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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीमजानु ( २२८ ) भीमसेन ५४ । ८-९) । इनके द्वारा नलके साथ दमयन्तीका भीमरथी (भीमा)-दक्षिणभारतमें स्थित एक नदी, जो विवाह किया जाना (वन० ५७ । ४०-४१)। सारथि . समस्त पापभयका नाश करनेवाली है (वन०८८।३)। वार्ष्णेयके द्वारा लाये गये राजा नलके बच्चोंको अपने (इसीके तटपर सुप्रसिद्ध तीर्थ पण्ढरपुर है।) यह आश्रयमें रखना (वन० ६० । २३-२४) । दमयन्ती- भारतवर्षकी मुख्य नदियों में है। इसके जलको यह द्वारा इनके गुणोंका वर्णन (वन०६४ । ४४-४७)। पीते हैं (भीष्म०९।२०)। इसीको भीमा' भी कहते हैं इनका नल-दमयन्तीकी खोजके लिये ब्राह्मणोंको पुरस्कार- (भीष्म० ९ । २२)। की घोषणा करके चारों ओर भेजना ( वन० ६८ । २- भीमवेग-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ६७ । १४; ५)। महारानीकी प्रेरणासे राजा नलकी खोजके लिये आदि०११६।७)। ब्राह्मणोंको आज्ञा देकर भेजना (वन० ६९ । ३४)। भीमशर-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि०६७।९९)। इनके द्वारा अपने यहाँ आये हुए अयोध्यानरेश ऋतुपर्ण- भीमसेन-(१) ये महाराज परीक्षित्के पुत्र तथा जनमेजयका स्वागत (वन० ७३ । २०)। प्रकट हुए राजा के भाई थे। इन्होंने कुरुक्षेत्रके यज्ञमें देवताओंकी कुतिया नलको पुत्रकी भाँति अपनाना और आदर-सत्कारके साथ सरमाके बेटेको पीटा था (आदि. ३ । १-२)। (२) आश्वासन देना (वन० ७७।३-५)। एक महीनेके कश्यपपत्नी मुनिके गर्भसे उत्पन्न एक देवगन्धर्व (आदि. पश्चात् सेना, रथ आदिके साथ राजा नलको विदा करना ६५ । ४२) । ये अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधारे थे (वन० ७८ । १-२)। इनके द्वारा आदर-सत्कारके (आदि. १२२ । ५५)।(३) ये सोमवंशीय महाराज साथ राजा नलसहित दमयन्तीकी विदाई (वन० ७९ ।। अविक्षित्के पौत्र तथा परीक्षित्के पुत्र थे । १-२)। (५) ये देवताओंके यज्ञका विनाश करनेवाले । इनकी माताका नाम ' इनकी माताका नाम सुयशा था। इनके द्वारा केकय पाञ्चजन्यद्वारा उत्पन्न पाँच विनायकोंमें हैं (बन. देशकी राजकुमारी 'कुमारी'के गर्भसे प्रतिश्रवाका जन्म हुआ २२१ । ११)। (६) अंशद्वारा स्कन्दको दिये गये (आदि० ९४ । ५२-५५, आदि. ९५ । ४२-४३)। पाँच अनुचरोंमेंसे एक । शेष चारोंके नाम-परिघ, वट, (४) ये महाराज पाण्डुके क्षेत्रज पुत्र हैं । वायुदेवके दहति और दहन (शल्य० ४५ । ३१-३५)। (७) द्वारा कुन्तीके गर्भसे इनका जन्म हुआ था। इनके जन्मएक प्राचीन नरेश। ये यमकी सभामें रहकर सूर्यपुत्र कालमें आकाशवाणी हुई कि यह कुमार समस्त बलवानोंमें यमकी उपासना करते हैं, इस सभामें भीम नामके सौ श्रेष्ठ है (आदि. १२२ । १४-१५)। जन्मके दसवें दिन राजा हैं (सभा० ८ । २४)। इन्होंने तपस्याद्वारा ये माताकी गोदसे एक शिलाखण्डपर गिर पड़े और इनके प्रजाओंका कष्टसे उद्धार किया था (वन०३।११) शरीरकी चोटसे वह शिला चूर-चूर हो गयी (आदि. ये प्राचीनकालमें पृथ्वीके शासक थे; किंतु कालसे पीड़ित १२२ । १५ के बाद दाक्षिणात्य पाठसे १८ तक)। हो इसे छोड़कर चले गये (शान्ति० २२७ । ४९)। इनके जन्मकालीन ग्रहोंकी स्थिति (आदि. १२२ । १८ भीमजानु-एक प्राचीन नरेश, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंद्वारा यमकी उपासना करते हैं (सभा०८।२१)। इनका नामकरण-संस्कार (आदि. १२३ । १९-२०)। भीमबल (भूरिबल)-(१) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंसे एक वसुदेवके पुरोहित काश्यपके द्वारा इनके उपनयनादि-संस्कार (भादि० ६७ । ९८ आदि. ११६।७)। भीमसेन- सम्पन्न हुए तथा इन्होंने राजर्षि शुकसे गदायुद्ध की शिक्षा प्राप्त द्वारा इसका वध (शल्य. २६ । १४-१५)। (२) की (आदि० १२३॥३१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ३६९)। ये देवताओंके यज्ञका विनाश करनेवाले पाञ्चजन्यद्वारा कृपाचार्यका इन (पाण्डवों)को अस्त्र-शस्त्रकी शिक्षा देना उत्पन्न पाँच विनायकोंमें हैं (वन० २२१ । ११)। (आदि. १२९ । २३)। द्रोणाचार्यने इन (पाण्डवों)को भीमरथ-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक ( आदि० नाना प्रकारकी मानव एवं दिव्य अस्त्र-शस्त्रोंकी शिक्षा दी ६७।१०३ आदि. ११६।१२)। भीमसेनद्वारा (आदि० १३१ । ४, ९)। इनके द्वारा द्रौपदीके गर्भसे इसका वध (भीष्म ६४ । ३६-३७) । (२) सुतसोमका जन्म ( आदि. ९५। ७५)। इनके कौरवपक्षीय योद्धा, जो द्रोणनिर्मित गरुडव्यूहके हृदय- द्वारा काशिराजकी पुत्री बलन्धराके गर्भसे सर्वग' की स्थानमें खड़ा हुआ था (द्रोण० २० । १२)। इसने उत्पत्ति (आदि. ९५। ७७)। इनके द्वारा बालपाण्डवपक्षीय म्लेच्छराज शाल्वका वध किया था (द्रोण. क्रीडाओंमें धृतराष्ट्रपुत्रोंकी पराजय (आदि० १२७ । १६२५।२६) । पहले जब युधिष्ठिर राजा थे, उस समय २४)। दुयोधनका इन्हें विष मिला हुआ भोजन कराना यह उनके सभाभवन में बैठा करता था ( सभा. और मूञ्छित होनेपर लताओंसे बाँधकर गङ्गाजलमें फेंकना ४।२६)। (भादि० १२७ । ४५-५४)। मूछितावस्थामें इनका For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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