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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगदा भद्रकर्णेश्वर %Dween युधिष्ठिरके राजसूययज्ञमें यह यवनोंके माथ गया था और १२)। यममभामें रहकर सूर्यपुत्र पमकी उपासना अच्छी जातिके वेगशाली अश्व एवं बहुत-सी भेंट-सामग्री करते हैं (सभा० ८।१२)। इनका राज्याभिषेक लेकर खड़ा था । बहुत-से हीरे और पद्मरागमणिके आभूषण (वन०1०। ६९)। इनका हिमालयपर तपस्या एवं विशुद्ध हाथी-दाँतकी बनी मृठवाले खङ्ग देकर यह करके भगवान शिव तथा गङ्गाजी को प्रसन्न करना एवं राजसभा गया था (सभा० ५१ । १४-१६ )। गङ्गाजीद्वारा बरदान पाना (वन. १०८ अध्याय)। दिग्विजयके समय कर्णद्वारा इसकी पराजय ( वन. इन्हें भगवान् शिवका वरदान (वन. १०९ । १-२)। २५४ ५)। पाण्डवोंकी ओरसे इसके पास रणनिमन्त्रण इनका गङ्गाजीको ले जाकर पितरोंका उद्धार करना भेजनेका विचार किया गया था (उद्योग० ४ । ११)। (वन० १०९ । १८-१९)। संजयको समझाते हुए दुर्योधनकी सहायता सेनासहित इसका आना ( उद्योग. नारदजीद्वारा इनके चरित्रका वर्णन (द्रोण. ६. १९ । १५)। प्रथम दिनके संग्राममें विराटके साथ द्वन्दू- अध्याय)। श्रीकृष्णद्वारा इनके दान, यज्ञ आदिका युद्ध (भीष्म ४५ । ४९-५१)। घटोत्कचके साथ वर्णन (शान्ति० २९ । १३-७०)। गोदान-महिमाके युद्ध और पराजय (भीष्म०६४ । ५९-६२) भीम- विषयमें इनका नामनिर्देश ( अनु० ७६ । २५)। सेनको मूञ्छित करना ( भीष्म०६४ । ५३-५४) । ब्रह्माके पूछनेपर अपने पुण्यकर्मों का वर्णन करते हुए इसके द्वारा घटोत्कचकी पराजय (भीष्म० ८३ । ४०)। इनका अनशन-व्रतको ही ब्रह्मलोकमें पहुँचनेका साधन इसका अद्भुत पराक्रम (भीष्म० ५५ अध्याय)। इसके बताना ( अनु. १०३। ८-४२)। इनके द्वारा अपनी द्वारा दशार्णराजकी पराजय (भीष्म० ९५। ५८. कन्याका कौत्सको दान ( अनु० १३७ । २६ )। ४९)। इसके द्वारा क्षत्रदेवकी दाहिनी भुजाका विदारण कोहल ऋषिको एक लाख सवत्सा गौओंका दान करने(भीष्म० ९५।७३)। भीमसेनके सारथि विशोककी के कारण इन्हें उत्तम लोकोंकी प्राप्ति (अनु. १३७। मूर्छा (भीष्म. ९५ । ७६)। सात्यकिके साथ २७)। इसका द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० १११ । ७-१३ )। भङ्ग-तक्षककुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके भीमसेन और अर्जुनके साथ युद्ध (भीष्म अध्याय सर्पसत्रमें जलमरा था (आदि० ५७ । ९)। ११३ से ११४)। अर्जुनके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्मः भङ्गकार-(१) ये सोमवंशीय महाराज कुरुके पौत्र ११६ । ५६-६०)। द्रुपदके साथ युद्ध (द्रोण. १४ । तथा अविक्षित्के पुत्र थे ( आदि० ९४ । ५३) । (२) ४०-४२)। हाथोसहित अद्भुत पराकम करके इसके एक यदुवंशी क्षत्रिय, जो रैवतक पर्वतके महोत्सवमें द्वारा दशार्णराजका वध (द्रोण. २६ । ३८३९)। सम्मिलित हुए थे ( आदि० २१८।१)। रुचिपर्वाका वध (द्रोण. २६ । ५२-५३)। अर्जुनके भङ्गास्वन-एक प्राचीन गजर्षि, जिनका इन्द्र के साथ वैर साथ युद्ध (द्रोण. २८ । १४ से २९ अध्यायतक)। अर्जुनपर वैष्णवानका प्रयोग (द्रोण. २९ । १७)। हो गया था ( अनु० १२ ।२)। इन्द्रकी प्रेरणासे अर्जुनद्वारा इसका वध (द्रोण. २९ । ४०-५०)। इनका स्त्रीभावको प्रात होना ( अनु० १२ । १०)। वनमें जानेपर एक तापसद्वारा इन्होंने सौ पुत्र उत्पन्न भगदत्तके बाद इसका पुत्र वज्रदत्त राजा हुआ, जो अर्जुनद्वारा जीता गया था (आश्व० ७६ । १-२०)। किया (अनु० १२ । २४)। इन्द्रसे पूछनेपर उनसे इनके पितामह शैलालय तपोबलसे इन्द्रलोकमें गये थे अपना वृत्तान्त सुनाना (अनु. १२ । ३४-४०)। इनका विषयसुखकी इच्छासे स्त्रीभावकी ही प्रशंसा करना (आश्रम० २० । १०)। (अनु. १२ । ५२-५३)। भगदा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । भद्र-(१) एक गणराज्य । यहाँके क्षत्रियराजकुमारोंने २६ )। राजसूययज्ञके अवसरपर युधिष्ठिरको बहुत-सा धन अर्पित भगनन्दा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य० ४६। किया था ( सभा० ५२ । १४-१७)। दिग्विजयके ११ )। समय कर्णने इस देशको जीता था (वन० २५४ । भगवढ़ीतापर्व-भीष्मपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय २५ २०)। (२) चेदिदेशीय पाण्डवपक्षका एक योद्धा, से ४२ तक)। जिसका कर्णद्वारावध हुआ था ( कर्ण०५६ । ४८-४९)। भगवद्यानपर्व-उद्योगपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय भद्रकर्णेश्वर-इसके समीप जाकर विधिपूर्वक पूजा करने७२ से १५० तक)। वाला मनुष्य कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता (वन. भगीरथ-एक गजा, जो दिलीपके पुत्र थे (वन० २५ । । ८४ । ३९)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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