पके लानेके लिये प्रस्थान करना (वन० १४६।९)। कदलीवनमें इनकी हनुमानजीसे भेंट (बन. ११६ । ८६)। इनका हनुमानजीके साथ संवाद (वन. अध्याय १४७ से १५० तक)। इन्हें हनुमान्जीका आश्वासन (वन० १५१।१६-१९)। भीमसेनका सौगन्धिक. वनमें पहुँचना (वन० १५२ अध्याय)। इनका सौगन्धिक सरोवरके पास पहुँचना (वन० १५३। १०)। इनका क्रोधवश नामक राक्षसोंके साथ युद्ध और उन्हें पराजित करके सौगन्धिक पुष्प तोड़ना (वन० १५४ । १८-२३)। जटासुरके साथ इनका युद्ध तथा इनके द्वारा उसका वध (वन० १५७ । ५६-७०)। हिमालयके शिखरपर यक्षों और राक्षसोंके साथ इनका युद्ध तथा इनके द्वारा राक्षसराज मणिमान्का वध (वन० १६० । ४९-७७)। इनका गन्धमादनसे प्रस्थान करनेके लिये युधिष्ठिरसे वार्तालाप (बन० १७६ । ७१६)। अजगरद्वारा इनका पकड़ा जाना (बन. १७८ । २८)। अजगरद्वारा पकड़े जानेपर उससे संवादरूपमें इनका विलाप करना (वन. १७९ । २५३८ )। अजगररूपधारी नहुषके चंगुलसे इनका छुटकारा पाना (वन. १८१। १३) चित्रसेनद्वारा दुर्योधनके पकड़े जानेपर इनकी कटु-उक्ति (वन०२४२। १५-२१)। इनके द्वारा कोटिकास्यका वध (वन० २७१।२६)। जयद्रथको पकड़ उसके बाल काटकर पाँच चोटियाँ रखना और महाराज युधिष्ठिरका दास घोषित करना (वन० २७२ । ३-1)। द्वैतवनमें जल लानेके लिये जाना और सरोवरपर मूञ्छित होना (धन. ३१२ । ३३-४०)। अज्ञातवासके लिये चिन्तित हुए युधिष्ठिरको उत्साहित करना (बन० ३१५ । २४-२६)। विराटनगरमें बल्लव नामसे रहनेकी बात बताना (विराट० २.)। राजा विराटसे अपने यहाँ रखनेके लिये प्रार्थना करना (विराट० ८।७)। जीमूत नामक मल्लके साथ कुश्ती लड़ना और उसका वध करना (विराट. १३। २४-३६)। द्रौपदीसे रातमें पाकशालामें आनेका कारण पूछना (विराट. १७ । १७-२१) । प्राचीन पतिव्रताओंके उदाहरणद्वारा द्रौपदीको समझाना (विराट. २१।१-१७के बादतक)। कीचकको मारनेके लिये द्रौपदीको विश्वास दिलाकर नृत्यशालामें प्रवेश करना (विराट. २२ । ३८)। कीचकके साथ इनका युद्ध और उसका वध करना (विराट० २२ । ५२--८२)। इनके द्वारा एक सौ पाँच उपकीचर्कोका वध और द्रौपदीको बन्धनमुक्त करना ( विराट. २३ । २७-२८) । युधिष्ठिरके आदेशसे सुशर्माको जीते-जी पकड़ लेना (विराट० ३३ । ४८) । युधिष्ठिरके आदेशसे सुशर्माको छोड़ना और उसे विराटका दास घोषित करना (विराट ३३ । ५९ ) । संजयद्वारा इनकी वीरताका वर्णन (उद्योग० ५०। १९--२५ )। श्रीकृष्णसे इनका शान्तिविषयक प्रस्ताव करना (उद्योग० ७४ अध्याय)। अपने बलका वर्णन करते हुए श्रीकृष्णको उत्तर देना (उद्योग० ७६ अध्याय)। शिखण्डीको प्रधान सेनापति बनानेका प्रस्ताव करना ( उद्योग० १५१ । २९-३२)। उलूकसे दुर्योधनके संदेशका उत्तर देना ( उद्योग १६२ । २०-२९)। उलूकसे दुर्योधनके संदेशका उत्तर देना ( उद्योग० १६३ । ३२-३६)। कवच उतारकर पैदल ही कौरव-सेनाकी ओर जाते हुए युधिष्ठिरसे उसका कारण पूछना (भीष्मः ४३ । १७)। इनकी विकट गर्जनाका भयंकर रूप (भीष्म० ४४ । ८-१३)। प्रथम दिनके युद्धारम्भमें दुर्योधनके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म. १५ । १९-२०)। कलिंगोंके साथ युद्ध करते समय इनके द्वारा शक्रदेवका वध (भीष्म० ५४ । २५) । इनके द्वारा भानुमान्का वध ( भीष्म० ५४ । ३९)। कलिंगराज श्रुतायुके चक्ररक्षक सत्यदेव और सत्यका इनके द्वारा वध ( भीष्म० ५४ । ७६) । इनके द्वारा केतुमान्का वध (भीष्म० ५४ । ७७)। गजसेनाका संहार करके रक्तनदीका निर्माण करना (भीष्म० ५४ । १०३ ) । इनके द्वारा दुर्योधनकी पराजय (भीष्म० ५८ । १६-१९)। इनके द्वारा दुर्योधनकी गजसेनाका संहार (भीष्म० ६२ । ४९-६५)। इनका अद्भुत पराक्रम और भीष्मके साथ युद्ध (भीष्म ६३।१-२६) । धृतराष्ट्रपुत्रोंके साथ इनका युद्ध For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy