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भीमसेन
( २२९ )
भीमसेन
नागलोकमें पहुँचना और वहाँ सर्पो के डंसनेसे खाये हए भोजन-सामग्री लेकर बकासुरके पास जाना और स्वयं विषके दूर होनेपर अपना पराक्रम प्रकट करना (आदि. ही भोजन करते हुए उसे पुकारना (आदि० १६२ । १२७ । ५५-५९) । नागलोकमें इनका आर्यक नाग- ४-५)। वकासुरका आना और कुपित होकर इनके साथ द्वारा आलिङ्गन और आर्यककी प्रेरणासे प्रसन्न हुए नाग- युद्ध छेड़ना ( आदि० १६२ । ६-२८)। इनके राज वासुकिकी आज्ञासे इनके द्वारा आठ कुण्डोंका दिव्य द्वारा वकासुरका वध ( आदि० १६३।१)। इनके रसपान, जिससे इन्हें एक हजार हाथियोंके बलकी प्राप्ति द्वारा मनुष्योंकी हिंसा न करनेकी शर्तपर वकके परिवारको हुई (आदि. १२७ । ६३-७१)। आठवें दिन रसके जीवनदान देना (आदि० १६३ । २-४)। द्रौपदीके पच जानेपर इनका जागना और नागोंद्वारा इनका मङ्गला- स्वयंवरमें आये हुए राजाओंके साथ ब्राह्मणवेशमें युद्ध चारपूर्वक स्वागत-सत्कार तथा दस हजार हाथियोंके समान करते समय इनका श्रीकृष्णद्वारा बलरामजीको परिचय बलशाली होनेका वरदान देकर इन्हें पुनः ऊपर पहुँचा देना (आदि. १८८ । १४-२१)। स्वयंवरके अवसरदेना ( आदि. १२८ । २०-२८)। इनका नागलोकसे पर शल्यके साथ इनका युद्ध और इनके द्वारा शल्यकी लोटकर माताको प्रणाम करना तथा भाइयोंसे मिलना पराजय (आदि. १८९ । २३-२९) । द्रौपदीके साथ (आदि. १२८ । २९-३०)। गदायुद्ध में इनका प्रवीण इनका विधिपूर्वक विवाह (आदि० १९७ । १३)। होना (आदि० १३१ । ६१)। हस्तिनापुरकी रङ्गभूमिमें मयासुरद्वारा इनको गदाकी भेंट (सभा०३ । १८परीक्षाके समय दुर्योधनके साथ गदायुद्ध एवं अश्वत्थामा- २१)। जरासंधवधके विषयमें इनकी युधिष्ठिर और द्वारा उस युद्धका निवारण (आदि. १३४।१-५)। श्रीकृष्णके साथ बातचीत ( सभा० १५। ११-१३ के इनके द्वारा कर्णका तिरस्कार (आदि० १३६ । ६-७)। बाद दाक्षिणात्य पाठ)। जरासंधवधके लिये युधिष्ठिर कर्णका पक्ष लेकर दुर्योधनका इनपर आक्षेप करना और अर्जुनके साथ इनकी मगधयात्रा ( सभा० २० (आदि. १३६ । १०-१६) । इनके द्वारा द्रुपदकी अध्याय) । जरासंधके साथ इनका मल्लयुद्ध एवं श्रीगजसेनाका संहार ( आदि० १३७ । ३१-३५) । कृष्णका जरासंधको चीरनेके लिये इन्हें संकेत करना बलरामजीसे इनकी गदायुद्धविषयक शिक्षा ( भादि. (सभा० २३ । १० से २४ । ६ तक) । इनका १३८ । ४)। इनके द्वारा लाक्षागृहका जलाया जाना जरासंधको चीर डालना (सभा० २४ । ७)। (आदि. १४७।१०)। सुरंगसे निकल भागते समय जरासंधके पुनः जीवित हो जानेपर श्रीकृष्णद्वारा इन्हें इनके द्वारा मार्गमें थके हुए भाइयों एवं माताका परिवहन पुनः संकेतकी प्राप्ति और उस संकेतके अनुसार इनका (आदि. १४७ । २०-२१)।धरतीपर सोये हुए भाइयों जरासंधको चीरकर दो दिशाओंमें फेंक देना (सभा० एवं माताको देखकर इनका विषाद करना (आदि. २४। ७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। इनका पूर्वदिशाके १५० । २१-४१)। हिडिम्बवनमें इनका जागरण करना प्रदेशोंको जीतनेके लिये प्रस्थान और विभिन्न देशोंपर (मादि. १५०। ४४-१५)। हिडिम्बाके साथ वार्ता- विजय पाना ( सभा० २९ अध्याय )। भीमका पूर्व लाप करना (आदि. १५१ । २३-३६)। हिडिम्बासुर- दिशाके अनेक देशों और राजाओंको जीतकर भारी धनके साथ इनका युद्ध (आदि० १५२ । ३८-१५)। सम्पत्तिके साथ इन्द्रप्रस्थ लौटना ( सभा० ३० अध्याय)। इनके द्वारा हिडिम्बका वध (आदि० १५३ । ३२)।। प्रथम पूजाके अवसरपर भीष्म तथा श्रीकृष्णकी निन्दा हिडिम्बाको मारनेके लिये इनका उद्यत होना तथा करनेपर शिशुपालको मारनेके लिये इनका उद्यत होना युधिष्ठिरका इन्हें रोकना (आदि. १५४ । १-२)। और भीष्मजीका इन्हें शान्त करना (सभा०४२ हिडिम्बाको पुत्र दान करनेके लिये इन्हें माताका अध्याय)। राजसूय-यज्ञकी समाप्तिपर ये भीष्म तथा आदेश प्राप्त होना (आदि. १५४ । १८ के बाद धृतराष्ट्रको पहुँचाने गये थे ( सभा० ४५ । ४८)। दाक्षिणात्य पाठ )। हिडिम्बाके साथ इनकी शर्त दुष्ट कौरवोद्वारा भरी सभामें द्रौपदीके अपमान किये ( आदि. १५४ । २० )। हिडिम्बाके साथ जानेपर इनका कुपित होकर युधिष्ठिरकी भुजाओंको इनका विहार ( आदि. १५४ । २१-३०)। जलानेके लिये कहना (आदि० ६८।६)। इनके इनके द्वारा हिडिम्बाके गर्भसे घटोत्कचका जन्म (आदि. द्वारा दुःशासनकी छाती फाड़कर उसके रक्त पीनेकी १५४।३१)।एकचक्रामें निवास करते समय पूरी भिक्षाका भीषण प्रतिज्ञा ( सभा० ६८ । ५२-५३)। आधा भाग इनके उपभोगमें आता था ( आदि. १५६ । इनके रोषपूर्ण उद्गार (सभा०७० । १२-१७)। ६) । ब्राह्मणका उपकार करनेके लिये इन्हें माता दयोधनकी जाँघ तोड़ देनेके लिये इनकी प्रतिज्ञा (सभा. कुन्तीकी आज्ञा (आदि. १६०। २०)। इनका ७१। १४)। इनका तसभामें समस्त शत्रुओंको
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