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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीमसेन ( २२९ ) भीमसेन नागलोकमें पहुँचना और वहाँ सर्पो के डंसनेसे खाये हए भोजन-सामग्री लेकर बकासुरके पास जाना और स्वयं विषके दूर होनेपर अपना पराक्रम प्रकट करना (आदि. ही भोजन करते हुए उसे पुकारना (आदि० १६२ । १२७ । ५५-५९) । नागलोकमें इनका आर्यक नाग- ४-५)। वकासुरका आना और कुपित होकर इनके साथ द्वारा आलिङ्गन और आर्यककी प्रेरणासे प्रसन्न हुए नाग- युद्ध छेड़ना ( आदि० १६२ । ६-२८)। इनके राज वासुकिकी आज्ञासे इनके द्वारा आठ कुण्डोंका दिव्य द्वारा वकासुरका वध ( आदि० १६३।१)। इनके रसपान, जिससे इन्हें एक हजार हाथियोंके बलकी प्राप्ति द्वारा मनुष्योंकी हिंसा न करनेकी शर्तपर वकके परिवारको हुई (आदि. १२७ । ६३-७१)। आठवें दिन रसके जीवनदान देना (आदि० १६३ । २-४)। द्रौपदीके पच जानेपर इनका जागना और नागोंद्वारा इनका मङ्गला- स्वयंवरमें आये हुए राजाओंके साथ ब्राह्मणवेशमें युद्ध चारपूर्वक स्वागत-सत्कार तथा दस हजार हाथियोंके समान करते समय इनका श्रीकृष्णद्वारा बलरामजीको परिचय बलशाली होनेका वरदान देकर इन्हें पुनः ऊपर पहुँचा देना (आदि. १८८ । १४-२१)। स्वयंवरके अवसरदेना ( आदि. १२८ । २०-२८)। इनका नागलोकसे पर शल्यके साथ इनका युद्ध और इनके द्वारा शल्यकी लोटकर माताको प्रणाम करना तथा भाइयोंसे मिलना पराजय (आदि. १८९ । २३-२९) । द्रौपदीके साथ (आदि. १२८ । २९-३०)। गदायुद्ध में इनका प्रवीण इनका विधिपूर्वक विवाह (आदि० १९७ । १३)। होना (आदि० १३१ । ६१)। हस्तिनापुरकी रङ्गभूमिमें मयासुरद्वारा इनको गदाकी भेंट (सभा०३ । १८परीक्षाके समय दुर्योधनके साथ गदायुद्ध एवं अश्वत्थामा- २१)। जरासंधवधके विषयमें इनकी युधिष्ठिर और द्वारा उस युद्धका निवारण (आदि. १३४।१-५)। श्रीकृष्णके साथ बातचीत ( सभा० १५। ११-१३ के इनके द्वारा कर्णका तिरस्कार (आदि० १३६ । ६-७)। बाद दाक्षिणात्य पाठ)। जरासंधवधके लिये युधिष्ठिर कर्णका पक्ष लेकर दुर्योधनका इनपर आक्षेप करना और अर्जुनके साथ इनकी मगधयात्रा ( सभा० २० (आदि. १३६ । १०-१६) । इनके द्वारा द्रुपदकी अध्याय) । जरासंधके साथ इनका मल्लयुद्ध एवं श्रीगजसेनाका संहार ( आदि० १३७ । ३१-३५) । कृष्णका जरासंधको चीरनेके लिये इन्हें संकेत करना बलरामजीसे इनकी गदायुद्धविषयक शिक्षा ( भादि. (सभा० २३ । १० से २४ । ६ तक) । इनका १३८ । ४)। इनके द्वारा लाक्षागृहका जलाया जाना जरासंधको चीर डालना (सभा० २४ । ७)। (आदि. १४७।१०)। सुरंगसे निकल भागते समय जरासंधके पुनः जीवित हो जानेपर श्रीकृष्णद्वारा इन्हें इनके द्वारा मार्गमें थके हुए भाइयों एवं माताका परिवहन पुनः संकेतकी प्राप्ति और उस संकेतके अनुसार इनका (आदि. १४७ । २०-२१)।धरतीपर सोये हुए भाइयों जरासंधको चीरकर दो दिशाओंमें फेंक देना (सभा० एवं माताको देखकर इनका विषाद करना (आदि. २४। ७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। इनका पूर्वदिशाके १५० । २१-४१)। हिडिम्बवनमें इनका जागरण करना प्रदेशोंको जीतनेके लिये प्रस्थान और विभिन्न देशोंपर (मादि. १५०। ४४-१५)। हिडिम्बाके साथ वार्ता- विजय पाना ( सभा० २९ अध्याय )। भीमका पूर्व लाप करना (आदि. १५१ । २३-३६)। हिडिम्बासुर- दिशाके अनेक देशों और राजाओंको जीतकर भारी धनके साथ इनका युद्ध (आदि० १५२ । ३८-१५)। सम्पत्तिके साथ इन्द्रप्रस्थ लौटना ( सभा० ३० अध्याय)। इनके द्वारा हिडिम्बका वध (आदि० १५३ । ३२)।। प्रथम पूजाके अवसरपर भीष्म तथा श्रीकृष्णकी निन्दा हिडिम्बाको मारनेके लिये इनका उद्यत होना तथा करनेपर शिशुपालको मारनेके लिये इनका उद्यत होना युधिष्ठिरका इन्हें रोकना (आदि. १५४ । १-२)। और भीष्मजीका इन्हें शान्त करना (सभा०४२ हिडिम्बाको पुत्र दान करनेके लिये इन्हें माताका अध्याय)। राजसूय-यज्ञकी समाप्तिपर ये भीष्म तथा आदेश प्राप्त होना (आदि. १५४ । १८ के बाद धृतराष्ट्रको पहुँचाने गये थे ( सभा० ४५ । ४८)। दाक्षिणात्य पाठ )। हिडिम्बाके साथ इनकी शर्त दुष्ट कौरवोद्वारा भरी सभामें द्रौपदीके अपमान किये ( आदि. १५४ । २० )। हिडिम्बाके साथ जानेपर इनका कुपित होकर युधिष्ठिरकी भुजाओंको इनका विहार ( आदि. १५४ । २१-३०)। जलानेके लिये कहना (आदि० ६८।६)। इनके इनके द्वारा हिडिम्बाके गर्भसे घटोत्कचका जन्म (आदि. द्वारा दुःशासनकी छाती फाड़कर उसके रक्त पीनेकी १५४।३१)।एकचक्रामें निवास करते समय पूरी भिक्षाका भीषण प्रतिज्ञा ( सभा० ६८ । ५२-५३)। आधा भाग इनके उपभोगमें आता था ( आदि. १५६ । इनके रोषपूर्ण उद्गार (सभा०७० । १२-१७)। ६) । ब्राह्मणका उपकार करनेके लिये इन्हें माता दयोधनकी जाँघ तोड़ देनेके लिये इनकी प्रतिज्ञा (सभा. कुन्तीकी आज्ञा (आदि. १६०। २०)। इनका ७१। १४)। इनका तसभामें समस्त शत्रुओंको For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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