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ब्रह्मावर्त
( २२३ )
भगदत्त
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रोकना (शान्ति० २२३ । ८-११)। प्रजाकी वृद्धि करनेवाला मानव ब्रह्मलोकको प्राप्त करता है (वन. पर इनका कोप (शान्ति० २५६ । १६)। शिवजीकी ८३ । ५३)। यहाँ ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक जानेसे मनुष्य प्रार्थनासे क्रोधका त्याग ( शान्ति० २५७ । १३)। अश्वमेध यज्ञका फल पाता और सोमलोकको जाता है
मृत्युको संहारके लिये आदेश ( शान्ति० २५८ । (वन० ८४ । ४३)। २४-३६ )। वृत्रासुरके वधसे इन्द्र को लगी हुई ब्रह्मोदुम्बर-कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक तीर्थ । यह ब्रा ब्रह्महत्याका विभाजन (शान्ति. २८२ । ३१-५५)। जीका उत्तम स्थान है (वन० ८३ । ७१)। दक्षयज्ञके समय कुपित हुए शिवजीका कोप शान्त करना
ब्राह्म-एक प्रकारका विवाह । कन्याको वस्त्र और आभूषणों(शान्ति० २८३ । ४५-४८) सरूपसे साध्यगणोंको
से अलंकृत करके सजातीय योग्य वरके हाथमें देना 'ब्राहा' उपदेश (शान्ति० २९९ अध्याय)। देवताओंके साथ
विवाह कहलाता है। यह सभी वर्गों के लिये विहित है भगवानकी शरणमें जाना (शान्ति. ३४० । ४२.--
(आदि. ७३ । ८-१४)। ४८)। इनके द्वारा नारायण-रुद्र-युद्धकी शान्ति ( शान्ति. ३४२ । १२४-१२९) । भगवान् हयग्रीवकी स्तुति
ब्राह्मणी-(१) एक तीर्थ, यहाँ जानेसे मानव कमलके (शान्ति० ३४७ । ३८--४५ )। वैजयन्तपर्वतपर
समान कान्तिमान् विमानद्वारा ब्रह्मलोकमें जाता है (वन शिवजीके साथ वार्तालापमें इनके द्वारा नारायणकी
८४ । ५८)।(२) भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, महिमाका वर्णन ( शान्ति. ३५० । २५ से ३५१
जिसका जल यहाँके निवासी पीते हैं (भीष्म० ५। अध्यायतक)। देवताओंसे गरुड़-कश्यप संवादका प्रसंग सुनाना (अनु. १३ । ६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ५४६७-५४७५)। इनके द्वारा ब्राह्मणोंकी महिमाका
भग-- (१) बारह आदित्यों में से एक । इनकी माताका नाम वर्णन ( अनु० ३५ । ५-११के बाद दाक्षिणात्य
अदिति और पिताका कश्यप है ( आदि० ६५। १५)। पाठ) । यज्ञके लिये देवताओंको भूमि देना (अनु.
ये अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधारे थे ( आदि०१२२ । ६६ । २१-२२ ) । इन्द्रसे गोलोक और गोदानकी
६६)। खाण्डववनदाइके समय घटित हुए श्रीकृष्ण और महिमाका वर्णन (अनु. ७३ अध्याय)। गोदानके
अर्जुनके साथ युद्धमें इन्द्रकी ओरसे इनका आगमन विषयमें इनका इन्द्र के प्रश्नका उत्तर देना ( अनु०७४ । २-१०)। इन्द्रको गोलोक और गौओंकी महिमा
तथा तलवार और धनुष लेकर शत्रुपर टूट पड़ना (आदि. बताना ( अनु० ८३ । १५--४५) । सुरभीको वरदान
२२६ । ३६ )। ये इन्द्रकी सभामें विराजमान होते हैं देना (अनु. ८३ । ३६--३९)। इनके द्वारा
(सभा०७।२२)। इन्होंने स्कन्दके अभिषेकमें भाग देवताओंको आश्वासन ( अनु० ८५ ८--१८)।
लिया (शल्य. ४५। ५)। रुद्रने इनकी आँखें नष्ट वरुणरूपधारी महादेव जीके यज्ञमें इनका अपने वीर्यकी
कर दी थी (सौप्तिक. १८ । २२)। (२) ग्यारह आहुति देना और उमर प्रजापतियोंका जन्म होना
रुद्रोंमेंसे एक। ये भी अर्जनके जन्मोत्सवमें पधारे थे ( अनु०८५। ९९-.-१०२) । पितरों और देवों के (आदि० १२२ । ६९)। अजीर्ण-निवारणके लिये अग्निको उपाय बताना (अनु० भगदत्त-प्राग्ज्योतिषपुरका अधिपति, बाध्कल नामक असुर९२ । ९ । नहुषक पतनके बाद शतक्रतुको इन्द्र के अंशसे उत्पन्न (आदि. ६७ । १)। यह द्रौपदीबनानेके लिये देवोंको आदेश (अनु. १०० । ३४- के स्वयंवरमें गया था ( आदि. १८५ । १२) । यह ३६)। राजा भगीरथको ब्रह्मलोकमें आया देख उनसे राजा पाण्डुका मित्र था। जरासंधसे मिला होनेपर वहाँ पहुँचनेका साधन पूछना (अनु. १०३ । ६-७)। भी युधिष्ठिरके प्रति पिताकी भाँति स्नेह रखता था। इसे इनके द्वारा धर्मके रहस्यका वर्णन(अनु. १२६ । ४६- यवनाधिप कहा गया है (सभा० १४ । १४-१६)। ५०)। कप नामक दानवोंसे पराजित देवताओंको राजसूय-दिग्विजयके समय अर्जुनके साथ इसका घोर युद्ध ब्राह्मणकी शरण लेनेका आदेश ( अनु० १५७ । ५)। हुआ और अर्जुनकी वीरतासे प्रसन्न होकर इसने उनकी देवता, ऋषि, नाग और असुरोको एकाक्षर ॐ इच्छाके अनुसार कार्य करनेकी प्रतिज्ञा की। यह इन्द्र का का उपदेश (आश्व. २६ । ८)। इनके द्वारा मह- मित्र था और इन्द्र के समान ही पराक्रमी था । अर्जुनके र्षियों को विविध ज्ञानका उपदेश (आश्व० ३५ । ३२ से पिता पाण्डुसे भी इसकी मैत्री थी। इसने अर्जुन के प्रति आश्व० ५१ । ४० तक)।
वात्सल्य दिखाया । यह किरात, चीन आदि समुद्रतटवर्ती ब्रह्मावर्त-कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत स्थित एक तीर्थ, यहाँ स्नान सैनिकोंके साथ युद्ध में गया था ( सभा० २६ ॥७-१६)।
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